News PR Live
आवाज जनता की

पद्म भूषण से सम्मानित हिंदी के प्रसिद्ध कवि मैथिलीशरण गुप्त की पुण्यतिथि, जेडीयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने किया नमन

- Sponsored -

- Sponsored -

NEWSPR डेस्क। भारत को अपनी कविताओं से मंत्रमुग्ध कर देने वाले राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी की आज 57वीं पुण्यतिथि है। इस मौके पर जेडीयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष सह प्रवक्ता संजीव श्रीवास्तव ने उन्हें नमन किया और श्रद्धांजलि दी। आपको बता दें साल 1964 में आज के ही दिन मैथिलीशरण गुप्त ने अंतिम सांस ली और देश ने एक महान कवि को खो दिया। लेकिन, उनकी हर कविता की हर पंक्ति में वे आज भी जीवित हैं। 1886 में उत्तर प्रदेश के झांसी में जन्मे मैथिलीशरण गुप्त खड़ी बोली के प्रमुख स्तंभ माने जाते थे। करीब 60 साल में उन्होंने 40 से ज्यादा मौलिक काव्य ग्रंथों की रचना की है।

नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो,
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो…

- Sponsored -

- Sponsored -

साहित्य जगत में ‘दद्दा’ नाम से प्रसिद्ध मैथिलीशरण गुप्त को ‘राष्ट्रकवि’ की पदवी महात्‍मा गांधी ने दी थी। उनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई। 1954 में पद्मभूषण से सम्मानित मैथिलीशरण गुप्त की जयन्ती (3 अगस्त) को हर वर्ष ‘कवि दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

वो हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि माने जाते हैं। कुर्ता-पजामा पहने और सर पर टोपी लगाए उनकी छवि हिंदी किताबों की अमिट स्मृति है। स्कूल से लेकर कॉलेज तक के हिंदी-पाठ्यक्रम में जो छवि सदैव शामिल रही, वह महाकवि ‘मैथिलीशरण गुप्त’ की ही थी। जिनकी छवि में जितनी सादगी और साधारणपन है, उतनी ही उनकी लेखनी असाधारण है। वह शब्द-शिल्प और भावों की प्रधानता के अग्रणी हैं जिनका अनुसरण कर कितनी ही पीढ़ियां स्वयं को साहित्य में संपादित कर सकती हैं। मात्र कलम में ही नहीं बल्कि जीवन में भी गुप्त जी यह पंक्तियां चरितार्थ करते हैं। आशा-निराशा के तमाम भंवर का सामना करते हुए उन्होंने साहित्य को साकेत, यशोधरा और भारत-भारती जैसे महाकाव्य दिए।

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

Comments are closed.