डेस्क। भारत निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव सुधार के लिए किये गये तमाम प्रयासों के बावजूद आज भी कुछ ऐसी जगहें है, जहां के दलित-महादलित देश की आजादी के 74 साल बाद भी मताधिकार से वंचित है। बिहार के औरंगाबाद के तेलियाडीह गांव में वोटरों ने इस बार हो रहे पंचायत चुनाव में एक बार फिर वोट देने से रोक दिए जाने की आशंका जताई है। महादलितों का आरोप है कि हर चुनाव में इलाके की दबंग जाति के लोग उन पर अपने मनमाफिक उम्मीदवार को वोट देने का दबाव बनाते है और उन्हे जब लगता है कि वे उनके पसंदीदा प्रत्याशी को वोट नही करेगें तो उन्हे वोट देने से रोक दिया जाता है।
इसके लिए वे कई तरह के हथकंडे अपनाते है और शासन-प्रशासन की नजर में इस कृत्य को नजर नही आने देने के लिए उन्हे बूथ से काफी दूर पहले ही डरा धमका कर खदेड़ दिया जाता है। हर चुनाव के पहले मतदाता जागरूकता अभियान पर आने वाले अधिकारी उन्हे कहते हैं कि वे निर्भीक होकर चुनाव में भाग ले लेकिन मतदान के दिन वाकया कुछ और ही होता है। जब वे वोट डालने बूथ की ओर जाते है तो उनके साथ शर्त यह होती है कि उनके उम्मीदवार को वोट दे अन्यथा बिना वोट दिए बैरंग वापस लौट जाएं।
यहां के वोटरो ने अपने शासन-प्रशासन के अधिकारियों से अपने मताधिकार की रक्षा की गुहार लगाते हुए इस बार के पंचायत चुनाव में भी अपने साथ ऐसा ही कुछ होने की आशंका जताई है। यहां के वोटरो की मांग है कि उनके गांव में ही बुथ बनाया जाएं ताकि वे आसानी से मतदान के पर्व में हिस्सा ले सके। मतदाताओं में शासन-प्रशासन के रवैये के प्रति आक्रोश भी साफ झलकता है। ऐसे में देखना यह होगा कि राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा क्या ऐसे प्रबंध किए जाएंगे, जिससे कि यहां के दलित-महादलित पंचायत चुनाव में भाग ले सके और अपने पसंद के उम्मीदवारों को वोट कर सके ताकि पंचायती राज व्यवस्था में भी लोकतंत्र का झंडा बुलंद रह सके।
औरंगाबाद से रुपेश की रिपोर्ट