बिहार के मिथलांचल से कांवरियों का जत्था अपनी मनोकामना को लेकर माघ माह में बाबा बैद्यनाथ धाम की ओर ‘बोल बम’ के जयकारे के साथ निकल पड़ा है. द्वादश ज्योतिर्लिंग में एक बाबा बैद्यनाथ के दरबार में मिथिलांचल के कोने कोने से श्रद्धालु 18 दिनो की पैदल यात्रा के बाद बसंत पंचमी को बाबा भोले पर करेगें जल अर्पित ।
मिली जानकारी के अनुसार, आस्था और हठयोग के साथ मिथिला के हजारों लोग बाबा बैद्यनाथ की नगरी के लिए कांवर लेकर प्रस्थान कर चुके हैं. इस दौरान कंधे पर कांवर लेकर बोलबम के नारों के साथ कांवरियों नंगे पांव सड़कों पर यात्रा करते दिखें. ये कांवरिया अपने-अपने घरों से पैदल चलकर देवघर के लिए निकल पड़े हैं. दरअसल, माघ मास के शुक्ल पक्ष के वसंत पंचमी पर बाबा बैद्यनाथ को गंगाजल चढ़ाने की परंपरा है. इसी का निर्वाह करने के लिए सीतामढ़ी जिला के 150 से कांवर यात्रियों ने सीतामढ़ी से चलते हुए मुंगेर पहुंच विश्राम किया । घर से चलते समय ही यह रामधुन शुरू होता है। जो बसंत पंचमी के दिन समाप्त करते हैं ।सीतामढ़ी से रामधुन करते नाचते गाते पैदल मुंगेर पहुंचे है। जहां किला परिसर में रात्रि विश्राम के बाद वे आगे देवघर की यात्रा पे निकल जायेगें । ये लोग एक पहर बिना नमक का भोजन तो रात्रि प्रहर विश्राम काल में नमक का सेवन। करते है । बताते चले की माघी कांवर यात्रा में दरभंगा, सीतामढ़ी, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, बेतिया, समस्तीपुर, के सैकड़ों गांवों के लोग लाखों की संख्या में शामिल होते है. सभी झारखंड के देवघर स्थित वैद्यनाथ धाम पहुंचकर जलाभिषेक करते हैं. इस कांवर यात्रा की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें शामिल लोग इस कड़ाके की ठंड में भी पैदल चल बाबा नगरिया पहुंचते है । वही कांवर यात्रा में शामिल कांवड़ियों ने बताया कि बैद्यनाथ धाम मे कांवर चढ़ाने का आरंभ मिथिला से ही हुआ है. उन्होंने बताया कि पार्वती का मायके मिथिला में होने के कारण मिथिला के लोग उन्हें अपनी बहन मानते हैं और महादेव से भी रिश्ता बनाकर रखे हुए हैं.शिवरात्रि के दिन देवघर में विवाहोत्सव मनाया जाता है. उससे पूर्व वसंत पंचमी को महादेव का तिलकोत्सव होता है, जिसमें मिथिलावासी ससुराल पक्ष की ओर से शामिल होते हैं. इसलिए हम सभी लोग कांवर लेकर देवघर के लिए निकल पड़े है । बाबाधाम आने की परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चल रही है। पूर्वजों के बताए धर्म की डगर पर सभी चल रहे हैं। उनका संकल्प बसंत पंचमी को यज्ञ समापन के साथ होगा। पंचमी के अगले दिन सामूहिक रूप से भैरव पूजा करेंगे और यहां से प्रस्थान कर जाएंगे। सप्तमी को सिमरिया में गंगा स्नान करने के बाद अपने गांव लौट जाएंगे।