अररिया में समर्थकों ने भारत बंद में किया प्रदर्शन, भाकपा माले जाप समेत कई राजनीतिक संगठन शामिल, आम आदमी पार्टी का भी बंद को समर्थन

NEWSPR डेस्क। संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर संपूर्ण भारत बंद किया गया है। बंद के समर्थन में भाकपा माले, जाप के साथ कई राजनीतिक व गैर राजनीतिक संगठनों ने शामिल होकर बंद को सफल बनाया। इसी को लेकर केंद्र सरकार के फासीवाद को जड़ से खत्म करने के संकल्प के साथ रैली अररिया बस स्टैंड से चांद चांदनी चौक होते हुए जीरोमाईल तक निकाला गया। जहां सभा में शामिल बंद समर्थकों ने शहर की दुकानों को बंद कराया और एनएच 57 सड़क पर वाहनों को रोककर जाम किया।

वहीं अब किसानों को मिलने वाली यूरिया और डीएपी पर भी तरह तरह का अंकुश लगा दिए गए हैं। ताकी खाद की कमी से किसान वक्त पर खेती नहीं कर सके और मजबुर होकर अपनी जमीन को कॉर्पोरेट को सौंप दे। इसी काले कानून का नतीजा हैं की सरसों तेल और अन्य खाने के चीजों का कीमत आसमान छु रही है। उन्होंने बताया कि अपनी जमीन को कारपोरेट के हवाले करने के लिए सरकार द्वारा लाए गये तीन काले कानूनों के खिलाफ, हमारा अन्नदादा, पिछले दस महीनों से सड़कों पर है। लेकिन उसका यह आंदोलन केवल उसके लिए नहीं है बल्कि उसकी लड़ाई मज़दूर, बेरोजगार, व्यापारी, रेहड़ी-पटरी वालों, बुनकर, छोटे उद्यमियों सहित समाज के सभी तबकों के लिए है।

वहीं आम आदमी पार्टी (आप) ने सोमवार को भारत बंद के दौरान स्थानीय चांदनी चौक पर किसानों के समर्थन में प्रदर्शन कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से कई सवाल पूछे। सोमवार को तय कार्यक्रम के तहत किसानों के भारत बंद को आम आदमी पार्टी ने भी समर्थन दिया। इस अवसर पर पार्टी के बिहार प्रदेश प्रवक्ता और पर्यवेक्षक चंद्र भूषण के नेतृत्व में स्थानीय चांदनी चौक पर कई कार्यकर्ताओं के साथ प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शन के दौरान श्री चंद्र भूषण ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अविलंब कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की। इस अवसर पर उन्होंने प्रधानमंत्री से कई सवाल पूछे।

उन्होंने प्रधानमंत्री को याद दिलाया की अन्नदाताओं की सुनिए न कि अपने मन की बात सुनाएं। उन्होंने सवाल किया कि किसान एमआरपी नहीं केवल एमएसपी मांग रहे हैं यानी न्यूनतम विक्रय मूल्य की मांग कर रहे हैं, इसमें बुरा क्या है। उन्होंने कहा कि दिल्ली यूपी बॉर्डर पर किसान पिछले 10 महीने से आंदोलन कर रहे हैं। करीब 600 से ऊपर किसानों की इस आंदोलन में मौत हो चुकी है। क्या सरकार केवल लाशों को गिनेगी या आंदोलनकारियों की भी सुनेगी।

अररिया से रविराज की रिपोर्ट

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