देश के 52 शक्तिपीठों में से एक मुंगेर का चंडिका स्थान, जहां गिरा था माता सती का बायां नेत्र इस कारण यहां होती है नेत्र की पूजा

Rajan Singh

NEWS PR DESK- । नवरात्र में दूर दूर से भक्त आते है माता के दर्शन को ले । आइए जानते है क्या है पूरी कहानी । बाढ़ का पानी निकलने के बाद माता के देश को ले भक्तों का उमड़ा जन सैलाव ।


मुंगेर का चंडिका स्थान बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे भारत का एक अत्यंत प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यह मंदिर इतना प्राचीन है कि इसका कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। किंवदंतियों के अनुसार, जब राजा दक्ष की पुत्री सती ने अपने पिता के यज्ञ में अपमानित होकर देह त्याग दी थी, तब भगवान शिव उनके जले हुए शरीर को लेकर विचरण कर रहे थे। उसी समय सती की बाईं आँख इस स्थान पर गिरी थी। इसीलिए चंडिका स्थान को बावन शक्तिपीठों में गिना जाता है। और वहीं गुफा में विराजमान माता सती के बाई नेत्र की होती है पूजा । मान्यता हैं कि माता के पास जल रहे ज्योत से निकलने वाला काजल लगाने से आंखों की बीमारियां भी होती दूर । वहीं दूसरी ओर इस मंदिर को महाभारत काल से भी जोड़ कर देखा जाता है।


इसके अनुसार अंगराज कर्ण माता चंडिका की पूजा कर उनसे प्राप्त सवा मन सोना का दान प्रतिदिन करते थे। महाराज कर्ण को प्रतिदिन सवा मन सोना प्राप्त होने का रहस्य पता लगाने, छद्म वेष में एक दिन राजा विक्रमादित्य पहुंचे। उन्होंने देखा कि महाराजा कर्ण ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान कर चंडिका स्थान स्थित खौलते तेल के कड़ाह में कूद जाते हैं और उनके मांस का चौंसठों योगिनियां भक्षण कर लेती है। इसके बाद माता उनके अस्थि पंजर पर अमृत छिड़क उन्हें पुन: जीवित कर देती है और उन्हें पुरस्कार स्वरूप सवा मन सोना देती है।

एक दिन चुपके से राजा कर्ण से पहले राजा विक्रमादित्य वहां पहुंच गए। और राजा कर्ण की तरह कड़ाह में कूद गए जिसके पश्चात उन्हें माता ने जीवित कर दिया। उन्होंने लगातार तीन बार कड़ाह में कूद कर अपना शरीर समाप्त किया और माता ने उन्हें जीवित कर दिया। चौथी बार माता ने उन्हें रोका और वर मांगने को कहा। इस पर राजा विक्रमादित्य ने माता से सोना देने वाला थैला और अमृत कलश मांग लिया। माता ने दोनों चीज देने के बाद वहां रखे कड़ाह को पलट दिया, क्योंकि उनके पास अमृत कलश नहीं था और राजा कर्ण के आने का समय हो चला था।

अमृत कलश के अभाव में उन्हें वह दोबारा जीवित नहीं कर सकती थी। इसके बाद से अभी तक कड़ाह उलटा हुआ है और उसी के अंदर माता की पूजा होती है। इस शक्तिपीठ की महिमा भी अलग यहां भक्त रोते हुए आते है और हंसते हुए जाते है । अब इस शक्तिपीठ से जैसे ही गंगा का पानी निकला वैसे ही भक्तों जन सैलाव माता के दर्शन और पूजा को उमड़ पड़ा ।

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