भ्रष्टाचार की ‘रेत’ पर फिसलते अधिकारी, सरकार की नाक के नीचे बालू माफियाओं का ‘ओवरलोड’ खेल जारी

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। पटना बिहार सरकार के राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत बालू। बालू यानि पीला सोना। चमकती रेत। जिसके बिना विकास के निर्माण की कल्पना अधूरी है। सूबे में हो रहे निर्माण कार्य बिना बालू के संभव नहीं हैं। बालू नदी के पेट में मौजूद वो पीला सोना है, जिसके लिए बालू माफिया कोई भी पाप करने को तैयार हैं। बालू के वैध और अवैध खनन दोनों में भ्रष्टाचार की गंगोत्री बहती है। इसमें डुबकी लगाने वाले खनन विभाग के अफसर के साथ स्थानीय पुलिसकर्मी भी होते हैं। माफिया की मनमानी पर रोक लगाने की जगह उन्हें बचकर निकल जाने का रास्ता इन्हीं अधिकारियों की ओर से दिया जाता है।

आरा-बिहटा के पास सोन नदी से बालू निकालने के बाद हजारों ट्रक रवाना होते हैं। ये ट्रक राज्य के विभिन्न इलाकों में बालू डिमांड के हिसाब से जाते हैं। अकेले पटना जिले में रोजाना बालू से ओवरलोडेड गाड़ियां आती हैं। आपको बता दें कि छपरा, लखीसराय सहित बिहार के कई जिलों में ओवरलोड गाड़ियों पर सख्त कार्रवाई की जाती है। छपरा में भारी संख्या में ऐसे ट्रकों को जब्त किया गया है, जिन्होंने ओवरलोड बालू ढोने का काम किया। छपरा में डीएम-एसपी के नेतृत्व में हुई छापेमारी में सैकड़ों ट्रक और तकरीबन 40 ट्रैक्टर जब्त किए गए हैं। प्रशासन ने इनसे जुर्माने के रूप में करोड़ों रुपये की वसूली की है।

लेकिन ये स्थिति राजधानी पटना में नहीं है। यहां सरकार की नाक के नीचे अवैध खनन का खेल जारी है। उसके साथ ही ओवरलोड ट्रक भी बेरोक-टोक कहीं भी जा रहे हैं। सरकार की नाक के नीचे परिवहन नियमों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। सरकार का इस ओर बिल्कुल ध्यान नहीं है। राजधानी पटना के दानापुर के करीब स्थित एम्स के अलावा सगुना मोड़ के पास ऐसे ओवरलोडेड ट्रक आराम से खड़े रहते हैं। स्थिति ये है कि अनिसाबाद बाइपास सड़क के दोनों किनारे नेशनल हाइवे को अतिक्रमित कर ये ट्रक खड़े रहते हैं। इन ट्रकों की वजह से आए दिन बाइपास पर सड़क दुर्घटना होती है। लेकिन किसी की हिम्मत नहीं कि इन ओवरलोडेड ट्रकों पर कोई कार्रवाई कर सके।

स्थानीय लोगों का आरोप है कि इन ट्रक मालिकों की ओर से जिम्मेदारों के जेब को गर्म कर दिया जाता है। उसके बाद इन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। छपरा जैसे शहर में स्थानीय प्रशासन ओवरलोडेड ट्रक को लेकर चौकस है। कार्रवाई भी हो रही है। वहीं पटना में सरकार की नाक के नीचे प्रशासन मौन बना बैठा है। प्रशासन की लापरवाही से वर्जित इलाकों में भी ओवरलोडेड गाड़ियों का प्रवेश जारी है। सड़क किनारे स्थित दुकानों के मालिक नाम नहीं बताने की शर्त पर कहते हैं कि ट्रैक्टर और ट्रक को खुलेआम पैसे लेकर उन्हें जाने दिया जाता है।

सोन नदी के आस-पास और पटना के बालू घाटों से नजदीक वाले थानों को बालू माफिया मैनेज करके रखते हैं। किसी की चूं करने की हिम्मत नहीं होती है। सबकुछ सेट है। बस माफिया जो चाहें, वो कर सकते हैं। आम आदमी तो दूर की बात पुलिस को भी कार्रवाई करने से पहले हिम्मत जुटानी पड़ती है। सूत्र बताते हैं कि ट्रक महीने का 30 हजार रुपये चुकाते हैं, ओवरलोडेड ट्रक छोड़ने के लिए। ये पैसा ऊपर से नीचे तक जाता है। इस समस्या पर आपको कोई अधिकारी कुछ भी बोलने से बचते दिखेंगे। सबसे बड़ी बात, पटना के विस्कोमान भवन में बैठने वाले अधिकारी न ही बात करते हैं और न ही फोन उठाते हैं। यहां तक कि परिवहन मंत्री को भी कोई जानकारी के लिए फोन करें, उनका फोन भी नहीं उठता है। भ्रष्टाचार की रेत पर फिसलती ओवरलोड की ये कहानी बदस्तुर जारी है।

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