कहानी उस वीर पुरुष की, जिसने शक्तिशाली मुगलों को घुटने टेकने पर मज़बूर किया था

Patna Desk

Knowledge Beat: अपनी वीरता से शक्तिशाली मुगलों को घुटने टेकने पर मज़बूर करने वाले सम्राट छत्रपति शिवाजी न सिर्फ एक महान शासक थे बल्कि दयालु योद्धा भी थे. यही वजह है कि उनके राज्याभिषेक के दिन को भी महाराष्ट्र समेत पूरे देश में याद किया जाता है. महाराष्ट्र में तो उनके राज्याभिषेक को एक उत्सव की तरह मनाया जाता है.

Hindi- Chhatrapati Shivaji Maharaj: Biography, History and Administration

दरअसल, आज से 347 साल पहले आज ही के दिन यानी छह जून 1674 को उनका राज्याभिषेक हुआ था. 1674 ई. में उन्होंने मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी. रायगढ़ में जब उनका राज्याभिषेक हुआ, तब उन्हें छत्रपति की उपाधि भी दी गई थी. तो इसी मौके पर आज हम उन्हें फिर से याद करते हुए उनके उपाधि पर थोड़ा बात करेंगे.

छत्रपति शिवाजी- एक महान मराठा शासक <br> (Chhatrapati Shivaji - A great  Maratha ruler)

कहा जाता है कि चार अक्तूबर, 1674 को दूसरी बार शिवाजी महाराज ने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की थी. दो बार हुए इस समारोह में लगभग 50 लाख रुपये खर्च हुए थे. ये उस समय के लिए बहुत बड़ी बात थी.

इतिहासकारों के मुताबिक, शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी, 1630 को शिवनेरी दुर्ग में हुआ था. उनके पिता शाहजी भोंसले एक शक्तिशाली सामंत थे. उन्होंने बचपन से ही राजनीति और युद्ध की शिक्षा ली थी, इसलिए उन्होंने दुनिया के महान योद्धाओं में से एक माना जाता है. शिवाजी महाराज ने बेहद कम उम्र में ही टोरना किले पर कब्जा कर अपनी प्रतिभा और युद्धकौशल का परिचय दे दिया था और इसके बाद तो उन्होंने कई इलाकों को मुगलों से भी छीन लिया था.

chhatrapati shivaji biography in hindi | छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन

छत्रपति शिवाजी महाराज ने 1659 ई. में प्रतापगढ़ किले पर भी कब्जा किया था. हालांकि उसके बाद उन्हें मुगलों से पुरंदर की संधि करनी पड़ी, जिसके तहत उन्हें जीते हुए बहुत से इलाके मुगलों को लौटाने पड़े. शिवाजी महाराज के साथ सबसे हैरान करने वाली घटना तो 1966 में घटी, जब मुगल बादशाह औरंगजेब ने उन्हें कैद कर लिया. कुछ महीनों तक वह उनकी कैद में रहे, लेकिन एक दिन वह मुगल सैनिकों को चकमा देकर वहां से भाग निकले.

Chhatrapati Shivaji Maharaj - साहस और शौर्य की मिसाल छत्रपति शिवाजी महाराज

शिवाजी महाराज मुगलों की कैद से कैसे छूटे, इसके कई किस्से इतिहास में मौजूद हैं. कुछ किताबों के मुताबिक, जेल में जब मिठाई और फल बांटे जा रहे थे, तो वह उसी टोकरी में बैठ कर वहां से भाग निकले और रायगढ़ पहुंचे. इसके बाद उन्होंने कई अहम लड़ाईयां लड़ीं और कई किलों पर जीत हासिल की, जिसमें त्रिचूर, जिंजी, मैसूर आदि शामिल हैं. तीन अप्रैल, 1680 को उनका देहान्त हो गया आज भी उन्हें दुनिया के महान राजाओं में गिना जाता है.

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