नवादा में मकर संक्रांति पर्व की तैयारियों में जुटे लोग, तिलकुट और चूड़ा की खूब हुई खरीदारी

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। मकर संक्रांति पर्व को लेकर तिलकुट बनाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। तिलकुट बनाने से पहले तिल को अच्छी तरह से भुजाई किया जाता है उसके बाद चीनी का पाग बनाया जाता है। पाग बनाने के बाद उसे मोटे लरक्षे में तब्दील किया जाता है। लरक्षे जब सूख जाता है तो उसे गोला बनाकर गर्म कढ़ाई में तिल में उसे मिलाकर गोले को काटा जाता है। उसके बाद उस गोले की ठुकाई की जाती है तभी तैयार होता है तिलकुट। आइए बताते हैं कि मकर संक्रांति पर लोग तिलकुट का सेवन क्यों करते हैं।

मान्यता है कि मकर संक्रांति पर तिल और तिलकुट खाने की भी परंपरा है। ज्‍योतिषीय कारणों के मुताबिक तिल का सीधा संबंध शनि से है। यही वजह है कि मकर संक्रांति के दिन तिल और तिलकुट खाने का रिवाज है। इससे शनि, राहू और केतु से संबंधित सारे दोष दूर हो जाते हैं।

तिल और गुड़ बहाने का है रिवाज

मकर संक्रांति के मौके पर जहां कई जगहों पर खिचड़ी खाने की परंपरा है। वहीं कुछ जगहों पर तिल-गुड़ को प्रवाहित करने का भी रिवाज है। मान्‍यता है कि ऐसा करने से व्‍यक्ति को हर तरह के कष्‍ट से मुक्ति मिलती है।

दही-चूड़ा तिलबा (तिल का लड्ड) की परंपरा

मकर संक्रांति प्रकृति की आराधना का पर्व है जो सूर्य के उत्तरायण होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यही कारण है कि कड़ाके की ठंड में लोग सूर्योदय से पूर्व स्नान करके सूर्य को अर्घ्‍य देते हैं। इसके बाद तिलाठी (तिल के पौधे का ठंडल) जलाकर खुद को गर्म करते हैं और पहले दही-चूड़ा तिलबा (तिल का लड्ड) खाते हैं। संगम तट पर माघ मेला आरंभ, कल्‍पवास के इन कड़े नियमों के बारे में जानते हैं।

नवादा से अनिल शर्मा की रिपोर्ट

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