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कफन बेचकर बेटे को बनाया इंजीनियर, ये कहानी आंखों में ला देगी आंसू

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NEWSPR डेस्क। बिहार का मैंचेस्टर कहे जाने वाले गया का पटवाटोली वैसे तो आईआईटी फैक्ट्री के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यहां से हर साल कई बच्चे आईआईटी की परीक्षा पास करते हैं। इसी पटवाटोली के सुरेश प्रसाद कफन बनाने के छोटे से व्यवसाय में लगे हुए हैं। यह व्यवसाय इनके पिता और दादा जी से होते हुए कई पीढ़ियों से चली आ रही है। सुरेश लगभग 20 से 25 वर्षों से इस व्यवसाय में लगे हुए हैं। वो एक दिन में 200 कफन तैयार करते हैं। इनका बनाया हुआ कफन बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल राज्य के कई शहरों में भेजा जाता है।

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इसे बनाने में 4 रुपयों की लागत आती है और 6 रुपया प्रति पीस कफन थोक विक्रेताओं को बेचा जाता है। यही कफन खुदरा बाजार में 20 रुपये के हिसाब से बिकता है। सुरेश प्रसाद की पत्नी मुन्नी देवी ने बताया कि वो लोग कई वर्षों से इस कारोबार में लगे हुए हैं। उन्होंने इसी कफन बिक्री की कमाई से अपने बेटे विकास को पढ़ाया। अब विकास इंजीनियर बन चुका है और बेंगलुरू में रहते हैं। मुन्नी का कहना है कि उन्हें बहुत खुशी हो रही है कि इसी काम से सभी बच्चों को पढ़ा- लिखाने के साथ पालन-पोषण करती हैं।

अभी भी सुरेश और मुन्नी अपने दो और बच्चों को कंपटीशन की तैयारी करा रहे हैं। ये बच्चे कफन बनाने में अपने घरवालों का साथ भी देते हैं। सुरेश प्रसाद बताया कि वो लगभग 25 साल से इस काम में लगे हुए हैँ। हालांकि उनका व्यवसाय छोटे पैमाने पर है। पूरे घर के परिवार के साथ वो इस काम में लगे हैं। कम पूंजी होने के कारण वो हैंडलूम के जरिए धागा बुनकर कफन तैयार करते हैं। सुरेश प्रसाद का कहना है कि उनके पास अगर पैसों की दिक्कत नहीं होती तो दूसरा कारोबार करते और पावरलूम खरीदते। उधर सरकार और बैंक से भी सुरेश प्रसाद को कोई सुविधा नहीं मिली है। बावजूद इसके उन्होंने अपनी मेहनत से बेटे को इंजीनियर बना दिया।

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