NEWSPR डेस्क। बिहार और उत्तर प्रदेश का एक पौराणिक संस्कृति झिझिया गीत और नृत्य विलुप्त होता जा रहा। भले ही इस संस्कृति को लोग भूलते जा रहे हैं लेकिन बिहार के ग्रामीण क्षेत्रो में ये आज भी जिंदा है और इसे जिंदा रखा है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार झिझिया खास कर दशहरे के समय मनाया जाता है और इसमें बच्चे एक घड़े के अंदर एक दीप जलाकर झिझिया नृत्य व संगीत के माध्यम से दरवाजे दरवाजे घूम घूम कर झिझिया गीत गाती हैं और लोगों की बालाएं दूर करती हैं।
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार दशहरे के मौके पर सभी बुरी आत्माएं इस समय जागृत हो जाती है और लोगो पर नज़र लगाकर लोगो को बीमार करती है। इसी को लेकर ग्रामीण क्षेत्र के लोग झिझिया गीत व नृत्य के माध्यम से लोगों के बाधाएं दूर करती है। झिझिया लोगों को बुरी नज़र से तो बचाती है साथ ही इसमें माता का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। जिससे लोगो के जीवन मे खुशियां आती है लेकिन आज ये संस्कृति बिलुप्त होने के कगार पर है और लोग आधुनिकता के इस दौर में अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं।
मोतिहारी में झिझिया गीत व नृत्य करते बच्चे
झिझिया बिहार का एक प्रमुख लोक नृत्य है।ग्रामीण मान्यतानुसार इस गीत में तंत्र मंत्र के बुरे प्रभाव से बचाने के लिए लड़कियाँ गीत गाकर अपने इष्ट देव को आमंत्रित करती है कि वह आए और डायन जोगिन के बुरे प्रभाव से जनमानस को बचाएं। बता दे कि खासकर दुर्गा पूजा के मौके पर झिझिया नृत्य व गीत देखने व सुनने को मिलता है लड़कियां बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती है। कुंवारी लड़कियां अपने सिर पर जलते दिए एवं छिद्र वाली घड़ा को लेकर नाचती हैं लेकिन वर्षों से चली आ रही आस्था का यह पौराणिक परंपरा झिझिया जो आज लगभग-लगभग विलुप्त होने के कगार पर पहुँच गई है। आखिर विलुप्त होते झिझिया के पीछे का क्या कारण है,यह वाकई में हैरान कर देने वाली बात है व चिंता का विषय है ।
मोतिहारी से धर्मेंद्र की रिपोर्ट