मदन मोहन मालवीय की पुण्यतिथि, जे डी यू- ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने दी ‘महामाना’ को श्रद्धांजलि

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक और भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय की आज यानी 12 नवंबर को पुण्यतिथि है। इस अवसर पर जे डी यू- ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने नमन करते हुए श्रद्धांजलि दी है। साथ ही उन्होंने कहा कि मदन मोहन मालवीय एक महान स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, पत्रकार और वकील थे। संजीव श्रीवास्तव ने भारत के निर्माण में उनके बड़े और अहम योगदान को सराहा है।

मदन मोहन मालवीय का जन्म स्थान इलाहाबाद है। इनके पिता का नाम पंडित ब्रजनाथ और माता का नाम मूनादेवी था। महामना के पिता संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे। मात्र 5 साल की आयु में उनके माता-पिता ने उन्हें संस्कृत भाषा में प्रारंभिक शिक्षा दिलवाने के लिए पंडित हरदेव धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला में भर्ती किया। महामना ने वहां से प्राइमरी परीक्षा पास की। विभिन्न स्कूलों एवं कॉलेजों से होते हुए उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से बी.ए. की उपाधि प्राप्त की।

पंडित मदन मोहन मालवीय ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेकर 35 साल तक कांग्रेस की सेवा की। उन्हें सन्‌ 1909, 1918, 1930 और 1932 में कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। मालवीयजी एक प्रख्यात वकील भी थे। एक वकील के रूप में उनकी सबसे बड़ी सफलता चौरीचौरा कांड के अभियुक्तों को फांसी से बचा लेने की थी। चौरी-चौरा कांड में 170 भारतीयों को सजा-ए-मौत देने का ऐलान किया गया था, लेकिन महामना ने अपनी योग्यता और तर्क के बल पर 151 लोगों को फांसी के फंदे से छुड़ा लिया था।

शिक्षा के क्षेत्र में महामना का सबसे बड़ा योगदान काशी हिंदू विश्वविद्यालय के रूप में दुनिया के सामने आया था। उन्होंने एक ऐसी यूनिवर्सिटी बनाने का प्रण लिया था, जिसमें प्राचीन भारतीय परंपराओं को कायम रखते हुए देश-दुनिया में हो रही तकनीकी प्रगति की भी शिक्षा दी जाए। अंतत: उन्होंने अपना यह प्रण पूरा भी किया। यूनिवर्सिटी बनवाने के लिए उन्होंने दिन रात मेहनत की और 1916 में भारत को बीएचयू के रूप में देश को शिक्षा के क्षेत्र में एक अनमोल तोहफा दे दिया।

मदन मोहन मालवीय हिंदू महासभा के सबसे प्रारंभिक एवं असरदार नेताओं में से एक थे। वह स्वभाव में बड़े उदार, सरल और शांतिप्रिय व्यक्ति थे। उनके कार्यों और उनके व्यवहार से प्रभावित होकर ही जनमानस ने उन्हें ‘महामना’ कहकर पुकारता था। जिंदगी भर देश और समाज की सेवा में लगे रहने वाले महामना का वाराणसी में 12 नवंबर 1946 को 85 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।

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