सरदार उधम सिंह की पुण्यतिथि आज, जलियावाला बाग नरसंहार का बदला लेने के लिए जेडीयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के पूर्व उपाध्यक्ष सह प्रवक्ता संजीव श्रीवास्तव ने किया याद

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। शहीद सरदार उधम सिंह भारतीय इतिहास में एक ऐसा नाम है, जिसे जलियावाला बाग नरसंहार का बदला लेने के लिए याद किया जाता है। सरदाम उधम सिंह नाम उन क्रांतिकारियों में शामिल है, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपनी जान न्यौछावार कर दिया। आज के ही दिन 1940 में उन्हें जनरल ओ डायर की हत्या के जुर्म में ब्रिटेन में फांसी दी गई थी। यानी की आज सरदार उधम सिंह की पुण्यतिथि है।

अनाथालय में गुजरा ज्यादातर जीवन
बता दें कि उधम सिंह का जन्म पंजाब में संगरूर जिले के सुनाम गांव में 26 दिसंबर 1899 को हुआ था। इनके माता-पिता ने इनका नाम शेर सिंह रखा। कम उम्र में ही उनके माता-पिता का निधन हो गया। जिसकी वजह से उन्हें बचपन में ही कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। माता-पिता के गुजर जाने के बाद उनका ज्यादातर जीवन अनाथालय में गुजरा।

जलियावाला बाग नरसंहार
13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन के पंजाब के अमृतसर स्थित जलियावाला बाग में एक जनसभा आयोजित की गई। अंग्रेजों के कड़े विरोध के बाद भी इस जनसभा में सैकड़ों की संख्या में लोग एकत्रित हुए। इस दौरान नेता भाषण भी दे रहे थे। हालांकि इसी दौरान जनसभा में एकत्रित हुए लोगों के लिए काल बनकर जनरल ओ डायर अपने सैनिकों के साथ पहुंच गया। जनसभा देख जनरल डायर ने अपने सैनिकों को जनसभा पर फायरिंग करने का आदेश दे दिया। इस घटना में सैकड़ों की संख्या में निहत्थे लोगों की मौत हो गई। इस घटना को उधम सिंह ने अपने आंखों से देखी। इसके बाद उधम सिंह के अंदर जनरल डायर से बदला लेने की आग जल उठी।

लंदन में लिया जनरल डायर से बदला
जनरल डायर से बदला लेने के लिए सरदार उधम सिंह को करीब 21 वर्ष का इंतजार करना पड़ा। इसके लिए उन्होंने अपना नाम शेर सिंह से बदलकर उधम सिंह कर लिया। इसके बाद वो इंग्लैंड पहुंच गए। इतिहासकारों का मानना है कि उधम सिंह ने जनरल डायर की हत्या 13 मार्च 1940 को गोली मारकर की थी। बता दें उन्होंने जब जनरल डायर पर गोलियां चलाईं थी तो उस समय लंदन के हाल में बैठक चल रही थी। इस बैठक में वो किताब के अंदर बंदूक छिपाकर पहुंचे थे। हालांकि इस घटना के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जिसके बाद उन्हें फांसी की सजा दी गई और 31 जुलाई 1940 को उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया। कहा जाता है कि फांसी के वक्त भी वो मुस्कुरा रहे थे।

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