केंद्र सरकार द्वारा 30 अप्रैल 2025 को केंद्रीय कैबिनेट में जाति आधारित जनगणना को स्वीकृति दिए जाने के फैसले ने देशभर में राजनीतिक और सामाजिक हलकों में हलचल मचा दी है। इस महत्वपूर्ण निर्णय का स्वागत करते हुए राष्ट्रीय लोक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के वरिष्ठ नेता उपेंद्र कुशवाहा ने इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक ऐतिहासिक और क्रांतिकारी कदम बताया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की सराहना करते हुए कहा कि यह निर्णय वंचित और पिछड़े वर्गों के लिए लाभकारी सिद्ध होगा।उपेंद्र कुशवाहा, जिन्हें बिहार में कुशवाहा समुदाय का प्रमुख चेहरा माना जाता है, ने अपने बयान में कहा कि यह फैसला देश के सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने में मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने कहा कि जातीय जनगणना के जरिए सरकार को विभिन्न समुदायों की वास्तविक सामाजिक और आर्थिक स्थिति की जानकारी मिलेगी, जिससे योजनाएं और नीतियां ज्यादा सटीक और कारगर तरीके से तैयार की जा सकेंगी।
उन्होंने बिहार में 2023 में कराए गए जातीय सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा कि उस सर्वे ने साबित कर दिया कि वास्तविक आंकड़ों के बिना सामाजिक न्याय की कल्पना अधूरी है। बिहार में हुए सर्वे में EBC की संख्या 36%, OBC की 27%, SC की 19% और ST की 1.68% दर्ज की गई थी, जिसने नीति निर्माण की दिशा को काफी प्रभावित किया।शुरुआत में केंद्र सरकार ने इस मांग को खारिज कर दिया था, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों द्वारा इसे मुख्य मुद्दा बनाए जाने और बिहार जैसे राज्यों के लगातार दबाव के कारण अब इस पर कदम उठाया गया है। केंद्रीय कैबिनेट का यह फैसला देश में पहली बार जातीय आधार पर आधिकारिक आंकड़े जुटाने का मार्ग प्रशस्त करेगा।उपेंद्र कुशवाहा का यह समर्थन बिहार की राजनीति में उनकी स्थिति को मजबूत करने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। कुशवाहा समुदाय और पिछड़े वर्गों में उनकी पकड़ को देखते हुए, यह मुद्दा 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों में उन्हें राजनीतिक लाभ दिला सकता है।