NEWSPR डेस्क। जंग-ए-आजादी के महानायाक अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ की आज जयंती है। इस मौके पर जेडीयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने उन्हे नमन करते हुए श्रद्धांजलि दी। इस मौके पर उन्होंने कहा कि अशफ़ाक़ उल्लाह ख़ाँ को याद करना उनके विचारों को भी याद करना है। अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भारत माँ में सच्चे सपूत थे. मात्र 27 वर्ष की उम्र में अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ ने मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों का बलिदान देकर फांसी के फंदे को चूम लिया था।
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ एक बेहतरीन उर्दू शायर भी थे. अपने अन्य मित्रों के साथ अशफ़ाक उल्ला खां ने काकोरी कांड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था।
अशफ़ाक़ का जन्म 22 अक्टूबर सन् 1900 में शाहजहांपुर के एक संपन्न जमींदार परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम शफ़ीक़ुल्ला खान और माता जी का नाम मज़हरुनीसा था। अशफ़ाक़ जब सातवीं कक्षा में थे तभी उनके स्कूल में अंग्रेज़ पुलिस ने `मैनपुरी षडयंत्र केस’ (1918) के सिलसिले में राजाराम भारतीय को पकड़ने के लिए छापा मारा था। यूं तो अशफ़ाक़ बंगाल के क्रांतिकारी खुदीराम बोस और कन्हाई लाल दत्त की शहादत से प्रभावित थे लेकिन उनकी आँखों के सामने हुई इस घटना ने उनके ऊपर काफी असर डाला और वे क्रांतिकारी पार्टी, `हिप्रस’ यानी हिंदुस्तान प्रजातंत्र संघ (जो बाद `हिसप्रस’ यानी `हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ’ बना) से संपर्क करने की कोशिश करने लगे। बहुत जद्दोजहद के बाद उनकी मुलाकात `मैनपुरी षडयंत्र’ में ही फरार रामप्रसाद बिस्मिल से हुई और वे क्रांतिकारी पार्टी में शामिल हुए।
देश पर शहीद हुए अशफाक उल्लाह खां की रचनाएं:
• कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएँगे, आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे।
• हटने के नहीं पीछे, डर कर कभी जुल्मों से, तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे।
• बेशस्त्र नहीं है हम, बल है हमें चरखे का, चरखे से जमीं को हम, ता चर्ख गुँजा देंगे।
• परवा नहीं कुछ दम की, गम की नहीं, मातम की, है जान हथेली पर, एक दम में गवाँ देंगे।
• उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज न निकालेंगे, तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे।
• सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका, चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे।
• दिलवाओ हमें फाँसी, ऐलान से कहते हैं, खूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे।
• मुसाफ़िर जो अंडमान के तूने बनाए ज़ालिम, आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे।