नहाय-खाय के साथ कल से शुरू होगा चैती छठ का पर्व, जानें नहाए-खाय, खरना की सही तारीख और अर्घ्य का मुहूर्त

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। पूरे भारत में छठ पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन बिहार और यहां के रहने वालों के लिए इसका विशेष महत्व है। पूरे बिहार में धूमधाम से मनाए जाने वाले छठ महापर्व की एक अलग ही छटा देखने को मिलती है। यह त्योहार साल में दो बार मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, एक चैत्र माह और दूसरा कार्तिक मास में छठ पर्व मनाया जाता है।

5 अप्रैल से छठ की शुरूआत

इस साल 5 अप्रैल यानी मंगलवार से नहाए खाए के साथ चैती छठ महापर्व की शुरुआत हो रही है। यूं तो कार्तिक मास में आने वाले छठ पर्व को अधिक महत्व दिया जाता है लेकिन चैती छठ का महत्व पूर्वांचल के लोगों के लिए एक समान ही होता है। इस पर्व से कई मान्यताएं जुड़ी हुई है। कार्तिक मास का छठ पर्व और चैती छठ दोनों में ही आस्था समान है। यह पर्व सूर्य देव की उपासना के लिए प्रसिद्ध है और छठ देवी भगवान सूर्य की बहन हैं। इसलिए छठ पर्व पर छठ देवी को प्रसन्न करने के लिए सूर्य देव की पूजा-अर्चना की जाती है। किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर सूर्य देव की अराधना की जाती है।

पहला दिन नहाय-खाय

चैती छठ पूजा के पहले दिन नहाय खाय होता है। इस दिन कद्दू भात का प्रसाद बनाया जाता है। नादाल कद्दू की सब्जी, साग और अरवा चावल का भात प्रसाद के रूप में बनता है। फिर अगले दिन खरना का व्रत किया जाता है। खरना व्रत की संध्याकाल में उपासक प्रसाद के रूप में गुड-खीर, रोटी और फल का सेवन करते हैं और फिर अगले 36 घंटों तक निर्जला व्रत रखते हैं। मान्यता है खरना पूजन से छठ देवी की कृपा प्राप्त होती है और मां घर में वास करती हैं। छठ पूजा में षष्ठी तिथि का अहम मानी जाती है इस दिन नदी या जलाशय के तट पर उदीयमान सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है और पर्व का समापन करते हैं।

दरअसल, नई फसल के बाद किसान परिवारों में चैत्र महीने में होने वाले सूर्य उपासना के इस महापर्व को धूमधाम से मनाया जाता है। हालांकि गर्मी के कारण 36 घंटे का निर्जला उपवास बहुत ही कठिन होता है लेकिन फिर भी कई लोग चैती छठ को धूमधाम से मनाते हैं। कार्तिक मास के अपेक्षा चैती छठ को कम ही लोग मनाते हैं। चैती छठ के लिए कृत्रिम तालाब कम संख्या में तैयार किए गए हैं।

अर्घ्य की तारीख और समय

चैती छठ पूजा पर अर्घ्य देने के लिए सूर्यास्त का समय 7 अप्रैल को शाम को 5:30 बजे होगा और सूर्योदय का समय 8 अप्रैल को सुबह 6:40 बजे होगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने से महिलाओं को संतान की प्राप्ति होती है। सभी महिलाएं इस व्रत को अपने संतान की दीर्घायु के लिए भी करती हैं। यह व्रत केवल महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुष भी संतान के लिए करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक छठी मैय्या को सूर्य देवता की बहन कहा जाता है। मान्यता है कि छठ पर्व में सूर्योपासना करने से छठ माई प्रसन्न होती हैं और यह परिवार में सुख शांति धन-धान्य से संपन्न करती है।

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