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मोकामा में बाहुबलियों पर भारी ‘फैक्टर फैक्ट’, माथा चकरा देगा कैलकुलेशन, जानिए

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NEWSPR डेस्क। पटना मोकामा चुनाव अलग-अलग फैक्टर के जुड़ने से रोचक हो रहा है। साथ ही नए समीकरण से जीत-हार का संतुलन भी बन और बिगड़ रहा है। ये सच है कि मोकामा विधानसभा उपचुनाव एनडीए या महागठबंधन केवल अपने आधार वोट के सहारे नहीं जीत सकते। जीत के लिए आधार वोट से इतर वोट का तड़का लगाना जरूरी है। इस आधार वोटों के समीकरण में वोटों का इजाफा कर उलट-पलट करने के लिए कई अन्य फैक्टर को शामिल करना जरूरी है।

निश्चित रूप से मोकामा विधानसभा का उपचुनाव दलों और गठबंधन के आधार मतों के साथ निर्णायक होना हैं। लेकिन इस उपचुनाव के दौरान कुछ न कुछ ऐसे फैक्टर अचानक से जुड़ जाते हैं, जो चुनाव को एक अलग मोड़ दे देते हैं। ऐसा ही एक प्रभावी फैक्टर इन दिनों मोकामा और गोपालगंज विधानसभा उपचुनाव से जुड़ता दिखता है।

ये फैक्टर है लोजपा नेता और जमुई सांसद चिराग पासवान का इस उपचुनाव में इंट्रेस्ट के साथ हिस्सेदारी करना। पहले चिराग पासवान ने जब दोनों उपचुनाव लड़ने का फैसला लिया, तब ये लगा कि चिराग पासवान की पार्टी के उम्मीदवार अगर किसी को नुकसान करेंगे तो वो है भाजपा। ऐसा इसलिए भी कि लोजपा अगर उम्मीदवार खड़ी करेगी तो एक बात तो तय माना जा रहा था कि पासवान वोट में बंटवारा हो जाएगा। ये कुछ तो लोजपा के उम्मीदवार के हिस्से पड़ता और कुछ चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस के नाम से बंट जाता। लेकिन जैसे ही चिराग पासवान ने इस उपचुनाव में अपना उम्मीदवार नहीं देने का फैसला लिया, इसका फायदा भाजपा को मिलना तय माना जा रहा है।

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मोकामा क्षेत्र की बात करें तो यहां पासवान और ढांढी वोट 15-15 हजार है। इतना वोट मिलना किसी भी पार्टी के लिए वरदान साबित हो सकता है। इसके पहले मोकामा उपचुनाव में सबसे बड़ा फैक्टर सूरजभान सिंह बन गए, जो खुलकर मोकामा की जनसभा में भाजपा के पक्ष में आ खड़े हुए। इसकी राजनीतिक प्रतिक्रिया भी हुई और अचानक से अनंत सिंह के विरोधी रहे विवेकानंद ने अपना समर्थन देकर डैमेज कंट्रोल करने का काम किया।

मोकामा विधानसभा चुनाव पूर्वी और पश्चिमी मोकामा के चुनावी टक्कर में परिवर्तित होता दिख रहा है। पूर्वी मोकामा क्षेत्र भाजपा के उम्मीदवार सोनम देवी के प्रभाव वाला क्षेत्र माना जा रहा है। वहीं, पश्चिम मोकामा महागठबंधन के प्रभाव वाला क्षेत्र माना जा रहा है। इन दोनों क्षेत्रों के वोट पोल का प्रतिशत भी कमोबेश चुनाव को प्रभावित करने वाला साबित हो सकता है। भूमिहार जाति का वोट यहां सबसे ज्यादा है। आमतौर पर सवर्ण को भाजपा का वोटर माना जाता है। भाजपा के कोर वोट में जितनी सेंधमारी महागठबंधन के उम्मीदवार करेंगे उनके लिए ये वरदान भी साबित हो सकता है।

मोकामा विधानसभा क्षेत्र के जातीय समीकरण का एक आकलन ये भी है कि अमूमन यादव और कुर्मी एक-दूसरे के साथ नहीं बल्कि एक-दूसरे के विरुद्ध वोट करते हैं। मोकामा विधानसभा में ये माना जाता है कि जसमार और घमाइला कुर्मी के लगभग 60 हजार मतदाता हैं। कुर्मी के लीडर नीतीश कुमार हैं और राजद के लालू प्रसाद, और अब ये दोनों साथ हैं। अब सवाल ये उठता है कि क्या कुर्मी और यादव अपने सारे मतभेद भुलाकर एक साथ महागठबंधन के प्लेटफॉर्म पर आएंगे? अगर ऐसा होता है तो फायदा महागठबंधन होगा और एक साथ वोट नहीं पड़े तो फायदा एनडीए को होगा।

वैसे पार्टियों के अपने-अपने दावे हैं। भाजपा के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल कहते हैं कि मोकामा में अच्छा वोट बैंक बनता जा रहा है। भाजपा के आधार वोट में कुर्मी और पासवान वोट के इजाफा से पक्ष मजबूत हो गया है। नरेंद्र मोदी के नाम पर मोकामा के अतिपिछड़ा वोट पूरी तरह से भाजपा के पक्ष में गोलबंद है। ये दीगर की राजद के महासचिव रहे निराला यादव ने कहा कि माई समीकरण के साथ अब नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा के कारण करीब 60 हजार कुर्मी और 10 हजार कुशवाहा वोट जुड़ जाने से राजद का जीतना तय माना जा रहा है। भाजपा को तो आधार वोट भी पूरी तरह से खिसक कर राजद की झोली में आ गया है। बहरहाल, ये दलों के अपने-अपने दावे हैं, मगर 3 नवंबर को जो अपने मतदाता को समेट कर अपने पक्ष में करेगा, जीत उसी की होगी।

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