NEWSPR डेस्क। रांची पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारत सरकार की महारत्न कंपनी NTPC पर करीब 1200 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है. पब्लिक सेक्टर वाली किसी भी कंपनी पर लगा यह जुर्माना देश के इतिहास में अब तक का यह सबसे बड़ा है. बता दें, एनटीपीसी के पंकरी बरवाडीह कोल परियोजना में शर्तों के विरूद्ध क्षेत्र की जीवनरेखा दुमुहानी नदी को नष्ट कर अवैध खनन के मामले में बड़कागांव के मंटू सोनी की शिकायत की थी. जिसपर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की केंद्रीय एडवाइजरी कमिटी ने मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर NPV की 5 गुणा राशि 12 प्रतिशत ब्याज के साथ वसूलने का निर्णय लिया है. झारखंड सरकार के वन विभाग के प्रधान सचिव को भी इसे लेकर संबंधित पत्र भेजा गया है.
17 फरवरी को पत्र जारी कर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के असिसटेंट इंस्पेक्टर जनरल ऑफ फॉरेस्ट सुमित भारद्वाज ने उपसमिति से शीघ्र रिपोर्ट जमा करने की बात कही थी. समिति ने भारत सरकार को अप्रैल में ही रिपोर्ट भेजी थी. वहीं पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एडवाइजरी कमेटी ने एनटीपीसी पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद 25 अप्रैल को NPV की 5 गुणा राशि 12 प्रतिशत ब्याज सहित जुर्माना लगाने का फैसला लिया.
भारत सरकार की शर्तों के खिलाफ अवैध खनन मामले में एनटीपीसी और उसके एमडीओ त्रिवेणी सैनिक माइनिंग द्वारा और 156 हेक्टेयर में अवैध खनन मामले में मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय रांची द्वारा एनपीवी का 3.5 प्रतिशत के अनुसार 81 करोड़ जुर्माना लगाने की अनुशंसा की गयी थी. इसके बाद एनटीपीसी के कुल लीज क्षेत्र 1026 हेक्टेयर वन भूमि पर केंद्रीय वन मंत्रालय की एडवाइजरी कमेटी ने एनपीवी का 5 गुणा 12 प्रतिशत ब्याज के साथ जुर्माना लगाने का निर्णय लिया. इस प्रकार 1026 हेक्टेयर और 12 प्रतिशत की गणना करने पर लगभग 1200 करोड़ जुर्माने की राशि होती है.
बता दें, एमडीओ (माइन डेवलपर ऑपरेटर ) द्वारा झारखंड के हजारीबाग जिले के बड़कागांव में एनटीपीसी के पंकरी बरवाडीह कोल परियोजना में भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा फॉरेस्ट क्लियरेंस स्टेज 2 की शर्तों के खिलाफ क्षेत्र की जीवनरेखा दुमुहानी नदी को नष्ट कर उसपर अवैध खनन कर दिया गया था. वहीं इस अवैध खनन के लिए एनटीपीसी ने भारत सरकार की शर्तों में संशोधन भी कराना जरुरी नहीं समझा था. जिसकी शिकायत केंद्रीय मंत्रालय से की गयी थी.
शिकायतकर्ता मंटू सोनी के अधिवक्ता नवेंदु कुमार पटना हाईकोर्ट) के आरोपों और साक्ष्यों की जांच हुई. जिसके बाद वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के कथित उल्लंघन पर विस्तृत विचार-विमर्श के बाद समिति ने क्षेत्र का दौरा करने को लेकर एफएसी की उपसमिति गठित करने की सिफारिश की थी. ताकि उपयोगकर्ता के खनन कार्यों की तुलना में क्षेत्र के हाइड्रोलॉजिकल प्रभाव को देखा जा सकें. वहीं इसकी जानकारी झारखंड राज्य सरकार के वन विभाग के प्रधान सचिव को चिट्ठी लिखकर दी गई. इसके बाद उपसमिति को सामान्यत: त्रिवेणी-सैनिक माइनिंग प्राइवेट लिमिटेड द्वारा विशेष रूप से दुमुहानी नदी और क्षेत्र की जलवायु पारिस्थिति की बदलाव, आकलन और प्रभाव का अध्ययन करने का आदेश दिया गया था. इससे संबंधित शिकायती पत्र भी झारखंड सरकार के प्रधान सचिव को भेजा गया था.
जानकारी के अनुसार, फॉरेस्ट क्लियरेंस की शर्तों के खिलाफ अवैध खनन के मामले में एक सौ एकड़ एरिया में शिकायत मिली थी जिसकी जांच की गई. इसमें पुष्टि होने के उपरांत केंद्रीय एडवाइजरी कमेटी की बैठक हुई जिसके बाद उपसमिति का गठन किया गया. इस बैठक में वन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय के अधिकारी, कृषि मंत्रालय के एडिशनल कमिश्नर ओपी शर्मा, सदस्य के रूप में आईआईटी-आइएसएम धनबाद के प्रो अंशुमाली और एडिशनल पीसीसीएफ झारखंड सरकार की ओर से मौजूद रहे थे.