रामायण के रचनाकार आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की जयंती, जेडीयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने दी शुभकामनाएं, जानें इतिहास और महत्व

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। आज रामायण के रचनाकार आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की जयंती है। इस मौके पर जेडीयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं दी है। उन्होंने बताया कि महर्षि वाल्मीकि का जन्म अश्विन मास के शुक्‍ल पक्ष की पूर्णिमा यानी कि शरद पूर्णिमा को हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार वैदिक काल के महान ऋषि वाल्‍मीकि पहले डाकू थे लेकिन जीवन की एक घटना ने उन्हें बदलकर रख दिया। वाल्‍मीकि असाधारण व्यक्तित्व के धनी थे।

वाल्मीकि जयंती शरद पूर्णिमा तिथि पर मनाई जाती है। पूर्णिमा तिथि के लिए पूजा का समय 19 अक्टूबर को शाम 7 बजकर 3 मिनट से शुरू है और आज रात 8 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगा। वाल्मीकि जयंती को परगट दिवस के रूप में भी जाना जाता है।

शास्त्र के अनुसार जब भगवान श्री राम ने माता सीता का त्याग कर दिया तब महर्षि वाल्मीकि ने ही उन्हें अपने आश्रम में जगह दी थी और वहीं माता सीता ने अपने दोनों पुत्र लव और कुश को जन्म दिया था। महर्षि वाल्मीकि को कई भाषाओं का ज्ञाता और संस्कृत भाषा का पहला कवि माना जाता है। उन्होंने रामायण में चौबीस हजार छंद और 77 कांड लिखा है। वाल्मीकि जयंती के दिन महर्षि के उपलब्धियों को याद किया जाता है पवित्र रामायण की पूजा की जाती है। प्रत्येक वर्ष वाल्मीकि जयंती धूमधाम से मनाई जाती है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वाल्मीकि महर्षि कश्यप और अदिति के पोते थे। वह महर्षि वरुण और चर्षणी के नौवें पुत्र थे। उन्हें महर्षि भृगु का भाई भी कहा जाता है। पुराणों में उल्लेख है कि वाल्मीकि को बचपन में एक भीलनी ने चुरा लिया था और भील समाज में ही उनका लालन पालन हुआ। बड़े होने पर वाल्मीकि डाकू बन गए।

पौराणिक कथाओं के अनुसार वाल्मीकि का असली नाम रत्नाकर था, जो पहले लुटेरे हुआ करते थे और उन्होंने नारद मुनि को लूटने की कोशिश की। नारद मुनि ने वाल्मीकि से प्रश्न किया कि क्या परिवार भी तुम्हारे साथ पाप का फल भोगने को तैयार होंगे? जब रत्नाकर ने अपने परिवार से यही प्रश्न पूछा तो उसके परिवार के सदस्य पाप के फल में भागीदार बनने को तैयार नहीं हुए। तब रत्नाकर ने नारद मुनि से माफी मांगी और नारद ने उन्हें राम का नाम जपने की सलाह दी। राम का नाम जपते हुए डाकू रत्नाकर वाल्मीकि बन गए।

महर्षि वाल्मीकि घोर तपस्या में लीन थे तभी उनको दीमकों ने चारों तरफ से घेर लिया। दीमकों ने उनके शरीप पर भी घर बना लिया। अपनी तपस्या पूरी करके वाल्मीकि दीमकों के घर से बाहर निकले। दीमकों के घर को वाल्मीकि कहा जाता है। तभी से उनका नाम महर्षि वाल्मीकि पड़ गया।

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