NEWSPR डेस्क। बिहार में छठ पर्व का बहुत महत्व हैं लोग इसे काफी अनुशासन और अनुष्ठान से करते हैं। लोगों में छठ पूजा को लेकर काफी उत्साह भी रहता हैं। चार दिनों के महापर्व छठ की शुरुआत कल नहाय-खाय से हो चुकी है. आज इसका दूसरा दिन यानी खरना मनाया जा रहा है जिसके बाद कल पहला अर्घ्य और परसो दूसरा अर्घ्य दिया जायेगा।
खरना कार्तिक शुक्ल की पंचमी को मनाया जाता है. खरना का मतलब होता है शुद्धिकरण. इसे लोहंडा भी कहा जाता है. खरना के दिन छठ पूजा का विशेष प्रसाद बनाने की परंपरा है. छठ पर्व बहुत कठिन माना जाता है और इसे बहुत सावधानी से किया जाता है. कहा जाता है कि जो भी व्रती छठ के नियमों का पालन करती हैं उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
खरना की विधी :-
इस दिन महिलाएं और छठ व्रती सुबह स्नान करके साफ सुथरे वस्त्र धारण करती हैं और नाक से माथे के मांग तक सिंदूर लगाती हैं. खरना के दिन व्रती दिन भर व्रत रखती हैं और शाम के समय लकड़ी के चूल्हे पर साठी के चावल और गुड़ की खीर बनाकर प्रसाद तैयार करती हैं.
फिर सूर्य भगवान की पूजा करने के बाद व्रती महिलाएं इस प्रसाद को ग्रहण करती हैं. उनके खाने के बाद ये प्रसाद घर के बाकी सदस्यों में बांटा जाता है. इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद ही व्रती महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है. मान्यता है कि खरना पूजा के बाद ही घर में देवी षष्ठी यानी की छठी मइया का आगमन हो जाता है.
छठ पूजा में हर दिन का अपना एक अलग महत्व होता हैं। आज खरना के दिन व्रती शुद्ध मन से सूर्य देव और छठ मां की पूजा करके गुड़ की खीर का भोग लगाती हैं. खरना का प्रसाद काफी शुद्ध तरीके से बनाया जाता है. खरना के दिन जो प्रसाद बनता है, उसे नए चूल्हे पर बनाया जाता है. व्रती इस खीर का प्रसाद अपने हाथों से ही पकाती हैं. खरना के दिन व्रती महिलाएं सिर्फ एक ही समय भोजन करती हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से शरीर से लेकर मन तक शुद्ध हो जाता है.
बता दे की हर साल से इस साल छठ पूजा कुछ अलग तरीके से मनाया जाएगा। कोरोना काल में हो रहे छठ पूजा को लेकर सरकार ने कुछ गाइडलाइन्स जारी किये हैं जिसका पालन करना अनिवार्य होगा।