प्रसिद्ध रॉकेट वैज्ञानिक और इसरो के पूर्व अध्यक्ष पद्म विभूषित प्रो. सतीश धवन जी की जयंती, जे डी यू- ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने दी विनम्र श्रद्धांजलि

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। भारत के प्रसिद्ध रॉकेट वैज्ञानिक और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष पद्मविभूषण प्रोफेसर सतीश धवन जी की आज जयंती है। इस मौके पर जेडीयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने विनम्र श्रद्धांजलि दी है। उन्होंने कहा कि भारतीय अंतरिक्ष को एक नये आयाम पर पहुंचाने में सतीश धवन जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके कई अनुसंधान के वजह से ही भारत भी अंतरिक्ष की यात्रा करनेवाले राष्ट्रों के संघ में खड़ा हो सका। उन्होंने ग्रामीण शिक्षा, रिमोट सेंसिंग और सेटेलाइट कम्युनिकेशन पर भी कई महत्वपूर्ण शोध किए थे।

वर्ष 1920 में आज ही के दिन देश के जाने-माने अंतरिक्ष वैज्ञानिक सतीश धवन का जन्म हुआ था। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में सतीश धवन की प्रमुख भूमिका थी. उन्हें विक्रम साराभाई के बाद देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, और इसरो का अध्यक्ष बनाया गया था। साल 2002 में उन्हीं के नाम पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा सेंटर का नाम सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र रखा गया ।

वे अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग, भारत सरकार के सचिव भी रहे हैं। उनकी नियुक्ति के बाद के दशक में उन्होंने असाधारण विकास और शानदार उपलब्धियों के दौर से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को निर्देशित किया। जिस समय वे भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के अध्यक्ष थे, उस समय भी उन्होंने परिसीमा परत अनुसंधान के लिए पर्याप्त प्रयास समर्पित किया। उनके सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान हर्मन शिलिच्टिंग की मौलिक पुस्तक बाउंड्री लेटर में प्रस्तुत है।

वे बेंगलूर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के लोकप्रिय प्रोफ़ेसर थे। उन्हें आईआईएससी में भारत के सर्वप्रथम सुपरसोनिक विंड टनल स्थापित करने का श्रेय जाता है। उन्होंने वियुक्त परिसीमा स्तर प्रवाह, तीन-आयामी परिसीमा परत और ट्राइसोनिक प्रवाहों की पुनर्परतबंदी पर अनुसंधान का भी बीड़ा उठाया। प्रोफ़ेसर सतीश धवन ने ग्रामीण शिक्षा, सुदूर संवेदन और उपग्रह संचार पर अग्रगामी प्रयोग किए। उनके प्रयासों से इन्सैट-एक दूरसंचार उपग्रह, आईआरएस-भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह और ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान (पीएसएलवी) जैसी प्रचालनात्मक प्रणालियों का मार्ग प्रशस्त हुआ जिसने भारत को अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले राष्ट्रों के संघ में खड़ा कर दिया।

2002 में उनकी मृत्यु के बाद, दक्षिण भारत के चेन्नई की उत्तरी दिशा में लगभग 100 कि.मी. की दूरी पर श्रीहरिकोटा, आंध्रप्रदेश में स्थित भारतीय उपग्रह प्रमोचन केंद्र का प्रोफ़ेसर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के रूप में पुनर्नामकरण किया गया।

 

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