अशफाक उल्ला खान की पुण्यतिथि पर जेडीयू प्रदेश के पूर्व कोषाध्यक्ष सह प्रवक्ता संजीव श्रीवास्तव ने किया नमन. जाए दोस्त कैसे बने थे अशफाक उल्ला खान और रामप्रसाद बिस्मिल

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। 1920 के दशक में भारत में क्रांतिकारियों ने देश में अपनी देशभक्ति के कारनामों से लोगों को रोमांचित कर दिया था. भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल जैसे आजादी के दीवानों ने अंग्रेजों से आजादी के लिए अपने तरीके से काम किए और देश के युवा पीढ़ी के लिए एक मिसाल बने. इन्हीं में से एक प्रेरणादायी व्यक्तित्व थे अश्फाक उल्ला खान अश्फाक उल्ला खान को क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के दोस्त के रूप में तो जाना ही जाता है, लेकिन जब भी देश में हिंदू मुस्लिम एकता की मिसालें दी जाती हैं तो अश्फाक बिस्मिल की दोस्ती का जिक्र भी जरूर होता है.

शायरी और देशभक्ति
अशफाक उल्ला खान का जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के मोहल्ला एमन जई जलाल नगर के पठान परिवर में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था. पिता शफीक उल्ला खान और मां मजरूहन्निसा बेगम की संतानों में वे सबसे छोटे थे. उन्हें बचपन से ही शायरी का बहुत शौक था. जब वे सातवी कक्षा में थे तब उन्हें अंग्रेजों के जुल्म को अपनी आंखों से देखने का मौका मिला.

स्कूल की घटना
1918 में उनके स्कूल में पुलिस ने छापा मारा और छात्र राजाराम भरतीय को मैनपुरी षड़यंत्र मामले में गिरफ्तार कर लिया है. मैनपुरी कांड में क्रांतिकारियों ने ब्रिटिशसरकार के खिलाफ औपनिवेशवाद के खिलाफ सहित्य छपवाने के लिए धन जुटाने के लिए लूट की वारदात की थी. इस घटना ने अश्फाक पर गहरा असर डाला और वे क्रांतिकारियों के प्रति आकर्षित हुए.

शायरी से हुई शुरुआत
अश्फाक को बचपन से शायरी का बहुत शौक था. उस समय वे रामप्रसाद बिस्मिल के मुरीद हो चुके थे और उनसे मिलना भी चाहते थे. दोनों की मुलाकात एक मित्र ने कराई. पहले शायरी की वजह से और फिर आजादी और अन्य मुद्दों पर मतैक्य होने के नाते दोनों एक दूसरे के गहरे मित्र होते चले गए .

जहां अश्फाक शुरू से ही उदारवादी सोच के व्यक्तित्व था और लोक कल्याण का भाव उनमें था, बिल्मिल शुरुआत में कट्टर हिंदू की तरह रहा करते थे, लेकिन वे भी जल्दी इस संकुचित सोच से ऊपर उठने में सफल रहे और वैश्विक स्तर पर न्याय और समानता के पैरोकार हो गए. दोस्ती पहल शुरू में अश्फाक ने रामप्रसाद की ओर कदम बढ़ाया जो उनके वरिष्ठ थे. दूसरी तरफ शुरू में बिस्मिल उनके प्रति बहुत उत्साहित भी नहीं थे. धीरे धीरे बिस्मिल ने पाया कि अश्फाक और उनकी खूब जम सकती है और दोनों एक दूसरे के करीब आते गए.

एक साथ करते गए काम
दोनों ने ही पहले असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया फिर स्वराज पार्टी से जुड़े और फिर हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े और एक साथ ही काम करते रहे. दोनो में बेमिसाल साहस और देश के लिए त्याग की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी. उनके राष्ट्रवाद के विचार तो मिलते ही थे आजादी किस तरह से हासिल करनी है इस पर दोनों के विचार एक से ही रहा करते थे. दोनों का न्याय और समानता के प्रति जबर्दस्त आग्रह था.

बेशक दोनों को एक दूसरे का साथ बेहद पसंद था, लेकिन नेतृत्व के मामले में बिस्मिल आगे रहे लेकिन अश्फाक हमेशा बिस्मिल से कंधा से कंधा मिलाकर चलने वालों में से ही रहे और ज्यादा साहसिक दिखाई दिए. अश्फाक बिस्मिल के सबसे बड़े विश्वस्तों में से एक हो गए थे.

एक बार अश्फाक बुरी तरह से बीमार हो गए ते और उन्होंने तेज बुखार में राम राम पुकारना शरू कर दिया उनके परिवार के कुछ वरिष्ठ सदस्यों ने सोचा कि उन पर हिंदू धर्म का गहरा प्रभाव पड़ गया है. फिर अश्फाक के एक दोस्त ने उनके घरवालों को सच्चाई बताई और उनका भ्रम दूर किया. जिसके बाद राम प्रसाद को बुलाया गया तब घरवालों को दोनों के स्नेहिल संबंधों की जानकारी हुई इसके बाद अश्फाक भी जल्दी ठीक हो गए.

 

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