मुंगेर में बसंत पंचमी की तैयारियां, खास मूर्तियों से सजेगा बाजार

NEWSPR डेस्क। मुंगेर में इन दिनों सरस्वती पूजा की तैयारी की धूम है और  मूर्तिकार मां सरस्वती की प्रतिमा को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं । लेकिन इस बार पारंपरिक ढंग से बनाए गए मिट्टी की मूर्तियों का मुकाबला प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी प्रतिमाओं से होने वाला है । मूर्तिकार विकास पंडित ने बताया कि मिट्टी की मूर्ति बनाने में काफी मेहनत है और पूजा के लिए यही शुद्ध होता है। आज भी लोगों का पहली पसंद मिट्टी के ही प्रतिमा है । एक मूर्ति बनाने में करीब 10 से 15 दिन लग जाते हैं और लागत मूल्य लगभग 2000 से ऊपर आता है। इसकी कीमत 2200 से लेकर 2500 तक बिकती है । मूर्ति बनाने में घर के सभी सदस्य साथ  देते हैं क्योंकि मजदूर रखने पर कीमत ज्यादा लगती है। साथ ही बताया कि प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां जलवायु के लिए काफी हानिकारक होती है। जबकि मिट्टी की प्रतिमा विसर्जन के बाद पानी में घुल जाती है उसका पेंट भी जलवायु को हानि नहीं पहुंचाता है।

वहीं राजस्थान के जोधपुर से आए प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां बनाने में माहिर कारीगरों ने बताया कि  वह जगह-जगह घूम के प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां बनाते हैं और सरस्वती पूजा से 2 महीने पहले प्लास्टर ऑफ पेरिस तथा गंगा बालू को मिला प्रतिमा के सांचों में ढाल प्रतिमा  तैयार करने लगते हैं।  एक माह के बाद मूर्ति को सुंदर रंगों से रंग बाजार में बिकने के लिए तैयार करते हैं। एक मूर्ति की लागत मूल्य के विषय में राजस्थान से आए अंबालाल बताते हैं कि एक मूर्ति बनाने में 300 से ₹600 तक खर्चा होता है जो बाजार में  800 से लेकर 1200 से 1500 तक बेचा जाता है। साथी अंबालाल ने बताया कि राजस्थान से  पूरा परिवार आते हैं प्लास्टर ऑफ पेरिस की  मूर्तियां बनाते हैं। अब मिट्टी की प्रतिमाएं कम बनने लगी है जिस वजह से उनकी प्रतिमा है ज्यादा बिकती है।

वहीं जानकारों का मानना है कि हिंदू सनातन धर्म में पूजा में इस्तेमाल  हर चीज शुद्ध और पारंपरिक होनी चाहिए ना कि किसी आर्टिफिशियल चीज से बनी चीजें ।  जानकार कौशल पाठक बताते हैं कि आज के इस आधुनिक युग में लोग पूजन पद्धति में भी परिवर्तन करने लगे है। जिस वजह से मिट्टी की प्रतिमा को छोड़ प्लास्टर ऑफ पेरिस की प्रतिमा  खरीद मां सरस्वती की पूजा करते हैं । जो कि ना तो धार्मिक और न ही  जलवायु के हिसाब से सही है। प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां विसर्जन के बाद पानी में  घुलती नहीं है जो जलवायु को नुकसान पहुंचाती हैं। जबकि मिट्टी की प्रतिमा शुद्ध होती है  और प्रतिमा विसर्जन के बाद जलवायु और   पानी को हानी  नहीं पहुंचाती है।

मुंगेर से मो.इम्तियाज की रिपोर्ट

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