NEWSPR डेस्क। एक लोकोक्ति तो आपने जरूर सुनी होगी… चिराग तले अंधेरा… कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है मोतिहारी कि हस्तशिल्प कलाकार कुम्हारों के साथ… जी हां दुसरो के घरों को अपने चिराग से प्रकाशवान करने वाले कुम्हारों के साथ भी चिराग तले अंधेरा जैसे कहावत हू-ब-हू चरितार्थ हो रही है । दिन रात हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद भी इन कामगारों के साथ सबसे बड़ी बिडम्बना ये है कि जिस त्योहार के इंतज़ार में ये साल भर आस देखते हैं मेहनत कर दीपावली में प्रयोग आने वाले दिए बनाते हैं उन्ही का जीवन अंधकार में है। चाइनीज सामानों के लगातार बढ़ रहे डिमांड व अत्याधुनिक फैशन के दौर में आज इनकी कलककरी बिलुप्त होने के कगार पर है । दिन रात की मेहनत पर विदेशी लाइट भारी पड़ रही है व लोग अपने पाश्चात्य संस्कृति को भूल आधुनिकता के इस दौर में अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं । बिडम्बना ये है कि आज ये कुम्हार अपनी बेवसी पर खुद आँशु बहा रहे हैं ।
मोतिहारी के कुम्हारों के साथ सबसे बड़ी समस्या ये है कि वे पिछले कई महीनों से इस दीपोत्सव के लिए लाखो की संख्या में बना तो दिया हैं लेकिन आज इनके पास इसका खरीददार ही नहीं है । आलम ये है कि अबतक इनके व इनके परिवार के द्वारा दिन रात एक कर जो दिए बनाये है उसे जलाने वालो में काफी कमी हो गयी है और इनका लागत मूल्य भी इन्हें नही मिल पा रहा है ।साथ ही अगर इन मजदूरों की बात की जाय तो इस कार्य में सैकड़ों की संख्या में बाल मजदूर काम कर रहे हैं ताकि इनका पेट चल सके । ये बच्चे अपनी पढ़ाई के साथ साथ अपनी पारंपरिक कार्य यानी मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य कर सके लेकिन बिक्री की हालत ये है कि इनका ये मंसूबा भी अब इस आधुनिकता के दौर में पूरा नहीं हो पा रहा है ।