NEWSPR/DESK : हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष उड़ीसा में आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को यानी इस वर्ष 12 जुलाई से शुरू हो रही जगन्नाथ रथ यात्रा का समापन 20 जुलाई को होगा। हिन्दू धर्म में ये बेहद ही पवित्र त्योहार माना जाता है इसलिए हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा का भव्य आयोजन किया जाता है। कहते हैं कि इस यात्रा के माध्यम से भगवान जगन्नाथ साल में एक बार प्रसिध्द गुंडिचा माता के मंदिर में जाते हैं। इस दौरान भगवान को ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन 108 पानी के घड़ों से स्नान कराया जाता है, और जिस कुंए से पानी निकाला जाता है उस कुंए को दोबारा ढंक दिया जाता है अर्थात् वह कुंआ साल में सिर्फ एक ही बार खोला जाता है।
भगवान की प्रतिमा का निर्माण
जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में विख्यात है। हर साल भगवान जगन्नाथ सहित बलभ्रद और सुभद्रा की प्रतिमाएं नीम की लकड़ी से बनाई जाती हैं, इस साल भी ये प्रतिमाएं नीम की लकड़ी से बनाई जाएंगी। इस दौरान रंगों का भी विशेष ध्यान दिया जाता है। भगवान जगन्नाथ जी का रंग सांवला होने के कारण नीम की उसी लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है जो सांवले रंग में छिप जाए। वहीं दूसरी ओर भगवान जगन्नाथ के भाई-बहन का रंग गोरा होता है इसलिए उनकी मूर्तियों को हल्के रंग की नीम की लकड़ी का प्रयोग कर उन्हे बनाया जाता है।
खास तरह से होता है रथ का निर्माण
पुरी में जब रथ यात्रा निकाली जाती है तो समस्त भक्तों की नजरें उस रथ पर टिकी होती हैं और सभी इस दौरान भगवान से आशीष प्राप्त करते हैं। इन तीनों रथों का निर्माण एक खास तरह से किया जाता है। इनका आकार अलग-अलग होता है। ये रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते हैं। भगवान जगन्नाथ का रथ अन्य रथों की तुलना में बड़ा होता है और इसका रंग लाल पीला होता है। रथ यात्रा के दौरान सबसे पहले सुभद्रा का रथ होता है उसके बाद बलभद्र का और फिर अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ होता है
हर साल होता है नए रथों का निर्माण
हर साल पुरी में आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है। भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष कहते हैं जिसकी ऊंचाई 45.6 फुट होती है। इसके बाद बलराम का रथ आता है जिसका नाम ताल ध्वज होता है इसकी ऊंचाई 45 फुट होती है। वहीं सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फुट ऊंचा होता है। अक्षय तृतीया से नए रथों का निर्माण आरंभ हो जाता है। बता दें कि हर साल नए रथों का निर्माण होता है। खास बात तो यह है कि इन रथों को बनाने में किसी भी प्रकार की कील या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता है।