बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह की जयंती, जेडीयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने दी श्रद्धांजलि, इन कारणों से ‘बिहार केसरी’ कहे जाते हैं कृष्ण सिंह

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री और बिहार केसरी नाम से विख्यात डॉ श्री कृष्ण सिंह की आज जयंती है। इस मौके पर जेडीयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने उन्हें नमन कर श्रद्धांजलि दी। श्री कृष्ण सिंह का जन्म 21 अक्टूबर 1887 को हुआ था। वो मुंगेर जिला के रहने वाले थे। उनका जन्म उनके ननिहाल खंडवा में गांव में हुआ था, लेकिन उनका पैतृक गांव शेखपुरा जिला के मौर गांव में था। डॉ श्रीकृष्ण सिंह के माता का मृत्यु उनके बचपन में ही किसी बीमारी के कारण हो गया था।

भूमि सुधार कानून लाकर जमींदारी प्रथा खत्म किया : डॉक्टर श्री कृष्ण सिंह बिहार के पहले मुख्यमंत्री थे। उन्हे आधुनिक बिहार के निर्माता कहा जाता है। उन्होंने बिहार के विकास के लिए अनेकों कार्य किया। उन्होंने भूमि सुधार कानून लाकर बिहार से जमींदारी प्रथा को खत्म किया। जमींदारी प्रथा खत्म होने के बाद बिहार आर्थिक और सामाजिक रूप से सुदृढ़ होने लगा। उनके कार्यकाल में बिहार में एशिया का सबसे बड़ा इंजीनइरिंग उद्योग, हैवी इंजीनीयरिंग कॉरपोरेशन, भारत का सबसे बड़ा बोकारो इस्पात प्लांट, देश का पहला खाद कारखाना सिंदरी में, बरौनी रिफाइनरी, बरौनी थर्मल पॉवर प्लांट, पतरातू थर्मल पॉवर प्लांट, मैथन हाइडेल पावर स्टेशन एवं कई अन्य नदी घाटी परियोजनाएं स्थापित किया गया। डॉ श्रीकृष्ण सिंह मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए अपने 10 वर्ष के शासनकाल में अनेकों कार्य किए और बिहार को उद्योग कृषि शिक्षा सिंचाई स्वास्थ्य और सामाजिक क्षेत्र में सुदृढ़ और विकसित बना दिया जिसके चलते बिहार राज्य भारत देश में एक विकसित राज्य के रूप में प्रचलित हो गया।

श्रीकृष्ण सिंह नहीं करते थे चुनाव प्रचार : श्रीकृष्ण सिंह जब भी विधानसभा चुनाव में उतरते तो वह प्रचार नहीं करते थे। वे कहते कि अगर वे सच्चे और समाजसेवक हैं तो जनता खुदबखुद उन्हें वोट देगी। क्योंकि जनप्रतिनिधि को पांच साल तक काम करने का मौका मिलता है ऐसे में अगर वे सही से अपनी ड्यूटी का निर्वाह करेंगे तो उन्हें प्रचार करने की क्या जरूरत है।

श्रीकृष्ण सिंह का जन्म 21 अक्टूबर 1887 को ननिहाल नवादा जिले के खनवा गांव में हुआ था। युवा अवस्था से ही श्रीकृष्ण सिंह स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए थे। वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर राजनीति में आए थे। श्रीबाबू 1916 में वाराणसी में गांधीजी को सुनने और देखने पहुंचे थे। 1917 में जब गांधीजी ने चंपारण सत्याग्रह की शुरुआत की थी तब श्रीकृष्ण सिंह ने किसानों के जत्थे का नेतृत्व किया था।

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