गया के गेेहलौर में माउंटेन मैन दशरथ मांझी की समाधि पर ‘विश’ मांगने देश से ही नहीं बल्कि विदेशी सैलानी भी पहुंचते हैं।

Patna Desk

 

बिहार के गया में गेहलौर घाटी में बाबा दशरथ की समाधि है. इसे अब बिहार के ताजमहल के रूप में लोग संज्ञा देने लगे हैं. यहां देश ही नहीं, बल्कि विदेशी सैलानी भी पहुंचते हैं और विश मांगते हैं. इसे प्रेम के प्रतीक स्थल के रूप में देश भर में जाना जाता है. पत्नी के प्रेम में 22 सालों के अथक प्रयास से बाबा दशरथ मांझी ने गेहलौर में 360 फीट ऊंचे पहाड़ का सीना चीर कर रास्ता बना दिया था. यहां पहुंचने वाले सैलानी कहते हैं कि दुनिया में प्यार की बातें होती है, यदि प्यार को जानना है तो गेहलौर जरूर आएं. यहां प्रेमी अपने प्यार के सफल होने की विश मांगने भी आते हैं.

360 फीट ऊंची पहाड़ का सीना चीर बना दी थी सड़क, 22 साल लगातार छेनी हथौड़ी से तोड़ी थी पहाड़, पत्नी की उबर खाबङ पहाङी रास्ते पर गिरने से हुई थी मौत

बाबा दशरथ मांझी के अनूठे प्रेम की अनोखी कहानी है. दशरथ मांझी को माउंटेन मैन के नाम से जाना जाता है. इनका जन्म 14 जनवरी 1929 को हुआ था. बिहार के गया के गेेहलौर गांव में दशरथ मांझी मजदूरी करते थे. पत्नी फाल्गुनी देवी इन्हें रोज खाना पहुंचाया करती थी. एक दिन पत्नी फाल्गुनी देवी जब दशरथ मांझी के लिए खाना-पीना लेकर पहाड़ के रास्ते जा रही थी, तब अचानक उनका पैर फिसला और फिर बाद में उनकी मौत हो गई. पत्नी की मौत से आहत होकर दशरथ मांझी ने दृढ़ संकल्प लिया कि वह पहाड़ को काटकर रास्ता बनाएंगे. इसके बाद उन्होंने 22 साल तक लगातार छेनी और हथौड़ी चलाकर 360 फीट ऊंचे गेहलौर पहाड़ का सीना चीर कर रास्ता बना दिया था. प्रेम की यह अनूठी कहानी अब अमर हो चुकी है. वर्ष 2007 में माउंटेन मैन दशरथ मांझी का निधन हुआ.

देश और विदेश के सैलानी यहां पहुंचते हैं

अब गेहलौर घाटी में बाबा दशरथ मांझी की समाधि स्थल है. यहां पर पार्क व उद्यान भी है और इसे बड़ा पर्यटन स्थल बनाने की योजना भी सरकार की है. बाबा की समाधि स्थल के दर्शन के लिए कई बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर कई बड़ी राजनीतिक हस्तियां भी पहुंचे हैं. वहीं, सिने अभिनेता आमिर खान से लेकर बॉलीवुड की कई बड़ी हस्तियां भी यहां आ चुकी है. बाबा के नाम पर बॉलीवुड में एक फिल्म भी बनी है. वहीं सरकार द्वारा डाक टिकट भी जारी किया गया है. वहीं, पहाड़ का सीना चीर कर बनाई गई सड़क उनके प्रेम कहानी की प्रतीक बन गई है. प्रेम की इस अद्भुत मिसाल को देखने देश ही नहीं बल्कि विदेशी सैलानी भी यहां पहुंचते हैं और अपनी विश मांगते हैं. प्रेमी जोड़े अपने प्यार के सफल होने तो दंपति प्यार की गांठ मजबूत होने की बाबा दशरथ की समाधि पर विश मांगते हैं.

दुनिया में प्यार की बातें होती है, प्यार को जानना है तो गेहलौर पहुंचे, इंडिया में ही नहीं वर्ल्ड में फेमस हो यह स्थान

गेहलौर घाटी में प्रेम के प्रतीक बाबा दशरथ की समाधि को देखने आरती कुमारी नाम की महिला पहुंची है. आरती कुमारी बताती हैं, कि दशरथ मांझी ने पहाड़ को काटकर रास्ता बनाया. यह बहुत बड़ी बात है, कि उन्होंने अकेला ऐसा किया और यह बड़े प्रेम का प्रतीक स्थल के रूप में सामने है. बताती हैं कि दुनिया में लोग प्यार की बातें करते हैं, लेकिन वह कहती है कि प्यार को जानना है तो यहां जरूर पहुंचे. कहती है कि इस अनूठे प्रेम स्थल को इंडिया में ही नहीं, बल्कि वर्ल्ड में फेमस होना चाहिए.

ताजमहल को सैकड़ों कारीगरों ने बनाया था, यह ग्रेट प्रेम की कहानी

वही डॉक्टर रविंद्र कुमार बताते हैं कि प्यार की सही निशानी यही स्थान है. ताजमहल को सैकड़ों कारीगरों की मदद से बनाया गया था. किंतु यहां तो अकेले ग्रेट मैन ने ग्रेट प्रेम की कहानी लिखी. ताजमहल को मुमताज की याद में शाहजहां ने बनवाया था, लेकिन उससे कहीं अधिक यह महान प्रेम की कहानी है. गवर्नमेंट इस स्थान को डेवेलप अच्छी तरीके से करें, ताकि इसका नाम भारत में ही नहीं बल्कि वर्ल्ड में हो. प्रेम संबंध मजबूत रहे. इसी भावना को लेकर हम लोग आते हैं.

हमें पता नहीं था- ऐसी जगह भी है, ताजमहल की तरह फेमस होनी चाहिए: अकोदा

विदेशी सैलानी जापान की अकोदा बताती है कि हमें तो पता भी नहीं था, ऐसी अनोखी जगह भी है. जहां इस तरह की प्रेम कहानी है. ऐसे महापुरुष थे. यहां पहुंचकर अच्छा लगा है. 22 साल पहाड़ काटने में लगे और प्रेम वश में इसे पूरा किया. यह बहुत अच्छी जगह है. ताजमहल की तरह इस स्थल को भी फेमस होना चाहिए.

प्रोजेक्ट से सुना था, हाथ से ऐसा कर दिखाया, यह बहुत बड़ा प्रेम

वहीं, जापानी सैलानी अकाबो बताते हैं, कि सुना था कि प्रोजेक्ट से इस तरह के काम होते हैं, लेकिन प्यार में हाथ से प्रेम की बड़ी परिभाषा लिख दी. यह बहुत बड़ी बात है.

सरकार ने हमें कुछ नहीं दिया: भागीरथ मांझी

वहीं, बाबा दशरथ मांझी के पुत्र भागीरथ मांझी को मलाल है कि सरकार ने बाबा के परिवार के लिए कुछ नहीं किया. किसी को नौकरी भी नहीं दी. वादे तो बहुत किए गए, लेकिन वादे को पूरा नहीं किया जा सका. मेरे पिता दशरथ मांझी ने क्या नहीं किया, फिर भी सरकार ने उपेक्षित रखा है और परिवार के लोग तंगहाली में जी रहे हैं. पढ़ी लिखी बहू को भी नौकरी नहीं दी.

 

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