NEWSPR डेस्क। पहली बार पंचायती राज विभाग को अपने हिस्से में लेकर भाजपा बिहार के पंचायत चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने में जुट गई है। कभी सत्तापक्ष तो कभी विपक्ष में रहकर पंचायत चुनाव को दलगत आधार पर कराने की मांग करती रही भाजपा, अब सिर्फ बयानों के जरिए नहीं, बल्कि प्रस्तावों के जरिए भी नीतीश कुमार पर दबाव बनाने में जुट गई है।
इसके लिए लगातार जदयू के खाते में जाते रहे पंचायती राज विभाग को इस बार भाजपा ने अपने हिस्से में ले लिया है। फिलहाल यह विभाग भाजपा कोटे से आने वाली उपमुख्यमंत्री रेणु देवी के जिम्मे हैं। अगर नीतीश कुमार मान गए तो बिहार भाजपा की दलीय आधार पर चुनाव कराने की लंबे समय से चली आ रही मांग इस बार पूरी हो सकती है।
पंचायती राज अधिनियम में करना होगा संशोधन:-
बिहार में फिलहाल पंचायत चुनाव में होने में छह महीने का समय बाकी है। तिथि का ऐलान अभी नहीं हुआ है और माना जा रहा है कि 2021 के मई-जून तक ये चुनाव हो सकते हैं। बिहार में त्रिस्तरीय ग्रामीण स्थानीय निकायों में छह पदों के लिए चुनाव होते हैं। इनमें वार्ड सदस्य, मुखिया, पंचायत समिति सदस्य, जिला परिषद सदस्य, पंच और सरपंच जैसे पदों के लिए चुनाव होते हैं। प्रदेश में कुल 8,387 ग्राम पंचायतें हैं जो त्रिस्तरीय स्थानीय निकायों का सबसे निचला स्तर है।
534 पंचायत समितियां और 38 जिला परिषद हैं। राज्य में पंचायती राज संस्थाओं में कुल 2.58 लाख पद हैं और ग्राम पंचायतों में कम से कम 1.15 लाख वार्ड सदस्य हैं। दलगत आधार पर चुनाव कराने के लिए पंचायती राज विभाग प्रस्ताव बनाकर कैबिनेट में रखेगा। इसके बाद कैबिनेट के माध्यम से सरकार मंजूरी देगी और फिर विधानसभा के आने वाले सत्र में पंचायत राज अधिनियम में संशोधन से संबंधित विधेयक को सदन में पेश किया जाएगा।
भाजपा क्यों कराना चाहती है दलगत चुनाव:-
साल 2017 में राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर अमित शाह ने भाजपा में एक रोडमैप दिया था, जिसमें उन्होंने पी टू पी तक की बात कही थी। पी टू पी यानी पंचायतों से पार्लियामेंट तक। ग्रेटर हैदराबाद के निगम चुनाव में भाजपा ने इसी रोडमैप पर जीत हासिल की है। बिहार में भी अकेले सत्ता पर काबिज होने के लिए भाजपा इसी रोडमैप पर चलेगी, लिहाजा उसने इसको लेकर अभी से विभाग स्तर से पार्टी स्तर तक का काम शुरू कर दिया है। विभाग जहां ईवीएम और दलगत आधार पर चुनाव कराने के लिए सरकारी स्तर पर सकारात्मक माहौल बनाने में जुटा है।
वहीं पार्टी स्तर पर विधायकों से लेकर शक्ति केन्द्र तक के कार्यकर्ताओं को इसमें लगने का निर्देश दे दिया गया है। इसका साफ मतलब ये भी है कि दलगत आधार पर चुनाव हो या ना हो, भाजपा जिला परिषद स्तर पर पार्टी समर्थित उम्मीदवार उतारेगी और हैदराबाद की तरह की यहां भी भाजपा के दिग्गज प्रचार करते दिखेंगे।
भाजपा ने इसको लेकर किए हैं कई काम:-
अपने इसी रोडमैप को लेकर भाजपा की नरेन्द्र मोदी सरकार ने 15 वें वित्त आयोग में 3,25,000 करोड़ पंचायती राज व्यवस्था पर खर्च करने का लक्ष्य रखा है, जबकि 13वें वित्त आयोग में ये केवल 65000 करोड़ का था। वहीं, जिला परिषद सदस्य से लेकर पंचायत समिति सदस्य तक को विकास कार्यों के लिए आवंटित राशि में निश्चित हिस्सेदारी दी है।
भाजपा को इनसब का फायदा सीधा तभी मिल पाएगा जब पंचायत चुनाव दलगत स्तर पर होंगे। भाजपा असल में पार्टीगत चुनाव करा कर, शासन के सबसे निचले तक अपनी पैठ बनाना चाह रही है। दलगत आधार पर अगर चुनाव होते हैं तो मुखिया से लेकर जिला परिषद सदस्य तक की राजनीतिक विचारधारा खुलकर सामने आ सकेगी। इस आधार पर पार्टी निचले स्तर तक अपनी स्थितियों का पता कर सकेगी।
जदयू को क्यों हैं इनकार:-
दलगत आधार पर चुनाव को लेकर भाजपा और जदयू सीधे-सीधे आमने-सामने रहे हैं। भाजपा इसके जरिए जहां कैडर के विस्तार और संगठन को मजबूत करना चाहती है, वहीं जदयू इससे बचता रहा है। वजह यह है कि जदयू लंबे समय में सत्ता में है और त्रिस्तरीय चुनाव में जीतकर आनेवाले ज्यादातर प्रतिनिधि उसी की पार्टी से जुड़ते रहे हैं। ऐसे में बिना किसी संसाधन को लगाये जदयू को आसानी से हर स्तर पर जीते गए जनप्रतिनिधियों का साथ मिलता रहा है।
लिहाजा जदयू दलगत आधार पर चुनाव कराकर पंचायत प्रतिनिधियों को किसी पार्टी विशेष में बांधना नहीं चाहता है क्योंकि सीधे तौर पर उसे ही इससे नुकसान होगा। यही नहीं, अगर दलगत आधार पर चुनाव होते हैं तो फिर विधानसभा चुनाव की तरह ही भाजपा-जदयू के बीच सीटों को बंटवारा करना होगा, जिसके लिए रणनीति से लेकर पार्टी स्तर पर जबदस्त तैयारी करनी होगी।