ठंड से ठिठुरते जिस भिखारी को DSP ने दिए जूते और जैकेट, वह निकला अचूक निशानेबाज थानेदार

Sanjeev Shrivastava

NEWSPR डेस्क। कचरे में खाना ढूंढते हुए किसी भिखारी को देखना कोई हैरानी की बात नहीं है क्योंकि यह तस्वीर आम है, लेकिन यदि कोई भिखारी अचूक निशानेबाज थानेदार निकले और किसी पुलिस अधिकारी को उसके नाम से पुकारे तो हैरान होना लाजमी है. ग्वालियर में 10 नवंबर को कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला.

भिखारी की दयनीय हालत देखकर डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर ने उसे अपने जूते और विजय भदोरिया ने अपनी जैकेट दे दी. इसके बाद दोनों अधिकारी जब जाने लगे तो भिखारी ने विजय भदोरिया को उनके नाम से पुकारा. दरअसल मतगणना की रात सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर और विजय भदोरिया संभाल रहे थे. मतगणना पूरी होने के बाद ये दोनों अधिकारी विजयी जुलूस के रूट पर तैनात थे.

इस दौरान इन्होंने बंधन वाटिका के फुटपाथ पर एक अधेड़ भिखारी को ठंड से ठिठुरते हुए देखा. उसे संदिग्ध हालत में देखकर अफसरों ने गाड़ी रोकी और उससे बात करने लगे. इसके बाद भिखारी की दयनीय हालत देखकर डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर ने उसे अपने जूते और विजय भदोरिया ने अपनी जैकेट दे दी. इसके बाद दोनों अधिकारी जब जाने लगे तो भिखारी ने विजय भदोरिया को उनके नाम से पुकारा. भिखारी के मुंह से अपना नाम सुनकर दोनों अफसर हैरान रह गए और एक दूसरे का मुंह तांकने लगे.

दोनों अधिकारियों ने बेहद आश्चर्य के साथ भिखारी से पूछा कि वह उनका नाम कैसे जानता है, तो भिखारी ने बताया कि उसना नाम मनीष मिश्रा है और वह उन दोनों अफसरों के साथ 1999 में पुलिस सब इंस्पेक्टर में भर्ती हुआ था. यह सुनकर तो दोनों अधिकारी और भी ज्यादा हैरान हुए.

इसके बाद उन्होंने काफी देर तक मनीष मिश्रा से पुराने दिनों की बात की और उसे अपने साथ ले जाने की जिद करने लगे लेकिन वह साथ जाने को राजी नहीं हुआ. आखिर में दोनों अधिकारियों ने समाज सेवी संस्था से उसे आश्रम भिजवा दिया, जहां उसकी अब बेहतर देखरेख हो रही है.

जानकारी के मुताबिक मनीष मिश्रा का मानसिक संतुलन ठीक नहीं है. मनीष के भाई टीआई हैं, पिता व चाचा एडिशनल एसपी से रिटायर हुए हैं और चचेरी बहन दूतावास में पदस्थ हैं. मनीष मिश्रा ने 2005 तक पुलिस की नौकरी की. वह आखिरी समय तक दतिया जिले में पदस्थ रहे.

इसके बाद मानसिक संतुलन खो देने की वजह से शुरुआत में 5 साल तक वह घर पर ही रहे, लेकिन इसके बाद वह घर में नहीं रुके, यहां तक कि इलाज के लिए जिन सेंटर्स और आश्रम में उन्हें भर्ती कराया गया था वहां से भी वह भाग गए. परिवार को भी नहीं पता था कि वे कहां हैं. मनीष का उनकी पत्नी से भी तलाक हो चुका है. उनकी पत्नी न्यायिक सेवा में पदस्थ हैं.

 

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