81 की उम्र मे जमा किए हजारों सिक्कों का ख़जाना,देेश और विदेशों के विभिन्न कालों के सिक्के…

Patna Desk

10 वर्ष की उम्र से शुरू किया था क्वाईन का कलेक्शन, 81 की उम्र में भी वही जज्बा, देेश और विदेशों के विभिन्न कालों के 1 लाख से अधिक क्वाइन इनके पास है शिल्पी महेंद्र बड़े ही अजूबे हैं. अजूबे का मुख्य कारण है, कि उनके पास एक लाख से अधिक सिक्कों का संग्रह होना है. वही, बचपन में ही क्वाईन (सिक्कों) के संग्रह का धुन शुरू हुआ, तो अभी तक नहीं थमा है. यह बताते हैं, कि बचपन में हमारे गार्जियन पैसा देते थे, तो उसमें से पैसे बचाकर जमा भी करते थे. धीरे-धीरे उन्हीं पैसों से सिक्को की खरीददारी शुरू कर दी. बड़े हुए तो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी लगी. नौकरी की सेलरी का भी एक बड़ा हिस्सा कवाइन संग्रह पर खर्च करते रहे और सिक्कों के संग्रह का दौर जारी रहा। अपने नौकरी के समय की अच्छी खासी कमाई सिक्को के संग्रह में लगाए हैं.रह गई है कसक: दुर्भाग्य से न कोई खरीददार मिला न कोई कद्रदान शिल्पी महेंद्र ने सिक्कों का एक म्यूजियम तैयार कर दिया है, लेकिन इसे यह दुर्भाग्य बताते हैं, कि इसका कद्रदान कोई नहीं है. यह बताते हैं, कि यह मेरा दुर्भाग्य है या जनता का, कि इतने बड़े पैमाने पर विविध कालीन के सिक्कों का संग्रह करने के बावजूद भी न तो आज तक कोई खरीददार आया और न ही कद्रदान, इसकी कसक उन्हें जरूर है. हमारे पास ऐसे दुर्लभ सिक्के हैं, जो अब नहीं मिलेंगे. देश में आजादी के बाद से जो यादगार सिक्के चलाए गए या फिर स्लोगन वाले सिक्के या विभिन्न विशेष तिथियां वाले सिक्के हुए, सब उनके पास मौजूद है. देश का सबसे बड़ा सिक्का भी उन्हीं के पास मौजूद है. देश की आजादी से पहले और देश की आजादी के बाद के सिक्कों का बड़ा संग्रह है. वैसे, उनके पास 3 हजार साल पुराने क्वाईन मिल जाएंगे.भीख मांगने वाले बने बड़ा माध्यम और तभी संभव हुआ बङा सिक्को का संग्रह शिल्पी महेंद्र बताते हैं, कि उनके पास जो सिक्कों का संग्रह है, उसका एक बड़ा माध्यम भीख मांगने वाले रहे हैं. उन्होंने भीख मांगने वालों से काफी सिक्के खरीदे. बताते हैं, कि बोधगया और विष्णुपद दोनों अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्थली है. यहां देश और विदेश से लोग आते हैं. विदेशी भीख मांगने वालों को क्वाईन दे जाते हैं. वह भीख मांगने वालों से संपर्क कर रखे हैं और जैसे ही उन्हें विदेशी क्वाइन मिलता है, वे हमारे पास चले आते हैं और उन्हें एक उचित राशि क्वाईन के बदले दे दी जाती है, क्योंकि भीख मांगने वालों के पास इतनी क्षमता नहीं होती, कि वे विदेशी कॉइन चला सके, तो ऐसे में जहां भीख मांगने वाले लोग उनसे संपर्क करते हैं और बदले में उचित राशि प्राप्त करते हैं. वहीं, उन्हें क्वाईन हासिल हो जाता है. इसी प्रकार विभिन्न ऐसे स्थानों से भी सिक्के प्राप्त किए हैं, जहां दुर्लभ सिक्के भी रखे रहते हैं. काफी संख्या में सिक्कों की खरीददारी की है.

स्वर्णकार रहने के कारण उनके बच्चों की दुकानों में भी सिक्के बेचने वाले आते हैं, दुर्लभ सिक्का हुआ तो वह उसे संग्रह कर लेते हैं. इसी प्रकार बूंद-बूंद कर क्वाईन का संग्रह किया और आज हमारे पास विभिन्न कालों के एक लाख से अधिक सिक्के मौजूद है. सबसे बड़ी बात यह है, कि सभी सिक्कों का इतिहास के बारे में भी उन्होंने लिखा है और लेमिनेट कर सारी जानकारी दी है. आज मेरी उम्र 81 साल की हो चुकी है, लेकिन सिक्कों के संग्रह का जज्बा नहीं थमा है. 10 वर्ष की उम्र से सिक्को का संग्रह करना शुरू किया था, जो आज भी बरकरार है. यूं कहीं कि आज और ज्यादा लालसा रहती है, किसी क्वाईन को जमा करें. सिक्को का संग्रह का एक मकसद यह भी है, कि भावी पीढ़ी भी सिक्को पर शोध करें.

शिल्पी महेंद्र बताते हैं कि अब तक उन्होंने 50 से अधिक किताबें क्वाईन पर लिख दिए हैं.काष्ठ कला में भी प्रवीण शिल्पी महेंद्र काष्ठ कला में भी महारत हासिल किए हुए हैं. सिक्को के जादूगर महेंद्र काष्ठ कला में इतना महारत है, कि किसी को एक बार देख ले, तो उसकी चित्र बना सकते हैं, जबकि काष्ठ कला में यह असंभव काम है. आमतौर पर कलाकार कास्ठ कला में देवी देवताओं राजा राजनेता के रूप को काष्ठ कला से बना सकते हैं, लेकिन किसी आम व्यक्ति के रूप को उतारना काफी कठिन है, लेकिन शिल्पी महेंद्र किसी भी सामान्य व्यक्ति को एक बार देखकर हूबहू चित्रण कर लेते हैं इस तरह काष्ठ कला में भी शिल्पी महेंद्र निपुण है.बाइट- शिल्पी महेंद्र सिक्कों के संग्रह करने वाले.

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