NEWSPR DESK- एक पैरवी और शहाबुद्दीन कहां से कहां पहुंच गया सिवान से आरजेडी सांसद रहे बाहुबली नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन का निधन हो गया है आपको बता दें कि तिहाड़ जेल में सजा काट रहे पूर्व सांसद ने दिल्ली के एक अस्पताल में शनिवार की अहले सुबह अंतिम सांस ली,
कोविड से ग्रसित होने के बाद उन्हें हाईकोर्ट के निर्देश पर अस्पताल में भर्ती कराया गया उनके निधन से समर्थक बहुत दुखी हैं वह समर्थक जो शहाबुद्दीन का सिवान का रॉबिनहुड कहते हैं.
आइए जानते हैं सिवान का रॉबिनहुड से जुड़ी कुछ कहानियां..
बात बिहार के बाहुबलियों की हो रही है तो बाहुबलीओं में आनंत सिंह, रीतलाल यादव, मुन्ना शुक्ला, राजन तिवारी, जैसे कई बाहुबली सरकार के संरक्षण में रहे थे लेकिन बाहुबलियों में से एक नाम ऐसा निकल कर सामने आया जिससे पूरा सिवान खौफ खाता था और वह नाम शहाबुद्दीन का है उनके नाम का डर लोगों के अंदर आने वाले कई दिनों तक कायम रहेगा हम बात कर रहे हैं सिवान के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन की उनकी अपराध की दुनिया में राजनीतिक में आने के पीछे की कहानी बहुत ही दिलचस्प है.
आपको बता दें कि उस शख्स की जिस ने हैरतअंगेज खुलासा किया है उनके अनुसार 90 के दशक में बिहार के अंदर अपराध अपने चरम पर था शहाबुद्दीन भी अपराधिक वारदात को अंजाम देने की वजह से सिवान जेल में बंद थे उस दरमियान मैरवा के रहने वाले और आर्मी से रिटायर डॉक्टर कैप्टन त्रिभुवन नारायण सिंह जीरादेई से कांग्रेस के विधायक हैं साल 1985 के बिहार विधानसभा चुनाव को उन्होंने जीता था उनकी छवि अपने एक ईमानदार नेता की थी उस वक्त प्रतापपुर जीरादेई विधानसभा के तहत आता था,
शहाबुद्दीन प्रतापपुर के ही रहने वाले थे उस वक्त ने बताया कि एक मामले में विधायक डॉक्टर कैप्टन त्रिभुवन नारायण सिंह ने पैरवी करनी थी इसके लिए वह खुद विधायक से मिलने गए थे लेकिन विधायक ने सीधे और साफ शब्दों में उस वक्त यह कह दिया था कि मैं बदमाशों और अपराधियों की पैरवी नहीं करूंगा यह बात उस वक्त की है जब शहाबुद्दीन जेल में नहीं थे इस घटना के बाद ही एक आपराधिक मामले में उन्हें जेल जाना पड़ा था,
चुनाव लड़ने का ऐलान जेल से ही करता था यह बाहुबली..
विधायक की तरफ से कही गई बातों को लेकर वह गुस्से में थे जेल के अंदर भी गुस्सा कम नहीं हुआ था उस दरमियान 1990 का विधानसभा चुनाव होना था और शहाबुद्दीन ने चुनावी मैदान में निर्दलीय उतरने का ऐलान कर दिया पूरे सिवान में मानव हलचल सी मच गई थी शहाबुद्दीन जेल से ही नामांकन दाखिल किया था आखिर आने वाली बात थी हर कीमत पर डॉक्टर कैप्टन त्रिभुवन नारायण सिंह को हराने की थी शहाबुद्दीन ने कई तरह के दाव पेच खेलना शुरू कर दिया उस वक्त का चुनाव बैलेट पेपर पर होता था सच ने बताया कि मोहम्मद शहाबुद्दीन को जिताने के लिए उसके लोगों ने कई प्रकार के हथकंडे अपनाए थे सबसे बड़ा हथकंडा बोकस वोटिंग कथा सिवान में मुस्लिम आबादी सबसे अधिक है.
इसलिए शहाबुद्दीन ने अपने प्रभाव वाले इलाके में उनके लोगों ने उस वक्त बैलट पेपर को छाप दिया था बताया जा रहा है कि करीब 5000 से अधिक फोकस वोटिंग भी हुई थी इस कारण जेल के अंदर रहने के बाद भी मोहम्मद शहाबुद्दीन ने एक सिटिंग विधायक को चुनाव में हरा दिया था यहीं से उसके अपराधिक से राजनेता बनने का सफर शुरू हो गया था और लगातार पांच साल मोहम्मद शहाबुद्दीन जीरादेई के विधायक रहे,
1990 की कहानी अपराधी पाल सिंह का भी मिल गया था साथ..
आपको बता दें कि 1990 के विधानसभा चुनाव में डॉक्टर त्रिभुवन नारायण सिंह को हराने के लिए मोहम्मद अबुद्दीन को उस वक्त जेल में दूसरे अपराधी एवं सिवान के रहने वाले पाल सिंह का भी साथ मिला था जेल में ही पाल सिंह और मोहम्मद शहाबुद्दीन एक हो गए थे दरअसल पाल सिंह ने भी डॉक्टर कैप्टन त्रिभुवन सिंह से एक पैर भी करवानी चाहे थी लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया इसलिए शहाबुद्दीन और पाल सिंह जेल में एक हो गए हैं और शहाबुद्दीन को निर्दलीय जिताने के लिए हाथ मिला लिया,
लालू का साथ 1995 में मिला..
5 साल रहे लगातार विधायक मोहम्मद शहाबुद्दीन को पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद का साथ मिला 1995 के विधानसभा चुनाव में जीरादेई शहाबुद्दीन दूसरी बार मैदान में उतरे लेकिन इस बार लालू प्रसाद ने उन्हें अपने पार्टी राष्ट्रीय जनता दल से टिकट दिया था लगातार दूसरी बार वह विधायक बने 1 साल बाद ही 1996 में लोकसभा का चुनाव हुआ राजद ने शहाबुद्दीन को सिवान से टिकट दे दिया और वह जीत दर्ज कर लोकसभा भी पहुंच गए,