NEWSPR डेस्क। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी का पावन पर्व मनाया जाता है। हिंदू धर्म में अनंत चतुर्दशी का बहुत अधिक महत्व होता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा का विधान है। अनंत चतुर्दशी के दिन ही गणेश उत्सव का समापन भी होता है। इस साल 19 सितंबर, 2021 को अनंत चतुर्दशी का पावन पर्व पड़ रहा है। इस दिन विधि- विधान से भगवान गणेश और भगवान विष्णु की पूजा- अर्चना की जाती है। भक्त इस पावन दिन व्रत भी रखते हैं।
चतुर्दशी तिथि और शुभ मुहूर्त-
अनंत चतुर्दशी तिथि आरंभ : 19 सितंबर 2021, रविवार 6:07 Am से
चतुर्थी तिथि की समाप्ति : 20 सितंबर 2021, सोमवार 5:30 Am तक
पूजा- विधि
सुबह स्नान करने के बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
देवी- देवताओं का गंगा जल से अभिषेक करें।
संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
गणेश पूजा में सबसे पहले गणेश जी का प्रतीक चिह्न स्वस्तिक बनाया जाता है। गणेशजी प्रथम पूज्य देव हैं, इस कारण पूजन की शुरुआत में स्वस्तिक बनाने की परंपरा है।
भगवान गणेश को पुष्प अर्पित करें।
भगवान गणेश को दूर्वा घास भी अर्पित करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दूर्वा घास चढ़ाने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं।
भगवान गणेश को सिंदूर लगाएं।
भगवान गणेश का ध्यान करें।
भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें
गणेश जी और भगवान विष्णु को भोग भी लगाएं। आप गणेश जी को मोदक या लड्डूओं का भोग भी लगा सकते हैं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।
इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।
इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।
पूजा सामग्री लिस्ट
भगवान गणेश की प्रतिमा, लाल कपड़ा, दूर्वा, जनेऊ, कलश, नारियल, पंचामृत, पंचमेवा, गंगाजल, रोली, मौली लाल, श्री विष्णु जी का चित्र अथवा मूर्ति, पुष्प, नारियल, सुपारी, फल, लौंग, धूप, दीप, घी, पंचामृत, अक्षत, तुलसी दल, चंदन, मिष्ठान
अनंत चतुर्दशी का महत्व
श्रीकृष्ण ने दिखाया मार्ग कहा जाता है कि जब पाण्डव जुएं में अपना सारा राज-पाट हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदी के साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया और अनन्त सूत्र धारण किया। इस व्रत का इतना प्रभाव था कि पाण्डव सभी संकटों से मुक्त हो गए। विधि युधिष्ठिर के पूछने पर श्री कृष्ण ने कहा कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को कच्चे धागे में 14 गांठ लगाकर फिर उसे कच्चे दूध में डुबोकर ओम् अनंताय नमः मंत्र से 108 बार अभिमंत्रित कर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए धारण करना चाहिए।
अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा
कहते हैं कि कौडिण्य ऋषि ने इसका अनजाने में अपनी पत्नी के हाथ में इसे बंधा देखकर इसे जादू टोना समझा और तिरस्कार करते हुए इसे जला दिया था जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें भारी कष्ट भोगने पड़े। बाद में 14 साल तक अनंत चतुर्दशी का व्रत रखने पर वह इस पाप से मुक्त हुए।
जानते हैं पूरी कथा – अनंत चतुर्दशी व्रत कथा प्राचीन काल में सुमंत नाम का एक नेक तपस्वी ब्राह्मण था। उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था। उसकी एक परम सुंदरी धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी कन्या थी। जिसका नाम सुशीला था। सुशीला जब बड़ी हुई तो उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई। पत्नी के मरने के बाद सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह कर लिया। सुशीला का विवाह ब्राह्मण सुमंत ने कौंडिन्य ऋषि के साथ कर दिया। विदाई में कुछ देने की बात पर कर्कशा ने दामाद को कुछ ईंटें और पत्थरों के टुकड़े बांध कर दे दिए। कौंडिन्य ऋषि दुखी हो अपनी पत्नी को लेकर अपने आश्रम की ओर चल दिए। परंतु रास्ते में ही रात हो गई। वे नदी तट पर संध्या करने लगे। सुशीला ने देखा- वहां पर बहुत-सी स्त्रियां सुंदर वस्त्र धारण कर किसी देवता की पूजा पर रही थीं।
सुशीला के पूछने पर उन्होंने विधिपूर्वक अनंत व्रत की महत्ता बताई। सुशीला ने वहीं उस व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गांठों वाला डोरा हाथ में बांध कर ऋषि कौंडिन्य के पास आ गई। कौंडिन्य ने सुशीला से डोरे के बारे में पूछा तो उसने सारी बात बता दी। उन्होंने डोरे को तोड़ कर अग्नि में डाल दिया, इससे भगवान अनंत जी का अपमान हुआ। परिणामत: ऋषि कौंडिन्य दुखी रहने लगे। उनकी सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई। इस दरिद्रता का उन्होंने अपनी पत्नी से कारण पूछा तो सुशीला ने अनंत भगवान का डोरा जलाने की बात कहीं। पश्चाताप करते हुए ऋषि कौंडिन्य ने अनंत डोरे की प्राप्ति के लिए वन में चले गए। वन में कई दिनों तक भटकते-भटकते निराश होकर एक दिन भूमि पर गिर पड़े। तब अनंत भगवान प्रकट होकर बोले- ‘हे कौंडिन्य! तुमने मेरा तिरस्कार किया था, उसी से तुम्हें इतना कष्ट भोगना पड़ा। तुम दुखी हुए। अब तुमने पश्चाताप किया है। मैं तुमसे प्रसन्न हूं। अब तुम घर जाकर विधिपूर्वक अनंत व्रत करो। चौदह वर्षपर्यंत व्रत करने से तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा। तुम धन-धान्य से संपन्न हो जाओगे। कौंडिन्य ने वैसा ही किया और उन्हें सारे क्लेशों से मुक्ति मिल गई।’ श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत किया जिसके प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए तथा चिरकाल तक राज्य करते रहे।
पांडव और राजा हरिशचंद्र ने भी किया था अनंत चतुर्दशी व्रत
इसी तरह पांडवों और राजा हरिश्चन्द्र ने भी अनंत चतुर्दशी व्रत किया था। यह व्रत महाभारत काल में जब पांडव अज्ञातवास में थे तब जीवन के कष्टों से मुक्ति के लिए पांडवों ने भी अनंत चतुर्दशी का व्रत किया था। वहीं, राजा हरिश्चन्द्र ने भी इस व्रत को पूरा कर अपने दुखों से मुक्ति पाई थी। इस व्रत की कथा की भी बहुत महिमा बताई गई है।
अनंत चतुर्दशी का धागा बांधने के बाद ना करें ये काम
अनंत धागा बांधने के बाद आपको मांसाहार नहीं करना चाहिए। इसके अलावा इस धागे का निरादर नहीं करना चाहिए। कम से कम 14 दिन बांधने के बाद उसका किसी नदी में विसर्जन करना चाहिए। इसे पूरे साल बांधते हैं तो भगवान विष्णु की अनंत कृपा मिलती है। अपमान करने पर पाप के भागी होते हैं। व्रत के धागा के बाद सात्विक जीवन का पालन करना चाहिए । किसी की चुगली और मजाक नहीं उड़ाना चाहिए । और ना किसी को कम आंकना चाहिए।