NEWSPR डेस्क। जे डी यू- ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने प्रदेशवासियों को दीपोत्सव की बधाई और शुभकामनाएं दी हैं। इस मौके पर उन्होंने सभी लोगों से जरूरतमंद परिवार के साथ दीपावली मनाने की भी अपील की। उन्होंने अपील करते हुए कहा कि सभी माननीय जनप्रतिनिधि गण किसी न किसी एक वंचित एवं जरूरतमंद परिवार के संग दिपावली पर्व को पूरे उत्साह व आनंद के साथ मनाएं।
दीपोत्सवपर्व के दूसरे दिन नरक चौदस मनाई जाती है। इसे छोटी दिवाली भी कहते हैं। आज के दिन कुछ खास काम करने से व्यक्ति नरक में जाने से बच जाता है। नरक चौदस को रूप चौदस भी कहते हैं। नरक चतुर्दशी और कार्तिक अमावस्या एक ही दिन पड़ रहे हैं। ऐसे में जानेिये आज के दिन का महत्व…
नरक चतुर्दशी का महत्व :
नरक चतुर्दशी को सनातन धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व के तौर पर माना जाता है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को सनातन धर्म में नरक चतुर्दशी के तौर पर मनाया जाता है। इस पर्व को देश के कई इलाकों में अलग-अलग नामों जैसे कि रूप चौदस, नरक चौदस और रूप चतुर्दशी के तौर पर भी जाना जाता है। दीपावली से ठीक पहले मनाए जाने की वजह से कई जगहों पर इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है।
नरक चतुर्दशी का महत्व कई मायनों में विशेष है। इस पर्व के दिन मृत्यु के देवता यम की पूजा की जाती है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन सूर्योदय से पहले जग कर पूरे शरीर पर तिल्ली का तेल लगाकर और नहाने के पानी में चिरचिरा के पत्ते डाल कर स्नान करने से नर्क के भय से मुक्ति प्राप्त होती है। साथ ही रूप में भी निखार आता है। नरक चतुर्दशी के पर्व से जुड़ी एक कथा भी है जो राजा बलि और भगवान विष्णु के अलावा भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है। आइये अब आपको उस कथा के बारे में जानकारी दे देते हैं।
नरक चतुर्दशी की कथा :
नरक चतुर्दशी के मनाए जाने के पीछे हमें दो कथाएं आमतौर पर सुनने को मिलती हैं। इसमें से एक कथा भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है और दूसरी कथा भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी हुई है। आइये अब आपको दोनों ही कथाओं के बारे में बताते हैं।
पहली कथा जो कि भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई है, उस कथा के अनुसार नरकासुर नामक दैत्य ने कठिन तपस्या कर देवताओं से यह वरदान प्राप्त कर लिया कि उसकी मौत सिर्फ और सिर्फ किसी स्त्री के ही हाथों हो सकती है। यह वरदान प्राप्त कर नरकासुर तीनों ही लोकों में अत्याचार करने लगा जिसे देखते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी अर्धांगिनी सत्यभामा के साथ मिलकर कार्तिक मास के चतुर्दशी तिथि को नरकासुर का वध किया। नरकासुर की मृत्यु के बाद लोगों ने अपने-अपने घरों में दीप जलाए और तब से ही नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाने लगा। मान्यता है कि नरकासुर की कैद से भगवान श्रीकृष्ण ने 16 हजार स्त्रियॉं को रिहा करवाया था जो बाद में उनकी पटरानियाँ बनीं।
वहीं दूसरी कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि के पूरे राजपाट समेत धरती और आकाश को भी दो पग में ही नाप लिया था, तब भगवान वामन ने राजा बलि से पूछा कि अब वे तीसरा कदम कहाँ रखें। इस प्रश्न के जवाब में राजा बलि ने भगवान वामन को उनका तीसरा कदम अपने सिर पर रखने को कहा। राजा बलि के इस भक्ति भाव को देख कर भगवान विष्णु अति प्रसन्न हुए और उन्होंने उनसे वरदान मांगने को कहा। तब राजा बलि ने वरदान मांगते हुए भगवान वामन से कहा कि प्रत्येक वर्ष त्रयोदशी तिथि से लेकर अमावस्या के दिन तक धरती पर उनका (राजा बलि) ही राज हो और इस दौरान जो भी राजा बलि के राज्य में दीपावली मनाएगा और साथ ही चतुर्दशी की तिथि को दीपदान करेगा, ऐसे सभी जातकों को और उसके पितरों को नर्क की यातना नहीं झेलनी पड़ेगी। भगवान वामन ने राजा बलि की इस बात को मान लिया और तब से ही नरक चतुर्दशी का त्योहार सभी जगह मनाया जाने लगा।