NEWSPR डेस्क। देश में इस्कॉन संस्था के संस्थापक भगवान कृष्ण के संदेश प्रचारक चैतन्य महाप्रभु की आज जयंती है। जिसे लेकर जदयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने उन्हें नमन किया।
बंगाल के नादिया में 18 फरवरी 1486 को संत चैतन्य महाप्रभु का जन्म हुआ था। बहुत साधारण जीवन बिताने वाले निमाई नामक इस बालक में बचपन से ही शायद कुछ ऐसा था, जिसे असाधारण कहा जा सकता था। चैतन्य महाप्रभु एक महान आध्यात्मिक शिक्षक और गौडिय वैष्णववाद के संस्थापक भी थे। उनके अनुयायी उन्हें श्रीकृष्ण का अवतार भी मानते हैं। अत्यधिक गोरे होने के कारण उनका नाम ‘गौरांग’ पड़ गया। उन्होंने जात-पात, ऊंच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी, साथ ही विलुप्त होते वृंदावन को फिर से बसाया। उनके बारे में अचंभित करने वाले बहुत से किस्से सुनने को मिलते हैं। कहा जाता है, कि इनका जन्म संध्याकाल में सिंह लग्न में चंद्र ग्रहण के समय हुआ था। उस दौरान बहुत से लोग शुद्धि के लिए हरिनाम का जाप करते हुए गंगा स्नान के लिए जा रहे थे। तभी विद्वान ब्राह्मणों ने उनकी जन्मकुण्डली के ग्रहों और नक्षत्रों को देखते हुए यह भविष्यवाणी की, कि यह बालक जीवन पर्यन्त ‘हरिनाम’ का प्रचार करेगा।
गया की यात्रा ने उनका जीवन पूरी तरह से बदल कर रख दिया। मान्यता है कि गया से वापसी की यात्रा के दौरान उनको भगवान कृष्ण के दर्शन हुए। इससे उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। नादिया वापस लौटने के बाद निमाई ने शिक्षक का काम छोड़ दिया। अब वे पूरी तरह से कृण्ण भक्त हो गए थे। उनकी भक्ति की चर्चा जब शुरू हुई तो लोग उनके पास जुटने लगे। इस तरह चैतन्य महाप्रभु ने गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय की नींव डालने का काम किया। इसके बाद चैतन्य ने नादिया छोड़कर उड़ीसा के पुरी में रहना शुरू किया। चैतन्य महाप्रभु का साफ कहना था कि ईश्वर की भक्ति या उसकी कृपा हासिल करने के लिए मंदिरों में जाना जरूरी नहीं है. उसके लिए केवल मन में भक्ति जरूरी है, जो हर इंसान को हासिल है।