आज नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना, जे डी यू- ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने की मां से प्रार्थन, सभी भक्तों को नकारात्मक शक्तियों पर विजय का आशीर्वाद दें

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। आज शारदीय नवरात्रि का तीसरा दिन है। मां चंद्रघंटा की पूजा का विधान है। जे डी यू- ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने मां के सभी भक्तों को बधाई और शुभकामनाएं दी है। इसके साथ ही उन्होंने माँ चंद्रघंटा से कामना है कि मां सभी के ज़िन्दगी में सुख व समृद्धि प्रदान करें, भक्तों की सारे कष्टों का नाश करें और मानवजाति को दुःखों से बचाएँ।

पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

वैसे तो तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा का विधान हैं, लेकिन दो तिथियां एक साथ होने की वजह से आज मां कृष्मांडा की भी पूजा होगी। आज मां के तृतीय और चतुर्थ स्वरूप की पूजा- अर्चना की जाएगी। तृतीया तिथि पर मां के तृतीय स्वरूप मां चंद्रघंटा और चतुर्थी तिथि पर मां के चतुर्थ स्वरूप मां कूष्माण्डा की पूजा- अर्चना की जाती है।

मां चंद्रघंटा का स्वरूप : मां चंद्रघंटा को राक्षसों का वध करने वाली देवी कहा जाता है. मान्यता है कि मां दुर्गा के चौथे रूप मां चंद्रघंटा के माथे पर घंटे के आकार की अर्धचंद्र सुशोभित है और इसलिए इन्हें मां चंद्रघंटा के नाम से पूजा जाता है. मां चंद्रघंटा सिंह पर विराजमान हैं। हिंदू शास्त्रों के अनुसार मां चंद्रघंटा के दस हाथ हैं. इनके चार हाथों में कमल का फूल, धनुष, माला और तीर हैं. पांचवें हाथ में अभय मुद्रा है. जबकि अन्य चार हाथों में त्रिशूल, गदा, कमंडल और तलवार है. दसवां हाथ वरद मुद्रा में रहता है. मां चंद्राघंटा भक्तों का कल्याण करती हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं

मां कूष्मांडा का स्वरूप : मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं। मां को अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में जपमाला है। मां सिंह का सवारी करती हैं। मां कूष्मांडा सूर्यमंडल के भीतर के लोक में निवास करती हैं। मां के शरीर की कांति भी सूर्य के समान ही है और इनका तेज और प्रकाश से सभी दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं।

या देवी सर्वभू‍तेषु मां कूष्‍मांडा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
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