रमणिका गुप्ता की आत्मकथा ‘आपहुदरी’ पढ़ने पर राजनीति के अलग चरित्र से परिचित होने का मौका मिलता है। सियासत के गैंगस्टर मिजाज को रमणिका ने बखूबी कोरे कागज पर उकेरा है। अपनी आत्मकथा के जरिए रमणिका ने बहुत से सफेदपोश चेहरों से नकाब नोच डाला है। बेहद बोल्ड और बिंदास अंदाज में लिखी गई ‘आपहुदरी’ के आईने में आप 60 और 70 के दशक की राजनीति का विद्रूप चेहरा देख सकते हैं।
NEWSPR डेस्क। पटना दलित साहित्य, कला और संस्कृति से जुड़ी रहीं रमणिका गुप्ता एक समय के बाद राजनीति में प्रवेश करती हैं। विधान पार्षद बनती हैं। कांग्रेस में बड़े पदों पर आसीन होती हैं। उनकी मुलाकात बिहार के मुख्यमंत्री केबी सहाय से होती है। केबी सहाय तत्कालीन बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को एक पत्र लिखते हैं। पत्र में रमणिका गुप्ता को बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी का सदस्य मनोनीत करने की सिफारिश होती है। रमणिका जब राजनीति में प्रवेश करती हैं। वे 60 के दशक की सियासत को पूरी तरह पितृसत्तात्मक के तौर पर महसूसती हैं। हालांकि, वे उससे जूझती हैं। लड़ते हुए आगे बढ़ती हैं। रमणिका अपनी आत्मकथा ‘आपहुदरी’ में एक जगह कहती हैं कि राजनीति में समझौता और व्याभिचार ज्यादा चलता है। बलात्कार कम।
मुख्यमंत्री केबी सहाय का पत्र लेकर रमणिका बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पास जाती हैं। प्रदेश अध्यक्ष रमणिका देखते ही लार टपकाने वाले अंदाज में चापलूसी शुरू कर देते हैं। वे कहते हैं कि बहुत अच्छा बोलती हो। मुख्यमंत्री बता रहे थे। आज ही तुम्हें बीपीसीसी का सदस्य मनोनीत करने का पत्र दे दूंगा। तुम केवल मिलती रहा करो। प्रदेश अध्यक्ष महोदय रमणिका गुप्ता का हाथ पकड़कर अपने पास बैठाते हैं। फिर उनके कमरे का दरवाजा अचानक बंद हो जाता है। रमणिका कहती हैं कि मैंने एक असफल कोशिश की अपने को बचाने की, पर शायद यह कोशिश तीव्र नहीं रही होगी ! इस मुलाकात के बारे में वे आगे लिखती हैं- शायद मुझे सुख के अहसास के साथ-साथ उनकी आंखों में स्नेह-भरा एक सक्षम सहारा भी झांकता दिखा होगा।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के कमरे में हुई घटना के बाद वे अपने मन में चल रहे द्वंद को प्रकट करते हुए कहती हैं- ये एक दूसरा सुरक्षा कवच था। एक बिहार का शीर्ष नेता मुख्यमंत्री और दूसरा बिहार कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष। एक कायस्थ और एक ब्राह्मण। ये दोनों मेरे समक्ष, दिलीप और एक डीएसपी जो मुझे प्रायः तंग करते थे। इन दोनों के खिलाफ एक बहुत बड़ी ढाल बनकर मुझे मेरे संरक्षक के रूप में सामने खड़े नजर आने लगे थे। इस घटना के बाद रमणिका पूरी तरह कांग्रेस से जुड़ जाती हैं। उन दिनों कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष कामराज नादार थे। जो तमिल थे। रमणिका तमिल भाषा की जानकारी रखती थीं। उन्हें मुख्यमंत्री केबी सहाय ने अपने और कामराज नादार के बीच संदेशवाहक का काम सौंप दिया। रमणिका मुख्यमंत्री का संदेश लेकर दिल्ली आने-जाने लगीं।
इसी दौरान रमणिका गुप्ता को जयपुर में होने वाले कांग्रेस सम्मेलन में जाने का मौका मिलता है। रमणिका बीपीसीसी की तरफ से जयपुर पहुंचती हैं। ये घटना 1964 से 1966 के बीच की है। उन दिनों केंद्र में इंदिरा गांधी मंत्री थीं। यशपाल कपूर इंदिरा गांधी के सेक्रेटरी होते थे। रमणिका की यशपाल कपूर से काफी घनिष्टता हो जाती है। यशपाल कपूर रमणिका के मित्र बन जाते हैं। रमणिका ने यशपाल के बारे में लिखा है कि- वे युवा थे, हैंडसम और स्मार्ट भी। राजनीति में मुझे आगे बढ़ाने में मददगार भी। कांग्रेस में दिल्ली की राजनीति में वे मेरे संरक्षक थे। उन दिनों राजनीति में आई स्त्रियों से राजनेताओं की मित्रता का अर्थ होता था, दैहिक मित्रता। जो एक साथ कईयों से हो सकती थी। रमणिका राजनीति की तर्ज पर फिल्म उद्योग को भी देखती थीं। जहां दैहिक दोस्ती अनिवार्य मानी जाती थी। उन्होंने ‘आपहुदरी’ में लिखा है कि दोनों में लक्ष्य सत्ता ही था। एक राजनीतिक सत्ता और दूसरी आर्थिक सत्ता। दोनों में ‘जन’ महत्वपूर्ण था। जननेता-जननेत्री, जनप्रिय अभिनेता या जनप्रिय-अभिनेत्री। दोनों लोकप्रियता का रास्ता हैं। दोनों में स्त्री के लिए यौन आकर्षण और अभिव्यक्ति की शक्ति जरूरी है। एक का हथियार राजनीति है, तो दूसरे का हथियार कला।
जयपुर पहुंचने के बाद रमणिका ने देखा कि साउथ से संबंध रखने वाले एक कैबिनेट मंत्री दो घोड़ों की गाड़ी से रेस्ट हाउस आते-जाते हैं। चूकी रमणिका गुप्ता तमिल जानती थीं। इसलिए साउथ के नेता उनसे काफी अच्छी तरह बातचीत करने लगते हैं। इसी दौरान उनकी मुलाकात केंद्र में स्टील और खान मंत्री रहे नीलम संजीव रेड्डी से होती है। रमणिका जब जयपुर कांग्रेस सम्मेलन में मंच पर अपनी चिट देने जाती हैं। तब नीलम संजीव रेड्डी रमणिका को पास बैठने का इशारा करते हैं। रमणिका ये सोचकर खुश हो जाती हैं कि एक नई कार्यकर्ता को कैबिनेट मंत्री अपने बगल में बैठा रहा है। उस वक्त सम्मेलन में पहुंचे बिहार के बड़े-बड़े कांग्रेस नेता मंच के नीचे बैठे होते हैं। रमणिका लिखती हैं कि इसके पीछे की मंशा मुझे मालूम नहीं थी। मैं उनसे यदाकदा तमिल में बात करती रही। वे तेलगू भाषी थे, लेकिन तमिल समझते थे।
सम्मेलन खत्म होने के बाद नीलम संजीव रेड्डी रमणिका गुप्ता को मंच के पीछे आने का इशारा करते हैं। लंच ब्रेक पर संजीव रेड्डी रमणिका को अपने घोड़े वाले रथ पर बैठाकर रेस्ट हाउस लेकर आते हैं। इस दौरान नीलम संजीव रेड्डी रमणिका गुप्ता की तारीफ में कसीदे पढ़ते रहते हैं। हमेशा तिरस्कार से दो-चार होती रहने वाली रमणिका को नीलम संजीव रेड्डी की तारीफ अच्छी लगती है। जब वे दोनों रेस्ट हाउस पहुंचते हैं। उसके बाद नीलम संजीव रेड्डी रमणिका को अपने कमरे में ले जाते हैं। रमणिका गुप्ता लिखती हैं कि मुझे कमरे में बिठाकर वे बाथरूम चले गए। मैं सोच रही थी कि शायद वे अभी खाना-वाना मंगवाएंगे। बड़ी जोर से भूख लगी थी। पंडाल में मैंने खाना नहीं खाया था। मैं उनके आने के इंतजार में ही थी कि वे पूरी तरह नंगे होकर कमरे में आ गए। मंत्रियों के कमरे का दरवाजा अधखुला भी हों तो कोई खोलने की हिम्मत नहीं करता। खुले भी हों तो कोई झांकने की ज़ुर्रत नहीं करता और न ही जरूरत समझता है। चूकि सभी मंत्रियों की आदतों से परिचित होते हैं।
उसके बाद रमणिका गुप्ता हैरान रह जाती हैं। तबतक नीलम संजीव रेड्डी नंगे रहते हुए रमणिका के चौंकने पर कहते हैं कि तुम्हारा मुख्यमंत्री (केबी सहाय) तो उस नर्स को भेजता है। मेरे पास अपनी राजनीति ठीक करने के लिए। तुम भी क्या उन्हीं की तरफ से कुछ कहना चाहती हो। उसके बाद रमणिका गुस्से में कहती हैं कि ऐसा कोई काम मुझे आपके लिए सौंपा नहीं गया है। मैं तो बस अध्यक्ष जी जब बिहार आते हैं तो उनके भाषण को हिन्दी में अनुवाद कर देती हूं। रमणिका बताती हैं कि मैं मुख्यमंत्री का सिर्फ संदेश तमिल में राष्ट्रीय अध्यक्ष को समझा देती हूं। रमणिका के बोलने के बाद नीलम संजीव रेड्डी तुरंत कालीन पर लेट जाते हैं। रमणिका को इस घटना से काफी घृणा हो जाती है। नीलम संजीव रेड्डी अपने पीए से रमणिका को पंडाल में छोड़कर आने की बात कहते हैं।
रमणिका ने ‘आपहुदरी’ में नीलम संजीव रेड्डी के साथ हुई इस घटना पर अपना डर व्यक्त करते हुए कहती हैं कि उस विशाल रेस्ट हाउस में कोई नहीं था। मेरा विरोध किसी काम का नहीं होता। बस उसके बाद मैंने निश्चय किया कि दोबारा ऐसा मौका उन्हें नहीं हथियाने दूंगी। बाद में वहीं नीलम संजीव रेड्डी देश के राष्ट्रपति बने। रमणिका ने आत्मकथा में चर्चा की है कि नीलम संजीव रेड्डी की उद्दंडता के बारे में इंदिरा गांधी को सबकुछ पता था। इसलिए इंदिरा गांधी ने उनके राष्ट्रपति बनने का विरोध किया। रमणिका ने अपना अनुभव साझा करते हुए आत्मकथा में लिखा है कि बाद में मैंने देखा कि कुछ को छोड़ दें, तो दक्षिण के ज्यादातर नेता सेक्स के भूखे होते हैं। उनमें नफासत या संवेदना बिल्कुल नहीं होती। इस घटना के बाद देर शाम रमणिका ये बात अपने मित्र और इंदिरा गांधी के सचिव यशपाल कपूर को बताती हैं। यशपाल कपूर नाराज हो जाते हैं और कार्रवाई की बात कहते हैं। रमणिका इस घटना के बाद औरतों के प्रति इस प्रकार का नजरिया रखने वालों का विरोध शुरू कर देती हैं।