NEWSPR डेस्क। हिंदी स्वराज की संकल्पना को विस्तार देने वाले छत्रपति संभाजी महाराज की आज पुण्यतिथि है। वहीं उनके पुण्यतिथि पर जदयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने उन्हें याद करते हुए नमन किया और श्रद्धांजलि दी है। बता दें कि संभाजी महाराज शिवाजी के पुत्र के रूप में विख्यात हुए थे। इनका जीवन भी अपने पिता छत्रपति शिवाजी महाराज के समान ही देश और हिंदुत्व को समर्पित रहा। संभाजी ने अपने बाल्यपन से ही राज्य की राजनीतिक समस्याओं का निवारण किया था और इन दिनों में मिले संघर्ष के साथ शिक्षा-दीक्षा के कारण ही बाल शम्भुजी राजे कालान्तर में वीर संभाजी राजे बन सके थे।
छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 1657 में 14 मई को पुरंदर किले में हुआ था। लेकिन संभाजी के 2 वर्ष के होने तक सईबाई का देहांत हो गया था, इसलिए संभाजी का पालन-पोषण शिवाजी की मां जीजाबाई ने किया था। संभाजी महाराज को छवा कहकर भी बुलाया जाता था, जिसका मराठी में मतलब होता हैं शावक अर्थात शेर का बच्चा। संभाजी महाराज संस्कृत और 8 अन्य भाषाओ के ज्ञाता थे।
11 जून 1665 को पुरन्दर की संधि में शिवाजी ने यह सहमती दी थी, कि उनका पुत्र मुगल सेना को अपनी सेवाए देगा, जिस कारण मात्र 8 साल के संभाजी ने अपने पिता के साथ बीजापुर सरकार के खिलाफ औरंगजेब का साथ दिया था। शिवाजी और संभाजी ने खुद को औरंगजेब के दरबार में प्रस्तुत किया, जहां उन्हें नजरबंद करने का आदेश दे दिया गया, लेकिन वो वहां से किसी तरह बचकर भाग निकलने में सफल हुए।
संभाजी मुस्कुराते हुए भगवान् शिव की आरधना कर रहे थे और मुगलों की तरफ गर्व भरी दृष्टि से देख रहे थे। इस पर उनकी आंखे निकाल दी गयी और फिर उनके दोनों हाथ भी एक-एक कर काट दिए गए और धीरे-धीरे हर दिन संभाजी को प्रताड़ित किया जाने लगा। संभाजी के दिमाग में तब भी अपने पिताजी वीर शिवाजी की यादें ही थी, जो उन्हें प्रतिक्षण इन विपरीत परिस्थिति का सामना करने के लिए प्रेरित कर रही थी। हाथ काटने के भी लगभग 2 सप्ताह के बाद 11 मार्च 1689 को उनका सर भी धड़ से अलग किया गया। उनका कटा हुआ सर महाराष्ट्र के कस्बों में जनता के सामने चौराहों पर रखा गया, जिससे की मराठाओं में मुगलों का भी व्याप्त हो सके।