बिरसा मुंडा का 121 वां शहादत दिवस, शर्म की बात परपोती सब्जी बेच कर चला रही है परिवार, CM को लिखा पत्र

Rajan Singh

NEWSPR DESK- शर्म करो झारखंड सरकार रांची जनजातियों के भगवान बिरसा मुंडा का आज 121वां शहादत दिवस है देश की आजादी में अंग्रेजों से लड़ाई लड़ते हुए साढ़े 24 साल के उम्र में उन्हें रांची जेल में ही जहर देकर मार डाला गया था.

बताया जाता है कि भगवान बिरसा मुंडा ने आजादी समाज में राष्ट्रीय चेतना का विकास किया था अंग्रेजों का अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था जिसको लेकर बिरसा मुंडा लगातार अंग्रेजो के खिलाफ हौसला बुलंद करते जा रहे हैं थे जब अंग्रेजों को पता चला कि बिरसा मुंडा अंग्रेजों के लिए खतरनाक होंगे तो अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया और धीमा जहर देकर आदिवासी समाज के आंदोलन को खत्म करने की कोशिश की अंग्रेजों ने जहर की वजह से 9 जून 1900 ईस्वी मैं बिरसा मुंडा शहीद हो गये.

बिरसा मुंडा के गणना भारत माता के महान सपूतों और देशभक्तों में की जाती है आजादी के बाद उनका नाम लेकर ना जाने कितना राजनेता अपने गद्दी हासील किया है. गुजरते वक्त के अनुसार बिरसा मुंडा के परिवार की अनदेखी करना शुरू हो गया है झारखंड के नए राज्य के तौर पर स्थापित होने के बावजूद भगवान बिरसा मुंडा के परिजनों की स्थिति काफी दयनीय है आज उनकी परपोती सब्जी बेच कर परिवार चलाती है.

ऐसी स्थिति में सरकार को ध्यान देना चाहिए वही बिरसा मुंडा की पर्वती जॉनी कुमारी मुंडा झारखंड के मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखा है.

आदरणीय मुख्यमंत्री जी, झारखंड
मैं जौनी कुमारी मुंडा। भगवान बिरसा मुंडा की वंशज। मैं अभी बिरसा कॉलेज खूंटी में बीए पार्ट-3 की छात्रा हूं। जब शिक्षक बिरसा के आंदोलन के बारे में पढ़ाते हैं, तो गर्व होता है। लेकिन, मैं किसी को नहीं बताती कि मैं भगवान बिरसा की पड़पोती हूं। क्योंकि लोग हमारी स्थिति देखकर निराश हो जाएंगे। सुनती हूं कि आदिवासी छात्राओं को पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति का लाभ मिलता है। मैंने कई बार आवेदन दिए, लेकिन कभी नहीं मिली। मेरे पिता सुखराम मुंडा 82 की उम्र में भी खेतों पर मेहनत करते हैं। 1000 रुपए वृद्धावस्था पेंशन मिलती है.

उसी से मेरी पढ़ाई का खर्च चलता है। भगवान बिरसा ‘अबुआ दिशुम अबुआ राज’ की बात करते थे। आज झारखंड में अबुआ राज है, लेकिन हमारी स्थिति थोड़ी भी नहीं सुधरी। मैं सरकार से कुछ नहीं मांगती। अलग से कुछ नहीं चाहिए, लेकिन जो नियम जनजातियों के लिए बने हैं, जो योजनाएं गरीबों के लिए हैं, उनका लाभ तो मिले। मैं अपने लिए, अपने बाबा, अपनी मां के लिए सम्मान चाहती हूं।
बस इतना ही।

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