पटना हाई कोर्ट ने हर शुक्रवार को होने वाली ऑनलाइन सुनवाई पर उठाया बड़ा सवाल, जानिए पूरा मामला

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। बिहार में पटना हाई कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में बड़ा सवाल खड़ा किया है। हाई कोर्ट ने स्वयं के प्रशासनिक विवेक पर सवाल खड़ा करते हुए, ऑनलाइन सुनवाई की उपयोगिता पर सवाल उठाया है। हाई कोर्ट का कहना है कि ऑनलाइन सुनवाई मुश्किल से एक या दो घंटे चलती है। जो न्यायिक घंटों की बर्बादी का कारण है। हाई कोर्ट ने इस प्रक्रिया में अदालत की कार्रवाई को अपारदर्शी बनने की बात कही है।

पटना हाई कोर्ट ने मामलों की भौतिक सुनवाई बढ़ाने और 21 फरवरी से चालू करने की बात कही है। न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह की एकल पीठ ने गुरुवार को राजेश कुमार की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त एसओपी को जारी रखने पर नाराजगी व्यक्त की, जो पीठ की राय में मुख्य रूप से कागज पर चल रही है। कोविड -19 महामारी के खत्म होने के साथ सामान्य स्थिति की वापसी के कारण ऑनलाइन सुनवाई बेमानी साबित हो रही है।

अदालत ने पाया कि मुख्य न्यायाधीश संजय करोल के प्रशासनिक आदेशों पर बनाए गए उक्त दो प्रावधानों का अब तक पालना बड़े पैमाने पर न्याय वितरण प्रणाली के खिलाफ जाती है। कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को पूरे एसओपी को फिर से देखने का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति सिंह ने कहा कि अदालत की कार्यवाही में सार्वजनिक पहुंच का अधिकार एक खुली अदालत की कार्यवाही के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है। जब तक कि इसे तत्काल और आवश्यक रूप से न्याय के हित में या सार्वजनिक रूप से प्रतिबंधित करने की आवश्यकता न हो। उन्होंने कहा कि जहां तक अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग का संबंध है। यह कुछ अदालतों के लिए शुरू की गई थी। वर्तमान में किसी भी अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग नहीं है। ये वादियों और जनता के लिए पूरी तरह से बंद है।

प्रत्येक शुक्रवार को आयोजित ऑनलाइन सुनवाई के संबंध में, न्यायमूर्ति सिंह ने कहा कि अधिकांश मामले केवल शारीरिक सुनवाई के लिए स्थगित हो जाते हैं। प्रत्येक शुक्रवार को ऐसी ऑनलाइन सुनवाई मुश्किल से एक या दो घंटे तक चलती है, जिससे न्यायिक समय की बर्बादी होती है। पीठ ने अपना खुद का अनुभव साझा करते हुए कहा कि जब उन्होंने मुख्य न्यायाधीश से प्रत्येक शुक्रवार को ऑनलाइन सुनवाई प्रणाली को खत्म करने का विनम्र अनुरोध किया था। तो उस संबंध में किसी भी चर्चा के बिना इसे पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया गया था।

हाई कोर्ट ने कहा कि न्याय वितरण प्रणाली के व्यापक हित को ध्यान में रखते हुए मौजूदा स्थिति को देखते हुए या तो एसओपी का सख्ती से पालन किया जा सकता है या उसी पर फिर से विचार किया जा सकता है।

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