एक समय की ऐतिहासिक राजधानी, जहां कभी शांति और ज्ञान का संदेश गूंजा करता था, आज पानी-पानी है। रविवार देर रात से शुरू हुई तेज बारिश ने पूरे पटना को अस्त-व्यस्त कर दिया है। घंटों तक झमाझम बरसात ने नगर निगम की तैयारियों की कलई खोल दी है।डाक बंगला रोड, पटना जंक्शन, राजेंद्र नगर, बोरिंग रोड और स्टेशन जैसे प्रमुख इलाके जलमग्न हो गए हैं। इन हाईफाई क्षेत्रों में घुटनों तक भरा पानी अब केवल असुविधा नहीं, बल्कि सरकारी व्यवस्था पर सवालिया निशान बन गया है। पटना जंक्शन के रेल ट्रैक तक पर पानी भर गया है, जिससे रेल और सड़क दोनों ही ठप हो चुकी हैं।स्कूल वैन रास्ते में फंसी रहीं, ऑफिस जाने वाले लोग घरों में कैद हो गए और आम जनजीवन पूरी तरह से ठहर गया। सड़कों पर पानी इतना भर गया है कि अब वे नालों या नहरों जैसी लग रही हैं, जहां रोजमर्रा की ज़िंदगी बहती नज़र आ रही है।
हर साल करोड़ों की लागत से जलनिकासी व्यवस्था के दावे किए जाते हैं—नालों की सफाई, मोटर पंप की तैनाती, कंट्रोल रूम की सक्रियता… लेकिन पहली ही तेज बारिश में सबकुछ ध्वस्त हो जाता है।इस बार जलजमाव केवल प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि प्रशासन की विफलता का आईना बन गया है। राहगीर फिसल रहे हैं, वाहन बंद हो रहे हैं, और ट्रैफिक जाम में जिंदगी की रफ्तार थम गई है। लोगों को हर कदम पर डर है—कहीं खुले नाले में न गिर जाएं, कहीं जलभराव में करंट न दौड़ जाए।व्यवसाय, स्कूल, अस्पताल—हर जगह पर बारिश ने जैसे ताला लगा दिया हो। लेकिन यह पानी सिर्फ बादलों का नहीं है, यह प्रशासन की लापरवाही का भी गवाह है।अब सवाल यह नहीं रह गया कि पटना में जलजमाव क्यों हुआ। असली सवाल यह है कि यह हर साल क्यों होता है? कब तक लोग इस बदहाल व्यवस्था का खामियाज़ा भुगतते रहेंगे? क्या एक बार फिर जिम्मेदार सिर्फ जांच बैठाकर अपने दायित्व की इतिश्री कर लेंगे?