बिहार में राजनीतिक सरगर्मी के बीच अब राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की बिहार में एंट्री हो सकती है. दरअसल, बताया जा रहा है कि लालू यादव जल्द ही बिहार आ सकते हैं. राजद सुप्रीमो वर्तमान में दिल्ली में बेटी मीसा भारती के आवास पर रह रहे हैं. पिछले दिनों ही लालू यादव को हाईकोर्ट से बेल मिला था. अभी उनका इलाज एम्स के डॉक्टरों की देखरेख में हो रहा है. लालू के बिहार की राजनीति में सक्रिय होने के कयास पहले से लगाए जा रहे थे. जानकारों की मानें तो बिहार में नीतीश की कुर्सी खतरे में पड़ सकती है.
दरअसल, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी और विकासशील इनसान पार्टी के अध्यक्ष व बिहार सरकार में मंत्री मुकेश सहनी की मुलाकात राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबधन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सिरदर्द बढ़ा सकती है. इसे लेकर कई तरह की अटकलों का दौड़ शुरु हो गया है. मांझी ने एक तरफ कोरोना काल में पंचायत चुनाव नहीं करा कर वर्तमान पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल छह महीने बढ़ाने की मांग की है तो दूसरी तरफ राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था को बदहाल बता सरकार की एक तरह से खिंचाई भी कर दी है.
हालांकि, उन्होंने मुख्यमंत्री को करोनावायरस संक्रमण की घटती दर के लिए धन्यवाद भी दिया है. मांझी के कई बयान एनडीए में रहते हुए भी भारतीय जनता पार्टी को घेरते नजर आ रहे हैं. अब इसके सियासी मायने तो निकाले ही जाएंगे.
जीतन राम मांझी व मुकेश सहनी एनडीए की सरकार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सहयोगी हैं, लेकिन उनकी सियासी प्रतिबद्धताओं को लेकर अनिश्चितता का इतिहास रहा है. एनडीए के बहुमत का आंकड़ा भी दोनों के दलों पर निर्भर हैं. हालांकि, मांझी के राष्ट्रीय जनता दल (RJD) व उसके सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव पर हमलावर रुख को देखते हुए किसी सियासी उलटफेर की संभावना तो नहीं दिखती. ‘हम’ के प्रवक्ता दानिश रिजवान ने भी कहा है कि जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी बराबर मुलाकात करते रहते हैं, इसमें कोई नई बात नहीं है.
मांझी और सहनी की मुलाकात भले ही नई नहीं हो, लेकिन इसकी पृष्ठभूमि गौर करने लायक है. शनिवार की सुबह जीतन राम मांझी ने बिहार सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था पर तंज कसते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तारीफ भी की थी. मांझी ने ठीक उसी भाषा में सरकार को राज्य में स्वास्थ्य उप केंद्रों को बेहतर बनाने की सलाह दी, जिस भाषा में इन दिनों आरजेडी सहित अन्य विपक्षी दल हमलावर हैं. कहा कि लॉकडाउन कोरोनावायरस संक्रमण से निबटने का समाधान नहीं है. इससे निपटना है तो गांवों के स्वास्थ्य उपकेंद्रों को दुरुस्त करना होगा.
बिहार सरकार में स्वास्थ्य विभाग एनडीए के घटक दल बीजेपी के पास है और मंगल पांडेय स्वास्थ्य मंत्री हैं. मांझी की बात बीजेपी को सुझाव हो या उसपर हमला, सत्ता पक्ष के सुर से अलग राग जरूर है. इतना ही नहीं, उन्होंने लगे हाथ कोरोनावायरस संक्रमण रोकने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तारीफ भी की है.
इस बयान को ट्वीट करने के बाद मांझी ने ‘वीआइपी’ अध्यक्ष व मंत्री मुकेश सहनी से मुलाकात की. बाद में मांझी ने कहा कि इस मुलाकात में पंचायत प्रतिनिधियों के कार्यकाल को बढ़ाए जाने सहित अन्य मुद्दों को लेकर विमर्श हुआ. मालूम हो कि मांझी ने इसके पहले शुक्रवार को ट्वीट कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल को छह महीने तक बढ़ाने की मांग की थी. इसके लिए उन्होंने आपातकाल के दौरान लोकसभा की अवधि छह महीने बढ़ाए जाने का हवाला दिया था. स्पष्ट है कि मांझी इस मुद्दे पर मुकेश सहनी का समर्थन लेने गए थे, लेकिन इस मुलाकात में चर्चा के ‘अन्य मुद्दे’ क्या थे, इसकी जानकारी तो उन्होंने नहीं दी.
लॉकडाउन में मुलाकात के तलाशे जा रहे हैं मायने
‘हम’ प्रवक्ता दानिश रिजवान इस मुलाकात को रूटीन बताते हैं, लेकिन गौरतलब है कि यह मुलाकात सरकार द्वारा अपने मंत्रियों को लॉकडाउन में इधर-उधर भ्रमण से बचने की सलाह देने के तुरंत बाद हुई. मांझी भले ही मंत्री नहीं हों, लेकिन सत्ताधारी गठबंधन के बड़े नेता के तौर पर उन्होंने एक मंत्री से मुलाकात की, जिसके मायने तलाशे जा रहे हैं.
मांझी ने हाल में पीएम पर भी लगाया था निशाना
सवाल यह भी उठा है कि क्या मांझी और मुकेश सहनी नीतीश कुमार से नाराज चल रहे हैं? मांझी के निशाने पर बीजेपी है या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार? मांझी ने मुख्यमंत्री की तारीफ करते हुए बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था को कटघरे में खड़ा किया है. यह सीधे तौर पर बीजेपी नेता व स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय पर हमला माना जा रहा है.
गौरतलब है कि मांझी ने पहली बार बीजेपी पर हमला नहीं किया है. बीते 24 मई को तो उन्होंने कोरोनावायरस टीकाकरण के प्रमाण-पत्र पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर पर आपत्ति दर्ज करते हुए कहा था कि अगर ऐसा है तो मृत्यु प्रमाण-पत्र पर भी उनकी तस्वीर होनी चाहिए. बिहार में लॉकडाउन लागू किए जाने पर उन्होंने इसके पहले गरीबों के लिए मुफ्त राशन व खाने-पीने की व्यवस्था करने तथा बेरोजगार युवाओं को नौकरी मिलने तक 5 हजार रुपए महीना की सहायता देने की भी मांग रखी थी. बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलने के दौरान जब पप्पू यादव ने बीजेपी के बड़े नेता व सांसद राजीव प्रताप रूड़ी के बेकार पड़े एंबुलेंस का मामला उठाया, उसके बाद पप्पू यादव की एक पुराने मामले में गिरफ्तारी हो गई. मांझी ने इसका भी विरोध किया.
मांझी एनडीए में समय-समय पर नाराज भी होते रहे हैं. हाल की बात करें तो बिहार विधान परिषद के लिए बीते दिनों हुए मनोनयन में मांझी व मुकेश सहनी की अपने दलों के लिए एक-एक सीट की मांग अस्वीकार कर दी गई थी. इसे लेकर उनकी नाराजगी भी जाहिर हुई थी.
बड़े सियासी उलटफेर का कारण बन सकती नाराजगी
तो क्या मांझी पाला बदल की तैयारी में हैं? मांझी जानते हैं कि बिहार की 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में एनडीए का गिनती की सीटों पर टिके बहुमत में उनकी पार्टी के चार विधायकों का अहम योगदान है. ऐसे में मांझी की नाराजगी बड़े सियासी उलटफेर का कारण बन सकती है. हालांकि, ‘हम’ प्रवक्ता दानिश रिजवान इसे खारिज करते हैं.
दबाव की राजनीति कर पार्टी का हित चाहते हैं मांझी
जीतन राम मांझी सत्ताधारी किसी भी गठबंधन में रहे हां, अपने कद को लेकर गंभीर दिखे. अपनी मांगों को मनवाने के लिए वे दबाव की राजनीति करते रहे हैं. ऐसे में एनडीए में वे अपना कद बढ़ा कर पार्टी का हित चाहते हैं. उनका मुकेश सहनी से मिलना दबाव की राजनीति का ही हिस्सा माना जा रहा है. जो भी हो, इससे एनडीए के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार का सिरदर्द बढ़ता दिख रहा है. अब विधानसभा में महज कुछ वाटों से टिके एनडीए के बहुमत में चार-चार वोट वाले दो छोटे दलों का रूख आगे क्या सियासी गुल खिलाएगा, इसपर निगाहें टिकी हैं.
बताते चलें कि बिहार में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सीटों का फासला बहुत कम है. अगर इस फासले में 2 छोटे दलों ने कभी पलटी मारी तो सरकार पर संकट के बादल मंडराने लग जाएंगे. बिहार में एनडीए की सरकार है और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नीतीश कुमार विराजमान हैं. बिहार एनडीए को बीजेपी, जेडीयू, हम, वीआईपी और निर्दलीय को मिलाकर 127 विधायकों का समर्थन हासिल है. हालांकि यह संख्या 128 थी लेकिन जेडीयू के एक विधायक के निधन के बाद यह संख्या घटकर 127 रह गई है.
अगर विपक्ष की बात करें तो महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, माले, सीपीआई और सीपीएम शामिल है. इन पांचों दल को मिलाकर कुल विधायकों की संख्या 110 है. वहीं ओवैसी की पार्टी AIMIM के भी 5 विधायक हैं. अगर एआईएमआईएम को भी विपक्ष में जोड़ दें फिर भी यह संख्या 115 तक ही पहुंच रही है. ऐसे में महागठबंधन सत्ता से दूर ही है. लेकिन एक स्थिति में तेजस्वी यादव बाजी पलट कर सत्ता के करीब पहुंच सकते हैं. वो स्थिति समय-समय पर बनते हुए दिख भी रही है.
दो दिन पहले ही आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने दो विधायकों के साथ मुलाकात की. इसी बीच शनिवार को पूर्व सीएम और हम पार्टी के मुखिया जीतनराम मांझी और विकासशील इंसान पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी की मुलाकात हुई. दोनों नेताओं के मिलने की तस्वीर सामने आने के बाद सूबे का सियासी पारा चढ़ने लगा है.