बिहार के ग्रामीण इलाकों में स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने को लेकर लोगों की नाराजगी लगातार सामने आ रही है। विरोध का मुख्य कारण है – गलतफहमियां, अधूरी जानकारी और बिलिंग प्रक्रिया पर लोगों का अविश्वास। कई ग्रामीणों को डर है कि स्मार्ट मीटर से बिजली का बिल बढ़ जाएगा या उन्हें बिजली की कटौती झेलनी पड़ेगी। जबकि सच्चाई यह है कि ये मीटर उपभोक्ताओं को ज्यादा पारदर्शिता और खपत पर नियंत्रण देते हैं। लेकिन जब तक सही जानकारी नहीं पहुंचेगी, भ्रम बने रहेंगे।स्थिति को सुधारने के लिए बिजली वितरण कंपनी ने एक नई रणनीति बनाई है। अब सबसे पहले गांव के मुखिया, सरपंच और अन्य जनप्रतिनिधियों के घरों में स्मार्ट मीटर लगाए जाएंगे।
इसका मकसद यह है कि जब गांव के नेता खुद इस नई तकनीक को अपनाएंगे, तो बाकी लोग भी भरोसे के साथ इसे स्वीकार करेंगे। जनप्रतिनिधि बदलाव का उदाहरण बनेंगे, जिससे ग्रामीणों की गलत धारणाएं दूर होंगी।साथ ही, पंचायत भवन, स्कूल और अन्य सरकारी इमारतों में भी स्मार्ट मीटर लगाए जा रहे हैं ताकि लोग नए और पुराने मीटरों के बीच फर्क खुद देख सकें। कंपनी का मानना है कि विरोध की जड़ में जानकारी की कमी है, जिसे व्यापक जागरूकता अभियान से खत्म किया जा सकता है।इसके लिए जगह-जगह बैनर, पोस्टर, पंपलेट और ई-रिक्शा के जरिए संदेश फैलाया जा रहा है। स्थानीय कलाकार और लोकगायक भी इस अभियान में शामिल किए गए हैं, जो गांव-गांव जाकर लोगों को मीटर के फायदे समझा रहे हैं।
इन प्रयासों का असर दिखने लगा है – लोग अब समझने लगे हैं कि स्मार्ट मीटर से उन्हें अपनी बिजली खपत पर बेहतर नियंत्रण मिलता है और विवाद भी कम होते हैं।अब तक बिहार में 63 लाख से ज्यादा स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाए जा चुके हैं, लेकिन कुछ इलाकों में विरोध अब भी जारी है। इससे साफ है कि अभी भी बड़े स्तर पर जनजागरूकता की जरूरत है। कंपनी ने साफ किया है कि जहां विरोध ज्यादा होगा, वहां जिला प्रशासन की मदद ली जाएगी और निगरानी बढ़ाई जाएगी।
बिलिंग प्रक्रिया में पारदर्शिता-
ग्रामीण क्षेत्रों में स्मार्ट मीटर के विरोध का एक अहम कारण है—बिलिंग से जुड़ी शिकायतें और पारदर्शिता की कमी। इसे गंभीरता से लेते हुए बिजली कंपनी ने बिल से जुड़ी समस्याओं का तुरंत समाधान करने के निर्देश दिए हैं। उपभोक्ताओं को बताया जा रहा है कि प्रीपेड मीटर में ग्राहक पहले से भुगतान करता है और अपनी खपत को रीयल टाइम में देख सकता है। इससे गलत बिल की आशंका बहुत कम हो जाती है और बिजली का उपयोग भी नियंत्रित रहता है।इस पूरी प्रक्रिया का मकसद है ग्रामीणों में भरोसा पैदा करना, तकनीक के प्रति सकारात्मक सोच विकसित करना और भविष्य की ओर एक पारदर्शी कदम बढ़ाना।