पटना डेस्क
मधेपुरा: मनुष्य एक विवेकशील एवं जिज्ञासु प्राणी है। मानव के मन में जीवन एवं जगत को लेकर हमेशा उत्सुकता रही है। यही उत्सुकता हमें शोध की ओर प्रेरित करती है। यह बातें आयोजन समिति के मुख्य संरक्षक बीएनएमयू के कुलपति प्रो.(डॉ.) ज्ञानंजय द्विवेदी ने कही। वे शनिवार को भारतीय राज्य विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में अनुसंधान और नवाचार की चुनौतियां और अवसर विषयक एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेबीनार में उद्घाटनकर्ता के रूप में बोल रहे थे।
कुलपति ने कहा कि मानव सभ्यता को गति देने में शोध की महती भूमिका रही है। शोध के माध्यम से हम देशकाल की चुनौतियों का सामना करते हैं और जीवन एवं जगत से संबंधित जिज्ञासाओं का उत्तर देते हैं। शोध के माध्यम से हम सामाजिक समस्याओं के समाधान का प्रयास करते हैं। शोध के माध्यम से हम नए ज्ञान की प्राप्ति करते हैं और पुराने ज्ञान का परिमार्जन भी करते हैं। हम जिस परिवार, समाज एवं देश में रहे हैं, उसके प्रति हमारी जिम्मेदारी बनती है। हमें समाजोपयोगी शोध को ही बढ़ावा देना चाहिए।संयोजक भाषण डॉ. सत्येंद्र कुमार ने दिया। उन्होंने कहा कि यदि हम भारत में अनुसंधान और नवाचार के क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों को देखें, तो हम शुरुआती स्कूली शिक्षा में गहरी जड़ें पाएंगे। जहां उचित मूल्यांकन प्रणाली की बुनियादी सुविधाओं की कमी है और कम से कम या कोई महत्व नवाचार को नहीं दिया जाता है और महत्वपूर्ण सोच छात्रों को केवल उत्तीर्ण या स्कोर करने के लिए पाठ को पुन: प्रस्तुत करने में रुचि रखते हैं।
प्रधानाचार्य प्रो. (डॉ.) केएस ओझा ने कहा कि भारत में उच्च शिक्षा में दाखिला लेने वाले लगभग 80 प्रतिशत छात्र स्नातक कार्यक्रमों को चलाने वाले इन विश्वविद्यालय परिसरों में शामिल हैं। बुनियादी अनुसंधान के अलावा, विभागों के बीच न्यूनतम बातचीत के कारण, इन परिसरों में अंतःविषय शिक्षा और अनुसंधान की कमी है। इसलिए स्नातक अनुसंधान विभागों के बीच संवाद शुरू करने और संकाय के बीच संबंधों को बढ़ाने के लिए एक तरीके के रूप में काम कर सकता है।अन्य वक्ताओं ने कहा कि भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली आने वाले दशक में एक अभूतपूर्व परिवर्तन का सामना कर रही है। यह परिवर्तन आर्थिक और जनसांख्यिकीय परिवर्तन द्वारा संचालित किया जा रहा है। 2020 तक, भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी, जिसके मध्यम वर्गों के आकार में समान रूप से तेजी से वृद्धि होगी। वर्तमान में, भारत की 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या 25 वर्ष से कम है। 2020 तक भारत सबसे बड़ी तृतीयक-आयु वाले देश के रूप में चीन को पछाड़ देगा। अगले पांच वर्षों में, उच्च शिक्षा के हर पहलू को पुनर्गठित और फिर से तैयार किया जा रहा है। मौजूदा संस्थानों को मजबूत करने पर जोर दिया जाएगा। यकीनन राज्य विश्वविद्यालयों के शासन और वित्त पोषण में सबसे बड़ा सुधार, संघीय सरकार से राज्य सरकारों के लिए उच्च शिक्षा के लिए प्राधिकरण और बजट तैयार करने के लिए एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम चल रहा है।
इस अवसर पर शिक्षाशास्त्र विभाग के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ नरेश कुमार, कुलपति के निजी सहायक शंभू नारायण यादव और पीआरओ डॉ सुधांशु शेखर ने कुलपति को सम्मानित किया। स्वागत भाषण प्रधानाचार्य प्रो. (डॉ.) केएस ओझा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन संयोजक डॉ सत्येंद्र कुमार ने किया। इस अवसर पर सचिव डॉ नवीन कुमार सिंह, प्रो(डॉ.) मोहम्मद महफुजुल हक, प्रो (डॉ.) राज कुमार जोशी, डॉ राम चेपियाला, डॉ नरेंद्र कुमार, डॉ सुभाष सिंह, डॉ निशांत वर्मा, प्रो (डॉ.) पीएन पीयूष, डॉ अरबिंद कुमार, डॉ कमलेश कुमार, डॉ शेफालिका शेखर, डॉ विवेक कुमार सिंह, डॉ शंभू राय, नवीनचन्द्र यादव, सुजीत कुमार, मुकेश कुमार दास, डॉ. कुमार आशवरिया, डॉ मीरा भारती, डॉ नारायण कुमार, डॉ हरीश खंडेलवाल, रवि कुमार, राणा रणवीर कुमार, डॉ सरोज कुमार, शोभा, स्वस्तिक सिंह, सृष्टि सिंह आदि ने कार्यक्रम में भाग लिया।