भागलपुर जिला बिजली के लिए हुई लड़ाई की वजह से भी जाना जाता है एक वक्त था जब महज बिजली के पोल के लिए भागलपुर में करीब 27 लाशें बिछ गई थी. दो गांव के बीच पोल गाड़ने को लेकर यह लड़ाई शुरू हुई और यह करीब दो दशक तक चलती रही और एक-एक कर करीब 27 मर्डर हुई. यह कहानी है भागलपुर के कोइली व खुटहा गांव की यह कहानी है साल 1991 की जब यहां पर सिर्फ एक पोल के लिए दो गांव के बीच मूंछ की लड़ाई छिड़ गई. मूंछ की लड़ाई छिड़ना, मतलब वर्चस्व की लड़ाई छिड़ गई.
उन्होंने बताया कि तब मैं महज 9 से 10 साल का रहा था जब यह कहानी मेरे गांव में हुई थी. उस समय पहली बार गांव में बिजली आ रही थी. लालू यादव की सरकार थी और बिजली का पोल कोइली गांव के पोखर के समीप गिरा था, लेकिन कुछ लोगों ने उस पोल को रात को चुरा लिया. इसके बाद यह विवाद बढ़ गया. कोइली गांव के लोगों ने खुटहा गांव के लोगों के ऊपर एफआईआर दर्ज करा दिया. इसके बाद दोनों के बीच विवाद बढ़ गया और जब पोल गाड़ने की बारी आई तब दोनों के बीच हाथ में हाथ मिलाकर लड़ाई शुरू हो गई दोनों गांव के लोगों का कहना था कि जो जीतेगा उसी के यहां पोल गड़ेगा.
दोनों गांव के लोग गांव से महज डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर चिचोरी पोखर के पास इकट्ठा हो गए, लड़ाई शुरू हो गई,मुखिया देवेंद्र यादव बताते हैं कि पहली बार चिचोरी पोखर से इस लड़ाई की शुरुआत होती है. एक पक्ष इस पोखर पर तो दूसरा वर्तमान मुखिया देवेंद्र यादव के घर के समीप जुटते है. देवेंद्र यादव बताते हैं कि सुबह से दोनों गांव में गोलीबारी शुरू हो गई. दोनों ओर से राइफल, मास्केट समेत अन्य हथियार से जमकर फायरिंग शुरू हो गई. देवेंद्र यादव बताते हैं कि गोलियों की तड़तड़ाहट से पूरा इलाका गूंज रहा था. दोनों तरफ से खूब गोलियां चली. उस दिन चिचोरी पोखर के समीप 21 अप्रैल 1991 को गोली लगने से एक व्यक्ति रंजीत यादव की मौत हो गई इसके बाद यह दुश्मनी और बढ़ गई. देवेन्द्र यादव बताते हैं कि उस समय जो भी हुआ वो महज न समझी या कम पढ़े लिखे होने के वजह से हुआ. लेकिन इससे ये गांव काफी पीछे चला गया. उन्होंने बताया कि अगर ऐसा कुछ होता है तो बात से मामला सुलझा लेना चाहिए. गांव का विकास पूर्ण रूपेण रुक जाता है.