NEWSPR डेस्क। बाढ़ के बनारसी घाट पर नारायणी गंडक से आया एक घड़ियाल मिला है। ग्रामीणों की जैसे ही इसपर नजर पड़ी उन्होंने बंधक बना लिया। वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट का मानना है कि यह नेपाल सरकार द्वारा घड़ियालों के प्रजनन के लिए छोड़ा गया है। इसी दौरान यह गंडक से होते हुए गंगा में पहुंच गया। फिलहाल घड़ियाल ग्रामीणों के कब्जे में है। इसकी सूचना वन विभाग को दी गई है।
ढाई महीने पहले उमानाथ घाट पर एक मृत डॉल्फिन मिली थी। घड़ियाल को क्रिटिकली इन्डैंजर्ड वन्य जीव की श्रेणी में रखा गया है। बिहार की गंडक नदी में घड़ियालों की संख्या विश्व में दूसरे स्थान पर है। यहां 251 घड़ियाल पाए गए हैं। भारत के चंबल अभ्यारण्य में सबसे अधिक घड़ियाल हैं। 2019 में हुए वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट के एक सर्वे के अनुसार यहां 1255 घड़ियाल हैं।
इस तरह घड़ियाल के बनारसी घाट पर आने का एक कारण गंडक में वाटर वेज 37 के लिए शुरू हुआ निर्माण कार्य है। वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट समीर सिन्हा ने बताया कि गंडक में वाटर वेज बनने से जलीय जीवों की जनसंख्या पर प्रभाव डालेगा। भारत सरकार के इनलैंड वाटर वेज अथॉरिटी की ओर से नेशनल वेज 37 के लिए नदी में निर्माण कार्य शुरू हो गया है।
नदी को सीधा करने और गहरा बनाने के लिए काम चल रहा है। इससे मछली डॉल्फिन और घड़ियाल जैसे जलीय जीव नदी से निकलकर बाहर आएंगे। घड़ियालों की जनसंख्या पर भी इससे प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इस तरह के विकास कार्य में जलीय जीवों की जनसंख्या का भी ख्याल रखा जाना चाहिए।
भारत में घड़ियाल महज कुछ नदियों में पाए जाते हैं। बिहार में सिर्फ गंडक नदी ही इसके लिए अनुकूल है। अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने इसे संकटग्रस्त प्रजाति की श्रेणी में रखा है। पूरे विश्व में अब यह केवल भारत,बांगलादेश और नेपाल में ही पाए जाते हैं।
स्थानीय लोगों में यह अफवाह फैली हुई है कि घड़ियाल कई पशुओं को खा चुका है। वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट समीर सिन्हा की मानें तो यह बातें बेमानी हैं। घड़ियाल केवल मछलियां खाता है। वह पानी से बाहर केवल सांस लेने के लिए निकलता है।
सांस लेने के लिए इसे बार-बार पानी से बाहर आना पड़ता है लेकिन यह पूरे दिन नदी की तलहटी में ही विश्राम करता है। रात में यह मछलियां खाता है। सुबह-सुबह लोगों ने जब घड़ियाल को देखा तो गांववालों की भीड़ लग गई। हजारों की संख्या में लोग जुट गए और फोटो लेने लगे। दूर-दूर से बच्चे घाट पर घड़ियाल को देखने आने लगे।
घड़ियाल मिलने के बाद गांववालों ने इस बात की सूचना वन विभाग को दी। इसके बाद एक अधिकारी भी घड़ियाल लेने आए लेकिन वन विभाग का आइकार्ड नहीं होने की वजह से ग्रामीणों ने उन्हें घड़ियाल नहीं सौंपा। ग्रामीणों का कहना है कि वह अधिकारी इसे फिर से गंगा में ही छोड़ देते इसलिए हमलोगों ने उन्हें घड़ियाल नहीं दिया।