पटना के मशहूर अस्पताल का सच! रिटायर्ड IAS ने किया बड़ा खुलासा, इलाज के नाम पर हो रहा खेल

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। राजधानी पटना का मशहूर पारस अस्पताल पर कई आरोप लगते रहते है। कई बार तो मुकदमा भी दर्ज हुआ है। लेकिन सराकर ने कभी भी कोई कार्रवाई नहीं की। या फिर यूं कह लें कि पारस अस्पताल प्रबंधन मरीजों की जान से खिलवाड़ करते आ रहा है, मगर सरकार की हिम्मत नहीं की कार्रवाई के बारे में सोच भी सके। बिहार के रिटायर्ड वरिष्ठ आईएएस अफसर ने पटना के पारस अस्पताल की वो हकीकत सार्वजनिक की है। जिसे पढ़कर आप अपने दुश्मन को भी इस अस्पताल में जाने की सलाह नहीं देंगे। बिहार में कई बड़े पदों पर कार्यरत रहे वरिष्ठ IAS अधिकारी विजय प्रकाश ने खुलासा किया है। आप उनके इस जानकारी को पढ़कर पारस अस्पताल जाने से पहले सौ बार सोंचेंगे।

बिहार के रिटायर्ड आईएएस अधिकारी विजय प्रकाश ने अपने फेसबुक पोस्ट में पारस अस्पताल की जानलेवा चिकित्सीय व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है। वो लिखते हैं कि मैं पारस HMRI अस्पताल, पटना में इलाज कराने का एक भयानक अनुभव साझा करने जा रहा हूं ताकि हम इलाज करते समय सावधान हो जाएं,क्योंकि इस प्रकार की घटना किसी के साथ भी हो सकती है। मैं मार्च’ 22 के पहले सप्ताह में तीव्र दस्त और ज्वर के रोग से काफी पीड़ित हो गया था। तीन दिनों तक परेशानी बनी रही। घर पर रहकर ही इलाज करा रहा था। कुछ वर्षों से मैं एट्रियल फिब्रिलिएशन (एएफ) का रोगी रहा हूं। लिहाजा एक कार्डिया मोबाइल 6L साथ रखता हूं। अपने कार्डिया मोबाइल 6L पर जांच किया तो पता चला कि पल्स रेट काफी बढ़ा हुआ था और इकेजी(EKG) रिपोर्ट एट्रियल फिब्रिलिएशन (ए0 एफ0) का संकेत दे रहा था। हमने तुरंत अस्पताल चलने का निर्णय लिया। पारस एचएमआरआई अस्पताल घर के करीब ही है। हम उसके इमरजेंसी में ही चले गये। इमरजेंसी में डॉक्टर चन्दन के नेतृत्व में व्यवस्था अच्छी थी। तुरंत ECG  लिया गया। उसमें भी एएफ का ही रिपोर्ट आया। पर करीब आधे घंटे के बाद पुनः ECG लिया गया। उसमें ECG  सामान्य हो गया था। साइनस रिदम बहाल हो गया था।  आपात स्थिति में प्रारंभिक देखभाल के बाद, मुझे डॉ. फहद अंसारी डीसीएमआर 3817 की देखरेख में एमआईसीयू में स्थानांतरित कर दिया गया। जब मुझे एमआईसीयू में ले जाया गया, तो मुझ पर दवाओं और परीक्षणों की बमबारी शुरू हो गई। कई तरह के टेस्ट प्रारम्भ हो गये और कई प्रकार की दवाइयां लिखी गईं । 12 मार्च 2022 को सुबह दस्त नियंत्रण में आ गया था। पर मुझे बताया गया कि हीमोग्लोबिन का स्तर नीचे हो गया है और प्लेटलेट की संख्या भी काफी कम हो गई है। डॉक्टर रोग के निदान के संबंध में स्पष्ट नहीं थे। उन्हें लग रहा था कि कोई गंभीर इन्फेक्शन है। मैंने बताया भी कि मैं थाइलेसेमिया माइनर की प्रकृति का हूं, अतः मेरा हीमोग्लोबिन का स्तर नीचे ही रहता है और प्लेटलेट की संख्या भी कम ही रहती है। खून जांच में अन्य आंकड़े भी सामान्य से भिन्न रहते हैं । इसे ध्यान में रखकर ही निर्णय लेना बेहतर होगा। डॉक्टर ने खून चढ़ाने का निर्णय लिया और  दोपहर में खून की एक बोतल चढ़ा दी गई।


मेरे अटेंडेंट को कॉम्बीथेर और डोक्सी नमक दवा को बाजार से लाने के लिए कहा गया, क्योंकि वे अस्पताल की दुकान में उपलब्ध नहीं थे। जब मुझे दवा खाने के लिए कहा गया तो मैंने दवा के बारे में पूछा। उपस्थित नर्स ने कॉम्बिथेर नाम का उल्लेख किया। इंटरनेट के माध्यम से मुझे यह पता चला कि यह एक मलेरिया रोधी दवा है। अस्पताल आने के बाद से ही मुझे बुखार नहीं था। मेरा दस्त भी नियंत्रण में था। फिर मलेरिया-रोधी दवा क्यों? क्या मलेरिया परजीवी मेरे रक्त में पाये गये हैं? इस सम्बन्ध में मैंने नर्स से पूछताछ की। उनका कहना था कि चूंकि डॉक्टर ने यह दवा लिखा है इसलिए वे यह दवा खिला रही हैं। यदि मैं दवा नहीं खाऊंगा तो वे लिख देंगी कि मरीज ने दवा लेने से मना किया। इसपर मैंने कहा कि एक तरफ मुझे खून चढ़ाया जा रहा है क्योंकि हीमोग्लोबिन और प्लेटलेट कम बताये जा रहे हैं और मुझे ए0 एफ0 भी है दूसरी ओर अनावश्यक दवा दिया जा रहा है। जबकि मेरा बुखार और दस्त दोनों नियंत्रण में है। जिसका काफी अधिक ख़राब असर मेरे स्वास्थ्य पर हो सकता है जिससे बचा जाना चाहिए । अतः मैंने डॉक्टर से पुनः पूछकर ही दवा खाने की बात कहीं। मेरे बार-बार अनुरोध करने पर नर्स ने ICU  के प्रभारी डॉक्टर प्रशांत को बुलाया। मैंने उनसे भी यही अनुरोध किया कि रक्त परीक्षण में मलेरिया परजीवी की स्थिति देखने पर ही ये दवा दी जाय। इस सम्बन्ध में वे प्रभारी डॉक्टर से संतुष्ट हो लें। डॉक्टर प्रशांत ने सम्बंधित डॉक्टर से बातें की और इस दवा को बंद करा दिया क्योंकि मलेरिया परजीवी हेतु रक्त परीक्षण में परिणाम नकारात्मक था। इस प्रकार मैं एक अनावश्यक दवा के कुप्रभाव से बच गया।

मैं यह उल्लेख करना आवश्यक समझता हूं कि हॉस्पिटल में दवाएं नर्स हीं देती हैं। इसके पैकेट को भी मरीज को देखने नहीं दिया जाता और डॉक्टर का पूर्जा भी मरीज को नहीं दिखाया जाता है। सामान्यतया दवा देते समय मरीज को यह बताया भी नहीं जाता कि कौन सी दवा दी जा रही है। अतः दवा देने की पूरी जिम्मेदारी डॉक्टर और नर्स पर ही रहती है। यह संयोग ही था कि कॉम्बिथेर को बाजार से मंगवाया गया था। इसलिए मुझे इस दवा के बारे में जानकारी मिली और मैं इस दवा को लेने से पहले रक्त परीक्षण का रिपोर्ट देख लेने का अनुरोध कर पाया। 13 मार्च 2022 को मेरी स्थिति में काफी सुधार था। सभी लक्षण सामान्य हो गये थे। दोपहर में मुझे सिंगल रूम नं. 265 में भेज दिया गया। ICU से निकलने का ही मरीज के मनः स्थिति पर बहुत सकारात्मक असर पड़ता है। मैं बिल्कुल सामान्य सा महसूस करने लगा। रात में मैंने सामान्य रुप से भोजन किया। नींद भी अच्छी आयी।

14 मार्च 2022 की सुबह मैं बिल्कुल सामान्य महसूस कर रहा था। मैंने सामान्य रुप से शौच किया। अपनी दाढ़ी बनाई और ड्यूटी बॉय की मदद से स्पंज स्नान किया। सब कुछ सामान्य था। फल का रस भी पिया। सुबह करीब 6.45 बजे मैं अपने लड़के से मोबाइल पर बात कर रहा था। उस समय ड्यूटी पर तैनात नर्स दवा खिलाने आई। उसने मुझे थायरोक्सिन की गोलियों की एक बोतल दिया और मुझे इसे खोलकर एक टैबलेट लेने को कहा। चूंकि मेरे दाहिने हाथ में कैनुला लगा था, मैंने उससे ही इसे खोलने का अनुरोध किया। पर उसने कहा कि उसे इस तरह के बोतल को खोलने में दिक्कत होती है। कोई विकल्प ना होने के कारण और हाथ में कैनुला लगे होने के बावजूद, मैंने खुद ढक्कन खोल दिया और उसे देकर मुझे एक टैबलेट देने के लिए कहा। उसने एक गोली निकालकर दिया और मैंने दवा ले ली। उसने मुझे दो और दवाएं दी, उसे भी मैंने खा लिया ।

इसी बीच उसने दराज से एक शीशी निकाली। मैंने इस दवा के बारे में पूछताछ की क्योंकि यह मेरे अस्पताल में रहने के दौरान पहले कभी नहीं दी गई थी। उसने कहा कि यह एक एंटीबायोटिक है। मैंने एंटीबायोटिक के नाम के बारे में पूछताछ की क्योंकि यह एक नई दवा थी जो मुझे दी जा रही थी और मुझे यह एहसास था कि मैं ठीक हो रहा हूं। मेरे प्रश्न का उत्तर दिए बिना, उसने  आई0  वी0 कैनुला के माध्यम से दवा देना शुरू कर दिया। पूरी बातचीत के दौरान मैं अपने बिस्तर पर बैठा रहा और मोबाइल पर अपने लड़के से बात करता रहा। जैसे ही यह नई दवा मेरे शरीर में आई, मेरी रीढ़ में जलन शुरू हो गया। मेरा शरीर गर्म होता जा रहा था। मेरा शरीर कांप रहा था। मुझे चक्कर जैसी अनुभूति भी होने लगी। मैंने फिर नर्स से पूछा कि उसने कौन सी दवा दी है। पर वह चुप रही। मैंने पुनः उस दवा की जानकारी मांगी जो उसने मुझे दी थी। वह चुप रही। मेरी ऊर्जा कम होती जा रही थी। मैंने फिर पूछा, ‘मैं बिल्कुल भी अच्छा महसूस नहीं कर रहा हूं। कौन सी दवा दी हो।’ इस नई दवा की प्रतिक्रिया बढ़ती जा रही थी। मुझे मस्तिष्क में अजीब सा स्पंदन हो रहा था। लग रहा था गिर जाऊंगा। मुझे लग रहा था कि ब्रेन हेमरेज तो नहीं हो रहा है। मेरे बार-बार बोलने पर भी वह नर्स लगातार मौन बनी रही। फिर मैं सारी ऊर्जा इकठ्ठा कर जोर से चिल्लाया, ‘तबीयत बहुत ख़राब हो रही है। दवा बंद करो’। फिर भी उसके हाव-भाव में कोई तेजी नहीं दिखी और वह बहुत धीरे-धीरे दवा बंद करने आई। खैर, दवा बंद हो गयी।

तबियत खऱाब होने लगी तो दराज से दवा की शीशी निकाल बाहर ले गया

मैंने तुरंत एक डॉक्टर बुलाने का अनुरोध किया। पर कोई नहीं आया। नर्स ने आकर मेरा बीपी लिया। कुछ देर बाद ड्यूटी पर डॉक्टर होने का दावा करने वाला एक व्यक्ति आया। उसे भी मैंने सारी बातें बताई। वह भी मेरी हालत के बारे में कम चिंतित लग रहा था। उसने दराज खोली और कोई दवा ली और बाहर चला गया। मैंने उसे तुरंत ECG  करने के लिए कहा जिससे मैं अपने दिल की स्थिति के बारे में सुनिश्चित हो सकूं। जिस फ्लोर पर वार्ड था उस फ्लोर पर कोई ECG मशीन नहीं था। वे MICU विंग से एक मशीन लाए लेकिन वह ठीक से काम नहीं कर रहा था। फिर वे एक अन्य ECG मशीन लाए। मुझे बड़ी राहत मिली जब मैंने पाया कि ECG  में कोई अनियमितता नहीं थी और ह्रदय की धड़कन साइनस रिद्म में होना बता रहा था। इस प्रक्रिया में करीब एक घंटा व्यतीत हो गया पर मेरी बेचैनी जारी रही। यद्यपि शरीर में हो रहे बदलाव में धीरे-धीरे सुधार हो रहा था पर रीढ़ में असामान्य स्पंदन जारी रहा। यह कई दिनों तक चलता रहा।

जो दवा छुपाई जा रही थी वो एपिनेफ था, पत्नी ने फोटो ले ली

मेरी पत्नी डॉ मृदुला प्रकाश, जो मेरे साथ मेरे वार्ड में थीं, मेरी स्थिति ख़राब होते देख चिंतित हो गयी । उन्होंने नर्स से दवा का नाम पूछा। नर्स ने इंजेक्शन की एक दूसरी शीशी जो ड्रावर में रखा था उसे दिखाया और कहा कि यही सुई दी गयी है। उन्होंने इसका एक फोटो ले लिया। यह एपिनेफ था। उसी समय मेरी  लड़की नूपुर निशीथ का फोन आ गया। उसे जब मेरी स्थिति बताई गई तो उसने पूछा कि पापा को कौन सी दवा दी गई है। दवा का नाम एपिनेफ बताने पर उसने कहा कि यह तो अंटी आजमटिक रोग की दवा है जो इमेर्जेंसी में दिया जाता है और  इसका हृदय पर काफी साइड इफेक्ट होता है। इसे क्यों दिया जा रहा है? तब घबड़ाकर डॉ प्रकाश नर्सों की डेस्क पर गईं और मेडिसिन लिस्ट मांगा तथा डॉक्टर का प्रेसक्रिप्शन भी मांगा। उन्हें न तो दवा का लिस्ट दिया गया और न डॉक्टर का प्रेसक्रिप्शन ही दिखाया गया। सभी नर्स वहाँ से हटकर दूसरी ओर चली गई ताकि उनसे ये सूचना नहीं ली  जा सके ।

वह इस्तेमाल की हुई शीशी भी चाहती थी जिसे उन्हें दिखाया तो गया। पर जब उन्होंने इसे मांगा, तो  उन्हें यह नहीं दिया गया क्योंकि उन्हें कहा गया कि इसका इस्तेमाल स्थानीय जांच में किया जाएगा। जब उन्होंने  पूछा कि दवा क्यों दी गई है तो उन्हें बताया गया कि एपिनेफ को एसओएस के रूप में लिखा गया है ।  प्रभारी नर्स ने कहा कि उपस्थित नर्स ने  शारीरिक परीक्षण के माध्यम से नाड़ी की दर 63 पाये जाने के कारण उक्त दवा दिया था । इसपर उन्होंने कहा कि नर्स ने दवा देने से पहले कभी नब्ज को छुआ तक नहीं था। नाड़ी की दर, रक्त चाप और तापमान   तो दवा देने के बाद जब स्थिति खरब हो गई थी तब ली गई  थी तो किस प्रकार नाड़ी के दर को आधार बनाकर यह दवा दिये जाने की बात कही जा रही है । उसके बाद  नर्स निरुत्तर हो गयीं  और कोई जवाब नहीं दिया। वार्ड में मरीज के चिकित्सा से सम्बंधित फ़ाइल नहीं रखी गयी थी। अतः किसी चीज के बारे में कोई जानकारी मरीज या उसके अटेंडेंट को उपलब्ध नहीं था। चूँकि सारी जानकारी नहीं दी जा रही थी और गलत सूचना दी जा रही थी, अतः मामला काफी संदेहास्पद बनता जा रहा था। सूचनाओं मे अपारदर्शिता मामले को काफी गंभीर बना रहा था ।

 एपीनेफ सुई  क्यों

घटना के लगभग 4.45 घंटे बाद उपस्थित चिकित्सक डॉ. फहद अंसारी ने लगभग 11.30 बजे वार्ड का दौरा किया। पहले तो उन्होंने अपने प्रोफाइल के बारे में बात की और कहा कि यह उनके लिए काला दिन है। उन्होंने घटना पर खेद जताया। उसने मेरी छाती की जांच की, मेरे मल के बारे में पूछा और कहा कि वे  मुझे तुरंत छुट्टी दे देंगे । कुछ जांच रिपोर्ट लंबित हैं, जो कुछ दिनों में आ जाएंगी। उन रिपोर्ट के बारे में वह ओपीडी पर अपनी राय देंगे। वह यह नहीं बता सके कि एपीनेफ सुई  क्यों लिखी गई थी या क्यों दी गयी । यह आश्चर्यजनक है कि एपिनेफ्रीन जैसी दवा जिसे इंट्रामस्क्यूलर या सब क्यूटेनस दिया जाता है, उसे किन परिस्थितियों में नसों के माध्यम से दिया गया। यह भी स्पष्ट नहीं है कि ऐसी दवा जो हमेशा एक विशेषज्ञ डॉक्टर की उपस्थिति में या  आईसीयू में दी जाती है, उसे अर्ध या गैर-प्रशिक्षित वार्ड नर्स द्वारा देने के लिए कैसे छोड़ दिया गया। यहाँ तक कि प्रभारी नर्स भी उपस्थित नहीं थी।   मुझे यह भी आश्चर्य होता है कि जब स्पष्ट रूप से एसओएस का कोई मामला नहीं था तो एसओएस दवा का प्रबंध ही क्यों किया गया। अगर मैंने समय पर विरोध नहीं किया होता और दवा बंद न करा दिया होता, तो शायद मैं कहानी सुनाने के लिए यहां नहीं होता। मैं इस बात से भी हैरान हूं कि इस तरह के ड्रग रिएक्शन केस के बाद भी  मेरी सेहत की पूरी जांच किए बिना मुझे कैसे छुट्टी दे दी गई।

जब लगभग 2.30 बजे अपराह्न में मुझे छुट्टी दी गई, तो मुझे डिस्चार्ज सारांश सौंपा गया। मैंने पाया कि इसमे मेरे लिए लिखे गये पूर्जे और दी गयी दवाओं के विवरण पूरी तरह से गायब थे। चिकित्सा विवरण देने के बजाय, डिस्चार्ज सारांश में गोलमटोल वाक्य लिखे थे । यहां तक कि इसमें  खून चढ़ाने की जानकारी भी गायब थी। मैंने यह भी पाया कि भर्ती के समय मेरे दिल की स्थिति का विवरण भी रिपोर्ट में लिखा नहीं था। मेरे एमआईसीयू में रहने का भी कोई जिक्र नहीं था। एपिनेफ दिये जाने और इसका मेरे ऊपर हुए रियक्सन का भी कोई वर्णन नहीं था।  ऐसा प्रतीत होता है कि जानबूझकर महत्वपूर्ण तथ्यों और विवरणों को रिपोर्ट से छिपाया गया है।

मैंने जब अस्पताल्र शासन को इस सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी देने के लिए एवं विस्तृत जांच कराने के लिए पत्र लिखा तो मुझे डिस्चार्ज समरी को पुनरीक्षित कर भेजा गया पर उसमें भी एपीनेफ के न तो डॉक्टर द्वारा लिखने का जिक्र था और न उसे मुझे सुई के रूप में देने का। अस्पताल प्रशासन ने इस सम्बन्ध में आतंरिक जांच कराकर उसका प्रतिवेदन साझा करने की बात कही।अस्पताल के डॉक्टर ने इस प्रकरण पर मौखिक रुप से क्षमा जरूर मांगी पर अभी तक अस्पताल प्रशासन ने आंतरिक जांच का कोई प्रतिवेदन मेरे साथ साझा नहीं किया तथा मुझे यह भी नहीं बताया कि व्यवस्था में क्या सुधार की गई है जिससे यह पता चले कि भविष्य में किसी मरीज के साथ इस प्रकार की घटना नहीं होगी ।

मैं अभी तक सदमे में हूँ कि यदि एपीनेफ को चिल्लाकर समय से बंद न कराया होता तो क्या हुआ होता। हम अस्पताल में डॉक्टर या नर्स को भगवान का प्रतिरूप मानकर उसकी सभी आज्ञा का पालन करते हैं। यदि कभी शरीर में उसकी प्रतिक्रिया भी हो तो उसे एक अलग घटना माना जाता है दवा देने या दवा देने के तरीके  के कारण हुई प्रतिक्रिया नहीं मानी जाती।जब एपीनेफ के बाद शरीर में प्रतिक्रिया हुई तो मैंने भी शुरू में इसे दवा के कारण हुआ नहीं माना था । मुझे लगा कि शायद शरीर में कोई नयी समस्या हो गयी है – ब्रेन हेमरेज या ह्रदयघात हो गया है इसलिए मैंने सोचा पहले इस नयी समस्या से निबट लें तब दवा ले लेंगे। यही सोचकर मैंने दवा बंद कराया था। मेरा चिकित्सा व्यवस्था पर हमारे मन में एक विश्वास या यूँ कहूँ कि एक अंधविश्वास जाम गया है  वह मानने के लिए तैयार नहीं था कि कोई डॉक्टर या नर्स कभी ऐसी दवा देंगे जो मेरे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगा।

जब घटना हो भी गयी तो अस्पताल प्रशासन मेरे स्वास्थ्य की चिंता न कर इस बात में व्यस्त रहे कि कैसे यह बात रिकॉर्ड में न आये। मुझे स्वयं अपने इलाज के लिए ब्लड प्रेशर लेना या इ0 सी0 जी0 लेने का आदेश देना पड़ा।  अस्पताल के अधिकारी अस्पताल के दस्तावेजों के प्रबंधन में ही लगे रहे ताकि सच्चाई सामने न आए। नर्स को हटा दिया गया। मेरी फाइल में दवा की विवरणी दर्ज नहीं की गयी । दवा वाली शीशी को दराज से निकाल कर छिपा लिया गया। वास्तव में, वे इस बारे में अधिक चिंतित थे कि रोगी को प्रबंधित करने के बजाय दस्तावेज़ में घटना की रिपोर्टिंग को कैसे प्रबंधित किया जाए। मेरे बार-बार अस्पताल से सच्चाई को  रिपोर्ट में अंकित करने का अनुरोध करने के बावजूद, इसे कभी रिकॉर्ड में नहीं किया गया।

मैं अस्पताल का नाम या डॉक्टर का नाम नहीं देना चाहता था, पर उनका व्यवहार जिस प्रकार रहा उससे मुझे अतिशय पीड़ा हुई है। उन्होंने गलत दवा देने के प्रकरण को रिकॉर्ड करने की परवाह तक नहीं की जो मेरे लिए प्राणघातक हो सकती थी। उन्होंने यह जानते हुए कि मैं एट्रियल फीब्रिलेशन का रोगी हूं और एपिनेफ्रीन जैसी आपातकालीन दवा के अंतःशिरा इंजेक्शन से पल्स रेट अप्रत्याशित रुप से बढ़ सकती थी जिससे शरीर को अपूरणीय क्षति हो सकती थी, दवा की प्रतिक्रिया की दूरगामी प्रभाव की जाँच के लिए भी कोई कदम नहीं उठाया। ऐसी आपात स्थिति से निपटने में अस्पताल की व्यवस्था में गंभीरता का भाव नहीं था। प्रभारी चिकित्सक चार घंटे से अधिक समय के बाद मुझे देखने आए। मैं इससे काफी आहत हूँ।

मेरा मन अभी भी इस बात को मानने को तैयार नहीं है कि अस्पताल में कोई दवा खिलाई जाएगी या इंजेक्शन दिया जाएगा और मेडिसिन लिस्ट में उसे शामिल तक नहीं किया जाएगा। क्या यह जहर था  कि इसे लिखने से बचा जा रहा है? या किसी साजिश के तहत इसे दिया गया था तथा इसका जिक्र सभी जगह से हटा दिया जाय। अस्पताल के सिस्टम का पूरी तरह फेल हो जाने का इससे बड़ा और क्या प्रमाण हो सकता  है ।

प्रश्न यह भी है कि जो दवा लिखी ही नहीं है, वह दवा वार्ड के दराज में कैसे आ गई? डॉक्टर ने कहा कि घटना इसलिए हुई क्योंकि यह दवा अन्य इंजेक्शन के समान है जो मुझे लिखा गया था। पर डॉक्टर के द्वारा जो प्रेसक्रिप्शन मुझे दिया गया उसमें यह कहीं नहीं लिखा था। यह बात इसलिए भी गंभीर है क्योंकि दवाएं अस्पताल के दूकान से ही आती हैं और कई नर्स उसे चेक करते हैं।  मैं एम0 आई0 सी0 यू0 से आया था वहाँ सभी दवाओं को कई नर्स चेक करते थे।

यह प्रश्न भी विचारणीय है कि कैसे ओवर मेडिकेशन से बचा जाय। एक साथ कई एंटीबायोटिक शरीर में दे दिए जाने की अवस्था में मरीज के शरीर पर क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा, यह गंभीरता से विचार करने की जरूरत है । दूसरे कई देशों में मैंने देखा है कि बिना डॉक्टर के पूर्जा  के कोई एंटिबायोटिक खरीद नहीं सकता । डॉक्टर भी अनावश्यक रूप  से एंटिबायोटिक नहीं लिखते हैं । देश के स्वास्थ्य के दूरगामी प्रसंग में यह आवश्यक है कि एंटिबायोटिक का  व्यवहार उचित ढंग से किया जाय।

मैंने पाया है कि बड़े कॉर्पोरेट अस्पतालों में सभी मरीज का अधिक- से-अधिक शल्य चिकित्सा करने, अधिक-से-अधिक टेस्ट करने, अधिक-से-अधिक दवा लिखने का प्रयास रहता है  ताकि अधिक राशि का  बिल बन सके और अधिक मुनाफा हो। इसमें मरीज के स्वास्थ्य से ज्यादा महत्वपूर्ण लाभ में वृद्धि करना रहता है। इस पूरी प्रक्रिया में शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव की कोई चिंता नहीं रहती। यदि कोई दुष्प्रभाव हो तो वह भी मुनाफे का एक नया अवसर बन जाता है। ये  प्रश्न एक अस्पताल या एक डॉक्टर का नहीं वरन पूर्ण स्वास्थ्य व्यवस्था के हैं । आइये हम सब मिलकर सोचें कि इन समस्याओं से कैसे निजात पाया जाय ताकि किसी अन्य व्यक्ति को इस तरह की  समस्या का सामना न करना पड़े।  रिटार्यड आईएएस अधिकारी के इस खुलासे के बाद हड़कंप मचा है। अस्पताल प्रबंधन भी हरकत में आया है। अस्पताल प्रबंधन की तरफ से कहा गया है कि एक मरीज की ऐसी शिकायत है। इसकी आंतरिक जांच कराई जा रही है।

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