महान वीरांगना रानी दुर्गावती जी की जयंती : जे डी यू- ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने किया नमन, जानें, कौन थीं ये वीरांगना

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। शौर्य एवं पराक्रम की प्रतिमूर्ति राज्य व धर्म की रक्षा के लिये अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाली महान वीरांगना रानी दुर्गावती जी की आज जयंती है। इस मौके पर : जे डी यू- ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने उन्हें नमन करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि दी है। उन्होंने कहा कि अपनी वीरता एवं युद्ध कौशल से मुगल शासकों को नतमस्तक कराने वाली रानी दुर्गावती का बलिदान अनंत काल तक भारतीय इतिहास में अमर रहेगा।

“चंदेलों की बेटी थी, गौंडवाने की रानी थी।,
चंडी थी रणचंडी थी, वह दुर्गा भवानी थी।”

मुगल शासकों को अपने पराक्रम से पस्त करने वाले वीर योद्धाओं में रानी दुर्गावती का नाम भी शामिल है. उन्होंने आखिरी दम तक मुगल सेना का सामना किया और उसकी हसरतों को कभी पूरा नहीं होने दिया. 24 जून, 1564 को यह युद्धभूमि में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गईं. रानी दुर्गावती का जन्म 1524 में हुआ था और वह कलिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं।

वीरांगना रानी दुर्गावती ने ऐसे दिया था अकबर को मुंहतोड़ जवाब :

गोंडवाना के राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह से उनका विवाह हुआ था. मध्य प्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र में रहने वाले गोंड वंशज 4 राज्यों पर राज करते थे, गढ़-मंडला, देवगढ़, चंदा और खेरला. दुर्गावती के पति दलपत शाह का अधिकार गढ़-मंडला पर था. दुर्भाग्यवश विवाह के 4 वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया. इसलिए उन्होंने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया, वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केंद्र था. रानी दुर्गावती पराक्रमी होने के साथ ही बेहद खूबसूरत भी थीं. इसलिए जब मानिकपुर के सूबेदार ख्वाजा अब्दुल मजीद खां ने रानी दुर्गावती के विरुद्ध अकबर को उकसाया तो वह उन्हें रानी बनाने के ख्वाब देखने लगा. कहा जाता है कि अकबर ने उन्हें एक सोने का पिंजरा भेजकर कहा था कि रानियों को महल के अंदर ही सीमित रहना चाहिए, लेकिन दुर्गावती ने ऐसा जवाब दिया कि अकबर तिलमिला उठा. कहा जाता है कि मुगल बादशाह अकबर की विशाल सेना को रानी दुर्गावती ने तीन बार हराया था.

रानी दुर्गावती ने अकबर के जुल्म के आगे झुकने से इंकार कर स्वतंत्रता और अस्मिता के लिए युद्ध भूमि को चुना और कई बार शत्रुओं को पराजित करते हुए 24 जून 1564 को बलिदान दे दिया. कहा जाता है कि सूबेदार बाजबहादुर ने भी रानी दुर्गावती पर बुरी नजर डाली थी और उसे भी मुंह की खानी पड़ी. दूसरी बार के युद्ध में दुर्गावती ने उसकी पूरी सेना का सफाया कर दिया और फिर वह कभी पलटकर नहीं आया. वीरांगना रानी महिलाओं को कमजोर समझने वालों के लिए एक उदहारण थीं, उन्होंने 16 वर्ष तक गोंडवाना साम्राज्य पर राज किया. मध्यप्रदेश का रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय उन्हीं के नाम पर है।

”वो तीर थी, तलवार थी, भालों और तोपों का वार थी,
सिंह की हुंकार थी, शत्रुओं का संहार थी।”

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