इंडिया में 5 हज़ार रुपये किलो बिकने वाले ज्ञानपुरी-बंसरी चिप्स, विदेश जाते ही 2 लाख रुपये हो जाती है कीमत

Sanjeev Shrivastava

NEWSPR डेस्क। नई दिल्ली- साल के 12 महीने डिमांड में रहने वाले ज्ञानपुरी-बंसरी के चिप्स देश में 5 हज़ार रुपये किलो तक बिक रहे हैं. लेकिन भारतीय सीमा को पार कर दूसरे देशों में पहुंचते ही इनके रेट 2 लाख रुपये किलो तक हो जाते हैं. यूपी के इटावा और पश्चिम बंगाल के 24 परगना में ज्ञानपुरी-बंसरी के यह खास चिप्स तैयार किए जा रहे हैं. ज्ञानपुरी-बंसरी एक जगह है, इसी के नाम पर कछुओं की तीन खास प्रजाति को ज्ञानपुर-बंसरी कहा जाता है. यह सबसे ज़्यादा इटावा में पाई जाती है. यह इलाका राष्ट्रीय चंबल सेंचूरी में आता है. बावजूद इसके यहां से बड़ी संख्या में कछुओं की तस्करी हो रही है.

कछुए के पेट से बनाए जाते हैं चिप्स

पर्यावरणविद और गंगा अभियान से जुड़े रहे राजीव चौहान ने इस तस्करी का खुलासा करते हुए बताया, चंबल नदी से लगे आगरा के पिनहाट और इटावा के ज्ञानपुरी और बंसरी में निलसोनिया गैंगटिस और चित्रा इंडिका तीन ऐसी प्रजातियां हैं जिनका इस्तेमाल चिप्स बनाने में किया जाता है. कछुए के पेट की स्किन को प्लैस्ट्रान कहा जाता है. इसी प्लैस्ट्रान के चिप्स बनाए जाते हैं. प्लैस्ट्रान को काटकर अलग कर लिया जाता है. फिर इसे उबालकर सुखाया जाता है. इसके बाद इसे बंगाल के रास्ते विदेशों में भेज दिया जाता है. गर्मी में प्लैस्ट्रान के चिप्स बनाए जाते हैं तो सर्दियों में जिंदा कछुओं की तस्करी की जाती है, क्योंकि सर्दियों में तस्करी करने में कोई परेशानी नहीं आती है.

थाईलैंड, मलेशिया और सिंगापुर में 2 लाख रुपये किलो बिकते हैं चिप्स

राजीव चौहान के अनुसार स्थानीय तस्करों से मिली जानकरी के मुताबिक कछुओं को पकड़ने और उनके चिप्स बनाने वाले 5 हज़ार रुपये किलो के हिसाब से ज्ञानपुरी और बंसरी में निलसोनिया गैंगटिस और चित्रा इंडिका कछुओं के चिप्स बेचते हैं. इटावा-पिनहाट से यह चिप्स 24 परगना पहुंचाए जाते हैं. जहां से यह थाईलैंड, मलेशिया और सिंगापुर को तस्करी कर दिए जाते हैं. तस्करों के अनुसार इन तीन देशों में पहुंचते ही चिप्स 2 लाख रुपये किलो तक बिकने लगता है. एक किलो वजन के कछुए में से 250 ग्राम तक चिप्स निकाल आते हैं.

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