नार्थ ईस्ट और साउथ इंडिया में बढ़ी शाही और चाइना लीची की डिमांड, 20 हज़ार पौधों का मिला है ऑर्डर, विधिवत तैयारियां है शुरू

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। वैसे तो मुज़फ़्फ़रपुर की शाही लीची की पहचान देश और विदेशों में भी है। अब नार्थ ईस्ट और साउथ इंडिया के लोगों को भी इसका स्वाद पसंद आ रहा है। अब वहां पर भी लीची का पेड़ लगाने की कवायद शुरू कर दी गयी है। लीची के पौधें की डिमांड अचानक से बढ़ गयी है। इन राज्यों में भी अब शाही लीची की बागवानी शुरू कर दी गयी है। मुशहरी स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसन्धान केंद्र में इस साल दोनों जगहों से करीब 20 हज़ार पौधों का ऑर्डर भी मिला है।


हर साल तैयार होते हैं 60 हजार पौधें : लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. श्रीधर पांडेय ने बताया कि लीची के पेड़ में कलम (मिट्टी लगाकर बांधना) बांधा जाता है। करीब 40 दिनों में इसमे जड़ फेंक देता है। फिर इसे काटकर पौधा का आकार दिया जाता है। इसके बाद सप्लाई की जाती है। हर साल करीब 60 हज़ार पौधे अनुसंधान केंद में तैयार किये जाते हैं। जिसमे से 40 हज़ार पौधा काम में आता है। अन्य पौधे कुछ कारणों से खराब हो जाते हैं। तैयार पौधों को देश के विभिन्न हिस्सों में सप्लाई की जाती है। मुज़फ़्फ़रपुर के किसान भी यहां से खरीदकर ले जाते हैं।

वर्मी कम्पोस्ट का घोल चढाते हैं : डॉ. पांडेय ने बताया कि जब पेड़ से जड़ वाले डाली को काटा जाता है तो उसके बाद इसे वर्मी कम्पोस्ट से तैयार किए गए घोल में रखा जाता है। फिर घोल में भींगे हुए डाल को सूखे हुए वर्मी कम्पोस्ट में रखा जाता है। इसके बाद इसे एक प्लास्टिक में लपेट दिया जाता है। एक माह तक यह वहीं पर रहता है। इसके बाद सप्लाई होती है।

15 जून के बाद बांधा जाता है कलम, यह सबसे उत्तम समय : निदेशक बताते हैं की 15 जून के बाद का समय सबसे उत्तम होता है। क्योंकि अभी बरसात गिरती है। इस दौरान पेड़ में कलम बांधने पर जड़ तुरन्त निकल जाता है। फिर 40 दिन बाद इसकी कटाई कर ली जाती है। यह प्रक्रिया अगस्त तक चलती है। उन्होंने बताया कि लीची का पेड़ लगाने का सबसे सही समय फरवरी के महीना होता है। उस समय किसी प्रकार की परेशानी नहीं होती है। बरसता के मौसम में लगाने पर इसका विकास रुक जाता है। बरसात के तुरंत बाद ठंडी पड़ने लगती है। इसलिये फरवरी के महीना सबसे उत्तम है।

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