मुंशी प्रेमचंद की जयंती आज, जेडीयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने उन्हे किया नमन, पढ़ें कैसे और क्यों लगा प्रेमचंद के नाम के आगे ‘मुंशी’

Patna Desk

NEWSPR डेस्क।  आज हिन्दी और उर्दू के ख्यात साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद (धनपत राय प्रेमचंद) की जयंती है। उनकी जयंती पर जेडीयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष सह प्रवक्ता संजीव श्रीवास्तव ने उन्हें नमन किया और कहा कि प्रेमचंद बेहतरीन भारतीय लेखकों में से एक हैं। उन्होंने कहा कि पहले लोग नींद आने के लिए कहानी सुनाया करते थे। लेकिन कथा जगत में प्रेमचंद के आने के बाद प्रेमचंद की कहानियां सुलाती नहीं बल्कि कई रातों की नींद उड़ा देती है। संजीव श्रीवास्तव ने कहा कि प्रेमचंद जीवन की संगत और असंगत घटनाओं की चर्चा भी अपने लहजे में करते हैं। उनकी कहानियां समाज के विभिन्न चरित्रों का चित्रण तो करती ही है साथ ही नारी जगत की विडंबनाओं का भी जिक्र करती है।

आज से ठीक 141 साल पहले 31 जुलाई,1880 को उत्‍तर प्रदेश के वाराणसी जिले से कुछ 80 किलोमीटर दूर एक गांव लमही में प्रेमचंद का जन्‍म हुआ था. पिता अजाबराय लमही के डाकमुंशी हुआ करते थे. बच्‍चे के जन्‍म पर उसका नाम रखा गया धनपतराय. प्रेमचंद नाम तो उन्‍होंने बाद में खुद रखा अपना, जब उन्‍होंने इस नाम से लिखना शुरू किया. शुरू में वो फारसी भाषा में लिखते थे क्‍योंकि उनकी शुरुआती शिक्षा-दीक्षा भी फारसी में ही हुई थी. प्रेमचंद का बचपन बहुत आसान नहीं था. पिता से बहुत अपनापा नहीं था और मां महज सात बरस की उमर में चल बसी थीं. पिता ने दूसरा विवाह कर लिया. दूसरी मां ने न कभी उन्‍हें मां का प्‍यार दिया और न वो कभी बेटा ही हो पाए. हालांकि पिता का साया भी ज्‍यादा लंबे समय तक सिर पर रहा नहीं. जब वो सिर्फ 16 साल के थे तो पिता भी चल बसे. एक बरस पहले ही उन्‍होंने धनपतराय का विवाह किया था. तब उनकी उम्र सिर्फ 15 साल थी.

इतनी कम उम्र में पिता के निधन के कारण अचानक घर की सारी जिम्‍मेदारियों का बोझ उन पर आन पड़ा. इतनी कम उम्र में इतना दुख, संघर्ष और जीवन के उतार-चढ़ावों ने ही शायद उन्‍हें लेखक बना दिया. प्रेमचंद ने लिखा भी है कि “वही लिखता है, जिसके भीतर कोई पीड़ा, कोई बेचैनी होती है.” ये कहना सिर्फ प्रेमचंद का नहीं है. गैब्रिएल गार्सिया मार्खेज से लेकर ओरहान पामुक तक ने ये कहा है कि लेखन सिर्फ किसी गहरी पीड़ा से ही उपजता है. सुख में तो मनुष्‍य सुखी होने में ही इतना व्‍यस्‍त होता है. सुख से सुख उपज सकता है, सुख से रचना नहीं होती. सच भी है, संसार का कोई सृजन पीड़ा के बगैर संभव नहीं. मां को अपार कष्‍ट और पीड़ा दिए बगैर तो नया जीवन भी संसार में नहीं आता. सृजन का उत्‍स ही दुख है.

15 साल की उम्र में जिनके साथ प्रेमचंद का विवाह हुआ था, उनके बारे में ज्‍यादा कुछ लिखा हुआ नहीं मिलता. रामविलास शर्मा की किताब से इतना ही पता चलता है कि पहली पत्‍नी के साथ उनके संबंध बहुत अच्‍छे नहीं थे. 1906 में शिवरानी देवी के साथ उनका दूसरा विवाह हुआ था. शिवरानी देवी बाल विधवा थीं. उन दोनों की तीन संतानें हुईं- श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव. अमृत राय खुद आगे चलकर लेखक और अनुवादक हुए. उन्‍होंने विश्‍व साहित्‍य की कुछ अनूठी कृतियों का हिंदी में अनुवाद किया है. रॉबर्ट फ्रॉस्‍ट का उपन्‍यास स्‍पार्टाकस उनमें से एक है, जो हिंदी सहित्‍य का अब तक का सबसे उम्‍दा अनुवाद है. अमृत राय ने ‘कलम का सिपाही’ नाम से अपने पिता की लंबी जीवनी भी लिखी थी, जो हिंदी साहित्‍य के सबसे उत्‍कृष्‍ट जीवनियों में से एक है।

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