बिहार सरकार की पहल पर गंगा नदी के किनारे बसे 13 जिलों में विकसित किया गया जैविक कॉरिडोर अब पूरे देश के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण बनकर उभरा है। हजारों एकड़ भूमि पर रसायन रहित खेती से न सिर्फ किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी हुई है, बल्कि यह पहल गंगा के पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा में भी बड़ी भूमिका निभा रही है।
नीतीश सरकार की 2020 में हुई थी शुरुआत
इस योजना की शुरुआत वर्ष 2020 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में की गई थी। इसका मकसद था गंगा के तटवर्ती क्षेत्रों में जैव विविधता का संरक्षण और जैविक खेती को बढ़ावा देना। पहले यह योजना 2022-23 तक लागू थी, लेकिन इसके सकारात्मक परिणामों को देखते हुए राज्य सरकार ने इसकी अवधि 2025 तक बढ़ा दी है।
20,000 से अधिक किसान जुड़े, 19,500+ एकड़ में खेती
अब तक इस योजना से 20,000 से अधिक किसान जुड़ चुके हैं और वे करीब 19,594 एकड़ भूमि पर जैविक खेती कर रहे हैं। इससे खेतों से बहकर गंगा में जाने वाले रसायनों की मात्रा में उल्लेखनीय कमी आई है, जिससे गंगा की सेहत सुधरी है और जल पारिस्थितिकी तंत्र को स्थायित्व मिला है।
किसानों को अनुदान, क्लस्टर आधारित खेती
योजना के तहत किसानों को पहले वर्ष 11,500 रुपये प्रति एकड़ और अगले दो वर्षों के लिए 6,500 रुपये प्रति एकड़ का अनुदान दिया जाता है। यह पूरी प्रक्रिया क्लस्टर मॉडल के तहत संचालित हो रही है, जिससे मिट्टी की उर्वरता, पर्यावरणीय संतुलन और खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा रही है।
पर्यावरण के साथ आमदनी भी बढ़ी
यह जैविक कॉरिडोर यह साबित करता है कि पर्यावरण की रक्षा करते हुए भी सफल और लाभदायक खेती संभव है। इस मॉडल को अब देशभर में हरित और टिकाऊ खेती के आदर्श रूप में अपनाया जा रहा है। इससे जहां किसानों की आय में वृद्धि हो रही है, वहीं उपभोक्ताओं को स्वच्छ और सुरक्षित जैविक उत्पाद मिल रहे हैं।
किन जिलों में है यह जैविक कॉरिडोर?
यह जैविक कॉरिडोर गंगा नदी के तटीय जिन जिलों में विकसित किया गया है, वे हैं:
बक्सर, भोजपुर, पटना, नालंदा, वैशाली, सारण, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, लखीसराय, भागलपुर, मुंगेर और कटिहार।
यह परियोजना बिहार को न केवल कृषि के क्षेत्र में अग्रणी बना रही है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी राज्य को नई पहचान दे रही है।